कुबेरेश्वर धाम में दिखेगी अयोध्या प्राण प्रतिष्ठा की झलक, मंदिर में जलाए जाएंगे 51 हजार दीपक

स्वतंत्र समय, सीहोर

आगामी 22 जनवरी को अयोध्या की तरह जिला मुख्यालय के समीपस्थ चितावलिया हेमा स्थित निर्माणाधीन मुरली मनोहर एवं कुबेरेश्वर महादेव मंदिर में रामलला प्राण-प्रतिष्ठा की झलक देखने को मिलेगी, मंदिर में अंतर्राष्ट्रीय कथा वाचक भागवत भूषण पंडित प्रदीप मिश्रा के निर्देशानुसार कई कार्यक्रम कराए जाएंगे, इसे लेकर तैयारियां की जा रही है। 22 जनवरी सोमवार को सुबह बाबा की विशेष आरती की जाएगी और उसके पश्चात भंडारे के अलावा दीपोत्सव का आयोजन किया जाएगा।
गत दिनों भागवत भूषण पंडित श्री मिश्रा ने अपने संदेश में कहा कि अनोखे ढंग से 22 जनवरी के दिन को मनाया जाएगा ताकि हर व्यक्ति के मन में इस दिन के प्रति जोश और उत्साह बढ़े इस पर काम किया जा रहा है। भगवान श्री राम हम सब के आदर्श है, 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर मनाई गई दीपावली की तर्ज पर 500 वर्षों के लंबे समय के बाद हो रही प्राण प्रतिष्ठा की खुशी में 22 जनवरी को घर-घर दीपावली मनाई जाए। इसके लिए पंडित श्री मिश्रा ने सभी क्षेत्रवासियों और देशवासियों से कहा कि प्राण-प्रतिष्ठा का महोत्सव आस्था के साथ मनाए। श्री राम के महत्व को लोगों को समझाया है। भगवान राम ने कई ऐसे महान कार्य किए हैं जिसने सनातन धर्म को एक गौरवमयी इतिहास प्रदान किया है। भगवान विष्णु ने राम बनकर असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर जन्म लिया। भगवान श्री राम ने मातृ-पितृ भक्ति के चलते अपने पिता राजा दशरथ के एक आदेश पर 14 वर्ष तक वनवास काटा। नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण भगवान राम ने प्रस्तुत किए वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक बन गए। 22 जनवरी को कुबेरेश्वरधाम पर लगेगा भक्तों का कुंभ विठलेश सेवा समिति के मीडिया प्रभारी प्रियांशु दीक्षित ने बताया कि आगामी 22 जनवरी को अयोध्या में होने वाले प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर कुबेरेश्वरधाम पर गुरुदेव के आदेशानुसार भव्य तैयारियां की जाएगी। भव्य आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु धाम पर आऐंगे और करीब 51 हजार दीपों से धाम को रोशन किया जाएगा। इसके अलावा भव्य भंडारे का आयोजन भी किया जाएगा। हर रोज हजारों श्रद्धालु कर रहे पूजा अर्चना जिला मुख्यालय स्थित प्रसिद्ध कुबेरेश्वरधाम पर गुरुवार को यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं ने पूजा अर्चना की और रुक्मणी अष्टमी का पर्व मनाया गया। नियमित रूप से पूजा अर्चना और भगवान की आरती की गई थी। इस मौके पर पंडित विनय मिश्रा ने बताया कि अष्टमी को ही माता लक्ष्मी ने देवी रुक्मिणी के रूप में जन्म लिया था। रुक्मिणी दिखने में अति सुंदर एवं सर्वगुणों से संपन्न थी। उनके शरीर पर माता लक्ष्मी के समान ही लक्षण दिखाई देते थे, इसीलिए उन्हें लोग लक्ष्मीस्वरूपा भी कहते थे। मान्यता है कि जो कोई स्त्री रुक्मिणी अष्टमी का व्रत करती है तो उस पर देवी हमेशा अपनी कृपा बनाए रखती है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। भगवान सत्यनारायण, पीपल व तुलसी को अघ्र्य दें। मान्यताओं के अनुसार पीपल में भगवान विष्णु और तुलसी में माता लक्ष्मी जी का वास होता है। घर के मंदिर में जल से छिडक़ाव कर एक चौकी स्थापित करें और उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। इसके बाद चौकी पर सर्वप्रथम भगवान गणेश की स्थापना करें और फिर भगवान कृष्ण और देवी रुक्मिणी की मूर्ति स्थापित करें। चौकी के एक ओर शुद्ध जल से भरा हुआ मिट्टी का कलश रखकर ऊपर आम, अशोक के पत्ते रखें और फिर एक नारियल रखें। अब पूजा आरंभ करें। पूजन करते समय सर्वप्रथम भगवान गणेश जी की पूजा करें, फिर भगवान कृष्ण व देवी रुक्मिणी को जल से स्नान कराएं और फिर उनका अभिषेक करें।