कैलाश-तुलसी की ‘वरिष्ठता’ में बाकी सब इंदौरी विधायक ‘दबे’, मेंदोला-मालिनी-हार्डिया-मधु भी रहे खाली हाथ

स्वतंत्र समय, इंदौर

मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल का विस्तार हो गया और राष्ट्रीय महासचिव रहे कैलाश विजयवर्गीय को मंत्रिमंडल में जगह मिल गई। चुनाव के दौरान उनके मुख्यमंत्री बनने के कयास लगे थे और कैलाश के खासमखास रमेश मेंदोला प्रचार के बाद और परिणाम के बाद सार्वजनिक रूप से कह चुके थे कि जनता की इच्छा है कि कैलाशजी सीएम बनें। हालांकि मोदी और आलाकमान के पिटारे से जो नाम निकला, वह देश-प्रदेश को चौंका गया। कैलाश के साथ यह कहावत चरितार्थ हुई कि चौबे जी गए थे छब्बे जी बनने, मगर दुबे जी बन कर रह गए। सीएम पद नहीं मिलने पर माना जा रहा था कि कैलाश प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज होंगे, हालांकि ऐसा नहीं हो सका। बहरहाल, मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान मुख्यमंत्री के चयन की तरह बहुत कुछ अप्रत्याशित नहीं रहा। शिवराजसिंह चौहान मंत्रिमंडल के अधिकांश चेहरों को बाहर किया गया हालांकि प्रदेश के दिग्गज नेताओं का मान रखा गया। अब निश्चित ही इन्हें भारी मंत्री पद भी मिलेगा ही। इस बदलाव में दूसरों को कुछ मिला या नहीं लेकिन इंदौर जिले के पद कैलाश विजयवर्गीय और तुलसी सिलावट की वरिष्ठता और कद के आगे दब से गए हैं। स्वतंत्र समय ने चुनाव में भाजपा विधायकों के जीतने के बाद ही बता दिया था कि कैलाशजी और तुलसी को मंत्रिपद मिलेगा ही लेकिन बाकियों की उम्मीदें अब धूमिल हो गई हैं।

कद तो राष्ट्रीय महासचिव का था लेकिन….

कैलाश विजयवर्गीय का कद राष्ट्रीय महासचिव का था। पहले उनके मुख्यमंत्री होने की संभावना थी। जब यह पद नहीं मिला तो प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी की संभावना थी, वो भी नहीं हुआ लेकिन उन्हें मंत्री पद जरूर दिया गया है। प्रहलाद पटेल से लेकर राकेश सिंह तक को मंत्री पद दिया गया है। इस प्रकार सभी वरिष्ठों को इसमें संतुष्ट करने की कोशिश की गई है।

कैलाशजी के बाद कुछ ही नहीं

कैलाशजी के मंत्री पद बनने के बाद शहर के अन्य किसी को मंत्री बनाना बनता ही नहीं था। हालांकि, दौड़ में बहुत सारे नाम थे। एक के बाद अगर एक की तुलना करें तो सबसे तगड़ा दावा रमेश मेंदोला का था। चार प्रदेशों के चुनावों में सबसे बड़ी और लगातार जीत के बाद उनका दावा सबसे ज्यादा मजबूत माना जा रहा था। खबरों में तो कैलाशजी द्वारा ही उनका नाम प्रस्तावित करने की बात कही जा रही थी, लेकिन यह सब खबरों तक ही सीमित रहा। दूसरा बड़ा दावा मालिनी गौड़ का था। यह निश्चित था कि उषा ठाकुर का टिकट शायद कट जाएगा और महिला होने के नाते मालिनी का दावा सबसे मजबूत लग रहा था। उन पर शिवराज का ठप्पा शायद भारी पड़ा। उनके स्थान पर निर्मला भूरिया को महिला के रूप में स्थान मिला। निर्मला का आरक्षित वर्ग से होना और झाबुआ जिले के प्रतिनिधि के रूप में होना उनके लिए फायदेमंद रहा।

सिलावट का मंत्री होना ही महत्वपूर्ण

कैलाशजी के बाद तीन बार मंत्री रह चुके तुलसीराम सिलावट एक बार फिर मंत्री के रूप में शामिल किए गए हैं। उनका नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा सबसे पहले प्रस्तावित किया गया था। इस लिहाज से और आरक्षित वर्ग से होना उनके लिए भी फायदेमंद रहा। अन्यथा पुराने मंत्रियों के पत्ताकट स्कीम में उनका नाम भी चल रहा था। उनके मंत्री बनने से मधु वर्मा का पत्ता कट हो गया। अन्यथा उनकी वरिष्ठता और बड़ी जीत के हिसाब से उनका दावा भी पुख्ता बताया जा रहा था। उधर पांच बार से विधायक के रूप में पदस्थ होने और एक बार मंत्री रहने वाले महेन्द्र हार्डिया भी इस मंत्रिमंडल से बाहर नजर आ रहे हैं। उनका दावा भी कैलाश और तुलसी की वरिष्ठता में दब गया।

आगे फिर से होंगे दौड़ में

कुल मिलाकर इंदौर से बने दो मंत्रियों ने बाकी सारे विधायकों की आस को फिलहाल खत्म कर दिया है। यह कुछ अलग नहीं है। यह भी साफ है कि कैलाशजी को अब बड़ा पद भी मिलेगा। हालांकि यह कुछ निश्चित नहीं है क्योंकि उनके आगे कुछ और वरिष्ठ भी हैं। इस प्रकार उनका पद क्या होगा, यह तो एक-दो दिन में ही साफ हो जाएगा। तुलसी सिलावट को फिर से मंत्री बनाना ही महत्वपूर्ण है। उनका पद भी बहुत बड़ा हो, यह जरूरी नहीं है। पिछली कैबिनेट में तुलसी सिलावट जल संसाधन मंत्री की भूमिका में थे।

विस्तार में मिल सकता है इन्हें मौका

मंत्रिमंडल में बचे हुए चार पदों में इंदौर को आगामी विस्तार में एकाध मंत्री पद मिल सकता है। उस समय फिर से रमेश मेंदोला, मालिनी गौड़, महेन्द्र हार्डिया और मधु वर्मा एक बार फिर दावेदारी की दौड़ में होंगे।