स्वतंत्र समय, नई दिल्ली
लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। कोर्ट ने स्कीम को असंवैधानिक बताया। बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना गलत है। यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंंघन है। पांच जजों में सर्वसम्मति से इस पर फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ने कहा कि पॉलीटिकल प्रोसेस में राजनीतिक दल अहम यूनिट होते हैं। वोटर को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है। इससे मतदान के लिए सही चयन होता है।
यह स्कीम सूचना के अधिकार का उल्लंघन… कोर्ट ने ये भी कहा
कोर्ट ने कहा इस फैसले का सीधा असर राजनीतिक दलों पर पड़ेगा। फिलहाल कोई दिशा निर्देश या स्टेटमेंट तय नहीं किया गया है। मतदाताओं के लिए कोर्ट ने कहा कि इस तरह की फंडिंग की वजह से मतदाता अपने वोट का सही इस्तेमाल नहीं कर पता है राजनीतिक फंडिंग पब्लिक पॉलिसी में बदलाव के मकसद से नहीं होती है। छात्र, मजदूर आदि भी चंदा देते हैं। ऐसे में सिर्फ चुनावी चंदे को गोपनीयता के दायरे में रखना अनुचित है।
सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को
2018 से अब तक इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए सबसे ज्यादा चंदा भाजपा को मिला है। 6 साल में चुनावी बांड से भाजपा को 6337 करोड़ की चुनावी फंडिंग हुई। कांग्रेस को 1108 करोड़ चुनावी चंदा मिला। इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए भारी चंदा अर्जित करने वालों में सपा, बसपा, टीएमसी टीडीपी जैसे क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं।