Rahul Gandhi की कांग्रेस की कमजोरियों का विश्लेषण


लेखक
डॉ. हितेष वाजपेयी
प्रदेश भाजपा प्रवक्ता

कांग्रेस पार्टी की कमज़ोरियाँ व राहुल गांधी ( Rahul Gandhi ) के नेतृत्व की कमियों, जनता से अलगाव और आत्मनिरीक्षण करने में विफलता के संयोजन से भारी निराशा उपजी हैं।ऐसा लगता है कि पार्टी नेतृत्व द्वारा इन कमजोरियों पर बिलकुल भी ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

1. गुणवत्तापूर्ण नेतृत्व का अभाव : अतीत में महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, लाल बहादुर शास्त्री जैसे दिग्गजों के नेतृत्व के बावजूद, कांग्रेस पार्टी में वर्तमान में उस नेतृत्व क्षमता का अभाव है जो वह कभी पेश करती थी। मजबूत नेतृत्व की कमी पार्टी की जनता से प्रभावी ढंग से जुडऩे और उन्हें आगे ले जाने की क्षमता में बाधा डालती है। लोगों का वर्तमान नेताओं से विश्वास उठ चुका है।
2. लोगों से तोड़ा नाता: पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर लोगों की नब्ज से संपर्क खोने का आरोप लगाया गया है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा भारत जोड़ो यात्रा जैसी पहल के माध्यम से फिर से जुडऩे के दिखावटी प्रयासों के बावजूद, पार्टी के वर्तमान नेतृत्व और आम जनता के बीच लगातार अंतर बना हुआ है।
3. आत्मनिरीक्षण का अभाव: लगातार मिल रही चुनावी हार के बावजूद, पार्टी में लगातार आत्मनिरीक्षण का कोई विचार दिखाई दे रहा है। अतीत की गलतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण करने और उनसे सीखने में विफलता ने पार्टी के भीतर अहंकार की भावना को बढ़ावा दिया है, जिससे एक समय के वफादारों का अलगाव और बढ़ गया है और वे लगातार कांग्रेस को छोड़ रहे हैं।
4. राष्ट्रीय मुद्दों से संपर्क से बाहर: ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस पार्टी प्रमुख मुद्दों पर राष्ट्रीय मूड के दायरे से बाहर है, जिससे कि भाजपा को हावी होने का मौका मिल रहा है। राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह, तीन तलाक कानून का अपराधीकरण, अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) जैसे मुद्दों पर कांग्रेस के रुख ने उन पर ही सवाल उठाए हैं और कुछ वर्गों के बीच घबराहट पैदा की है।
5. अतीत के गौरव पर निर्भरता: पार्टी की अतीत के गौरव पर अत्यधिक निर्भरता, अगली पीढ़ी और सहस्राब्दियों के बीच अलगाव, महत्वपूर्ण कमजोरियाँ पैदा करती है। नई पीढ़ी को जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की ऐतिहासिक उपलब्धियों के बारे में जागरूकता का अभाव है, जबकि भाजपा ने यूपीए के शासन के दौरान कथित भ्रष्टाचारों और कमियों को उजागर करने का काम किया है।
6. संगठन की वित्तीय बाधाएँ: 225 करोड़ रुपये के बैंक खाते फ्रीज होने के बाद नकदी संकट चुनाव प्रचार और अन्य पार्टी गतिविधियों के लिए एक बड़ी बाधा है। यह वित्तीय बाधा चुनावी लड़ाई और जमीनी स्तर पर पहुंचने के प्रयासों में अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने की पार्टी की क्षमता को कम करती है। कांग्रेस ने हमेशा सत्ता मूलक पैसे से ही चुनाव लडऩे की तैय्यारी की थी