अमिताभ का भारतीय क्रिकेट के सर्वोच्च प्रभाव क्षेत्र में पहुंचना

सुशीम पगारे

भरतीय क्रिकेट जगत का इंदौर से पुराना और गहरा नाता है।देश की टीम को 1932 में पदार्पण क्रिकेट टेस्ट मैच में इंग्लैंड के खिलाफ पहला कप्तान सी के नायडू के रूप में मिलना हो या फिर उसके 92 वर्ष बाद यानी 2024 में क्रिकेट के जनक देश इंग्लैंड के ही विरुद्ध घरु श्रृंखला में अमिताभ विजयवर्गीय के रूप में टीम को मैनेजर मिलना हो।इंदौर हर दौर में भरतीय क्रिकेट में ऊर्जा का संचार करता रहा है।आज से प्रारम्भ हो रही इंग्लैंड-भारत टेस्ट सीरीज में

अमिताभ विजयवर्गीय भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर बने हैं तो यह प्रतिष्ठित पद उन्हें रातों-रात या जोड़-तोड़ से नहीं मिला है बल्कि क्रिकेट के प्रति उनके पिछले लगभग 40 वर्षों के समर्पण और त्याग के कारण मिला है। मैं यह यूं ही नहीं लिख रहा। अमिताभ के उक्त योगदान को,संघर्ष के मैंने नजदीक से देखा है।2008 के बाद तो जैसे क्रिकेट प्रशासन उनके लिए ऐसी घुमावदार पिच बन गया जिस पर उन्ही के जैसा धैर्यवान व्यक्ति टिक पाया।कोई और होता तो क्रिकेट से तौबा कर लेता।

उनका दोष यही था कि वे मध्यप्रदेश क्रिकेट से जुड़े कई लोगों की तरह ‘फ्रंट फुट’ पर आ कर एकदम से ‘बैक फुट’ पर नहीं गए।अमिताभ ने संघर्ष का रास्ता अपनाया।क्रिकेट नहीं छोड़ा बल्कि प्रदेश स्तर से नीचे आकर ग्रास रुट यानी जमीनी स्तर पर क्रिकेट को समृद्ध किया।उन्होंने मध्यप्रदेश में क्रिकेट की नर्सरी जिमखाना ग्राउंड को पुनः अपनी कर्मभूमि बनाया जहां उन्होंने 14 वर्षीय युवा के रूप में मध्यप्रदेश क्रिकेट के शलाका पुरुष संजय जगदाले से क्रिकेट का ककहरा सीखा था।

जिमखाना मैदान पत्थर-कंकड़ की अवस्था से ऊपर उठ कर जिस तरह आज क्रिकेट की तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से भरा विश्वस्तरीय(अतिशयोक्ति न मानें) ग्राउंड के रूप में आपके सामने है तो इसमें अमिताभ का महत्वपूर्ण योगदान है।यह तभी सम्भव हो पाया जब उन्हें इंदौर डिविजनल क्रिकेट एसोसिएशन के तत्कालिक अध्यक्ष और मध्यप्रदेश के अत्यंत डायनामिक राजनेता आदरणीय कैलाश जी विजयवर्गीय का खुला साथ मिला।

कैलाश जी ने संसाधन जुटाने में जो मदद की उसका इंदौर और मध्यप्रदेश का क्रिकेट, कोई माने या न माने सदैव ऋणी रहेगा।इंदौर के क्रिकेट के लिए कैलाश जी जैसा काम कभी महाराजा यशवंत राव होल्कर ने किया था।अमिताभ यदि भरतीय क्रिकेट टीम के आज मैनेजर बने हैं तो उसकी पृष्ठभूमि में भी कैलाश जी हैं इसे कौन नकार सकता है?यहां यह भी कहना होगा कि अमिताभ का क्रिकेट के लिए समर्पण,ईमानदारी और योग्यता वे गुण हैं जिससे कैलाश जी भी खासे प्रभावित हैं।एमपीसीए के पूर्व अध्यक्ष माननीय ज्योतिरादित्य जी सिंधिया ने भी अमिताभ को पहचाना और बड़प्पन दिखाते हुवे ससम्मान बोर्ड मीटिंग में जाने के लिए उनके नाम को हरी झंडी दी।

भरतीय क्रिकेट की सर्वोच्च संस्था बीसीसीआई में कोई भी पद पाना, मान कर चलिए अत्यंत दुरूह कार्य है।कहावत ‘एक अनार सौ बीमार’ यहां आकर ‘एक अनार करोडों बीमार’ बन जाती है।क्रिकेट से जुड़े लोग इसे अच्छे से समझते हैं, ऐसे में बीसीसीआई के सर्वशक्तिमान सचिव जय शाह ने भारतीय क्रिकेट टीम के मैनेजर पद की जिम्मेदारी अमिताभ विजयवर्गीय को सौंपी है तो इसके कुछ मायने भी हैं।पिछले लगभग डेढ़ साल से अमिताभ एमपीसीए की तरफ से क्रिकेट बोर्ड की मीटिंग्स में जा रहे हैं।

डेढ साल के छोटे से समय में अमिताभ ने अपनी क्षमताओं की छाप अवश्य छोड़ी तभी तमाम अन्य बहुत बड़े लोगों की दावेदारी और प्रयासों को दरकिनार करते हुए बोर्ड ने यह जिम्मेदारी अमिताभ को सौंपी।आगामी 50 दिनों तक अमिताभ उस भरतीय क्रिकेट टीम के साथ रहेंगे जिसके कोच महान बल्लेबाज राहुल द्रविड़ हैं तो आधुनिक क्रिकेट के सबसे बड़े बल्लेबाज विराट कोहली हैं।जैसा मैं अमिताभ को जानता हूँ यदि ये दोनों और पूरी टीम 50 दिन बाद उनकी क्षमताओं से प्रभावित हो जाए तो आश्चर्य नहीं करिएगा।

निश्चित तौर पर भारतीय क्रिकेट के प्रबंधक का अनुभव अमिताभ की क्रिकेट और प्रशासक की समझ को और विस्तार देगा।साथ ही यह उनके लिए वो स्वर्ण अवसर भी है जब क्रिकेट बोर्ड में उनके पैर मजबूती से जम सकते हैं।वे जब विश्व क्रिकेट की सबसे मजबूत टीमों में से एक भारतीय क्रिकेट टीम के साथ लगभग दो माह बिता कर इंदौर लौटेंगे तो जो अनुभव उनके पास होगा वह इंदौर और मध्यप्रदेश के क्रिकेट को कितना लाभ देगा इसकी कल्पना की जा सकती है।बधाई अमिताभ…

(लेखक वरिष्ठ खेल समीक्षक एवम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कमेंटेटर हैं)