स्वतंत्र समय, सीधी
सूबे के मुखिया डॉ मोहन यादव आज 5 जनवरी को रीवा संभाग की समीक्षा बैठक संभागीय मुख्यालय में ले रहे है। इस बैठक में संभाग अन्तर्गत आने वाले जिलों की विभागवार समीक्षा की जायेगी। जिसमें सीधी जिले का भी नाम शामिल है। खास बात यह है कि मैदान का निरीक्षण न होने के चलते अधिकारी इस बात से बेफिक्र है कि कागजों में ही ऑकड़ों की इबारत रचनी है जितना बन सके उतना रच दो। मुख्यमंत्री जी से यह आग्रह जिलेवासियों ने किया है कि ऑकड़ों की फाईल जप्त कर जिला पंचायत एवं ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के माध्यम से कराये गए अरबों रूपये के निर्माण कार्यो की जमीनी हकीकत जानने एक उच्च स्तरीय जांच टीम गठित करें टीम में शामिल सदस्यों को यह भी निर्देशित करें कि इनके बहकावें न आकर निष्पक्ष जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करें।
पूर्ण विश्वास है कि अगर मुख्यमंत्री के निर्देश पर गठित टीम अगर पारदर्शिता पूर्ण सीधी जिले के कागजी विकास कार्यो की जमीनी हकीकत जांचने का प्रयास करेगी तो यहां कई करोड़ का भ्रष्टाचार उजागर हो सकता है। उल्लेखनीय है कि सीधी में बतौर प्रभारी कार्यपालन यंत्री हिमांशु तिवारी आरईएस की पदस्थापना भी पांच वर्ष से अधिक हो गई है लेकिन इनका तबादला भी कागजों में ही सीमित रह जाता है। सीधी में आरईएस के कार्यपालन यंत्री का प्रभाव कुछ इस तरह है कि तकनीकी व जिन कार्यो के लिए विभागों का गठन पृथक से किया गया है उन्हे उन कार्यो की जिम्मेदारी नही दी जाती बल्कि सीईओ के इशारे पर सारे कार्य आरईएस को ही सौंप दिये जाते है।
हैरानी की बात यह है कि ग्रामीण विकास विभाग द्वारा नहर, डैम, बांध, तालाब, सडक़, भवन के सारे कार्य स्वयं की निर्माण एजेंसी के माध्यम से कराये जा रहे है। जबकि लोक निर्माण विभाग,लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग,जल संसाधन विभाग जो इन कार्यो के लिए पृथक से तैयार किया गया है उसे दूर-दूर तक शामिल नही किया गया है। जिससे यह साफ जाहिर हो रहा है कि तकनीकी ज्ञान का अभाव होने के बाद भी जिसके द्वारा यह कार्य कराये जा रहे है वह सिर्फ सरकारी राशि को हजम करने की कार्ययोजना है।
अधर में लटका बेलहा डैम
जिले के कुसमी जनपद पंचायत अन्तर्गत बेलहा में सिंचाई परियोजना के नाम पर पहाड़ काटकर सुरंग के माध्यम से नदी का पानी बांध में लाने के नाम पर करीब 10 करोड़ रूपये की कार्ययोजना तैयार की गई थी। जिसमें 9 करोड़ से अधिक का भुगतान भी हो गया है। लेकिन डैम की स्थिति यह है कि अभी भी अधर में लटका हुआ है। खास बात यह है कि सुरंग निर्माण के लिए जल संसाधन या लोक निर्माण विभाग को जिम्मेदारी दी जाती है इसके बाद भी विभागों द्वारा बतौर निविदा आमंत्रित कराकर सुरंग निर्माण के लिए चर्चित संविदाकारों को ही कार्य की जिम्मेदारी दी जाती है। लेकिन यहां आरईएस विभाग ने स्थानीय विधायक को गुमराह करते हुए स्वयं की एजेंसी तैयार कराकर सुरंग निर्माण कार्य आरंभ
करा दिया।
वर्तमान में यह निर्माण कार्य 55 फीसदी हुआ है। जबकि स्वीकृति राशि से 90 फीसदी का भुगतान हो चुका है। राशि आहरण के लिए आरईएस के कार्यपालन यंत्री हिमांशू तिवारी ने यहां भी एक बड़ा खेल खेला है जिसमें मझौली के एक सौभद्रीय कंस्ट्रक्शन के नाम समूची राशि हस्तांतरित कर डकार ली गई है।
गौशाला-अमृत सरोवर में गोलमाल
सीधी जिले में गौसंरक्षण के नाम पर 84 गौशाला स्वीकृत की गई है जिसमें अभी तक 23 गौशालाओं का निर्माण कार्य शुरू ही नही कराया गया है। जबकि कागजों में 38 को पूर्ण बता रहे है। इस कार्य में लगभग 17 करोड़ रूपये खर्च किये गए है। इसी तरह अमृत सरोवर के नाम पर सीधी जिले में 158 तालाब निर्माण की स्वीकृत बीते तीन वर्ष के भीतर की गई थी। जिसमें अभी तक महज 138 अमृत सरोवर के कार्यो को पूर्ण दिखाया जा रहा है जबकि यह भी सच नही है। इसके अलावा 20 को अधूरा निर्माण कार्य बताया जा रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि करीब एक सैकड़ा अमृत सरोवर के कार्य अभी भी आधे अधूरे पड़े हुए है। पूर्ण कार्य दर्शाकर राशि हजम कर ली गई। सीधी जिले में मनरेगा योजनान्तर्गत कराये जा रहे कार्यो में जमकर ठेकेदारी प्रथा
हावी रही।