दमोह मुख्यालय से 16 किमी दूर बुंदेलखंड के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र जागेश्वरनाथ धाम बांदकपुर में विराजमान भगवान शिव 13वें ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रसिद्ध हैं।
दमोह – महाशिवरात्रि के पहले प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र जागेश्वर धाम बांदकपुर में एक बार फिर बड़ा चमत्कार देखने मिला है। यहां पहुंचे भक्तों के लिए मंदिर के ऊपर एक तेज चमक दिखाई देती है। जिसे लोग ठीक से भी देख नहीं पाते है। इसे लोग भगवान भोलेनाथ का चमत्कार मान रहे है। लोगों के अनुसार सुबह-सुबह हुए इस चमत्कार में भगवान ने भक्तों को साक्षात दर्शन दिए है। बता दें कि यहां विराजमान भगवान भोलेनाथ के अनेक चमत्कार सामने आ चुके है। महाशिवरात्रि के पहले हुए अब तक सबसे बड़े इस चमत्कार की जानकारी लगते ही बांदकपुर में बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ लग गई है। महाशिवरात्रि के पहले हुए चमत्कार के बाद लोगों में खासा उत्साह यहां देखने मिल रहा है। यहां कोई हर हर महादेव, बम भोले के जयकारे लगाते हुए पहुंच रहा है। लोगों को हर बार की तरह यहां एक और चमत्कार देखने मिलेगा। यहां की विशेषता है महाशिवरात्रि पर भगवान भोलेनाथ और माता-पार्वती के मंदिर पर लगे झंडे अपने आप ही आपस में मिल जाते है। इसके लिए मान्यता है कि अगर सवा लाख कांवर यहां पहुंचते है तभी ऐसा होता है। मंदिर कमेटी के लोगों के अनुसार इस बार भी यह चमत्कार को नमस्कार करने का मौका लोगों को मिलेगा। बांदकपुर में हजारों लोग प्रभु दर्शन को पहुंच रहे है। इसके लिए पुलिस प्रशासन द्वारा भी तगड़ी सुरक्षा व्यवस्था यहां रखी गई है।
मध्यप्रदेश का इतिहास के लेखक पंडित गोरेलाल तिवारी और रायबहादुर हीरालाल साहब ने लिखा है कि त्रेतायुग में भगवान राम की चित्रकूट यात्रा के पश्चात पंचवटी की दक्षिण यात्रा दमोह सागर के पास से हुई होगी, इसके प्रमाण उन्होंने दिए हैं। बांकदपुरी जागेश्वर रहस्य के रचियता कवि भैरव प्रसाद बाजपेयी ने भी अपने जागेश्वर रहस्य में लिखा है कि युग परिवर्तन से यह तीर्थ क्षेत्र ध्वस्त हो गया तथा यह आज से 290 वर्ष पूर्व सन् 1711 में पुन: भगवान जागेश्वर स्वयं प्रकट हुए। भगवान श्री जागेश्वर नाथ के स्वयं प्रकट होने के विषय में बांदकपुरी जागेश्वर रहस्य में लिखा गया है।
भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग की जानकारी देश और दुनिया को हैं। हर भक्त की भोलेनाथ के इन दरबार में पहुंचकर दर्शनलाभ, अभिषेक की आकांक्षा होती है। आज हम आपको दर्शन कराने जा रहे हैं देश के तेरहवें ज्योतिर्लिंग के। जिनके चमत्कार की कहानी यहां पीढिय़ों से पहुंचने वाले भक्त बयां करते हैं। देश भर में भक्तों का यहां हर ज्योतिर्लिंग की तरह जमावड़ा लगता है। ऐसी मान्यता है यहां भोलेबाबा के दर्शन मात्र से वर्षों के पाप मिट जाते हैं। भगवान के चमत्कारों से तो हर भक्त वाफिक हैं। ऐसे ही कुछ चमत्कारों के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जो पहले कभी नहीं पढ़े गए।
हम बात कर रहे हैं बुंदेलखंड और देश के प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र बांदकपुर में विराजमान जागेश्वर नाथ भगवान की। दमोह जिले में स्थित है। भगवान जागेश्वर नाथ को देश के १३वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता हैं। यहां फिल्म अभिनेताओं से लेकर अनेक वीआईपी का हमेशा जमावड़ा लगा रहता है। मान्यता है कि चारों धाम की यात्रा करने के बाद यदि आपने भगवान जागेश्वर नाथ का नर्मदा जल से अभिषेक नहीं किया है तो यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती है। इसीलिए जागेश्वरनाथ को13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाने लगा है।
अठारहवीं शताब्दी के अंत में एक दिन सुबह से इंदिरा नाम की कन्या जो बालक बालिकाओं के साथ मकर संक्रांति के समय देव पूजन के लिए आई थी। भक्तों की भीड़ के धक्कों के लगने या फिसलने के कारण वह बावली में डूबकर मर गई। कथानुसार व भैरव प्रसाद बाजपेयी द्वारा लिखित श्री बांदकपुरी जागेश्वर रहस्य के अनुसार मंदिर के पुजारियों ने उस मृत बालिका के शरीर को भगवान जागेश्वर नाथ महादेव जी की मूर्ति के समक्ष रखकर महादेव की स्तुति करते हुए कन्या को जीवन दान देने की प्रार्थना की गई। प्रार्थना के फलस्वरूप कन्या जीवित हो उठी।
दिनांक 15 जनवरी 1938 दिन सोमवार की दोपहर 2 बजे भूकंप के धक्के निकल जाने के अनंतर ही महादेव जी के मंदिर में विशाल स्वर्ण कलश के त्रिशूल भाग के ऊपरी कोण से आधी इंच मोटी जल धारा लगभग १५ मिनट तक अनवरत रूपेण निकलती रही। मकर संक्रांति और सोमवती अमावस्या को मेला काल में उपस्थित जनसमूह ने इस चमत्कारिक घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखा। गुलाबरानी नामदेव ने अपने बच्चों को इस चमत्कारिक घटना के बारे में बताया था।
15 अगस्त 1944 को सुबह 11 बजे श्रीमंदिर धर्मशाला की दूसरी मंजिल का ऊपरी भाग अकस्मात गिर गया। मंजिल के नीचे १२ वर्षीय बाल मूलचंद चढ़ार खड़ा था। अत: यह बालक बिल्डिंग के हजारों मन वजनी मलमे के नीचे दब गया।विशेष सावधानी और परिश्रम से बालक के ऊपर का मलमा दूर किया गया। इस दौरान बालक के लिए जीवन दान की कामना जागेश्वरनाथ से मौजूद जनों द्वारा की गई। चमत्कार यह हुआ कि बालक सकुशल और जीवित निकला।उसके शरीर में कुछ साधारण चोट आई थीं।
1945 के जून माह में सांयकाल करीब 6 बजे फतेहपुर सीकरीसे जबलपुर दक्षिण में जाती हुई मालगाड़ी जिसमें विषाक्त बंबो की बोरियां भरी हुई थीं। इसके मध्यवर्ती डिब्बे में से बांदकपुर रेलवे स्टेशन के कर्मचारी वर्ग ने धुआं निकलता देखकर सिग्नल और झंडियों के आकस्मिक संकेतों से पूर्वी पॉइंट पर गाड़ी को रोक दिया। डिब्बा काटा गया और कटनी की तरफ तीन मील की दूरी पर ले जाया गया। इसके अंतर ही बमों का जलकर फूटना प्रारंभ हो गया। लगातार तीन घंटों तक अनवरत बम फूटते रहे। घटना से भयभीत ग्रामीण जीवन रक्षा के लिए भगवान जागेश्वर नाथ के मंदिर पहुंचे और प्रार्थना शुरू की।भगवान जागेश्वर नाथ की अनुकंपा से समीपस्थ दूरस्थ घटना के दर्शनार्थी आगत दर्शकों या किसी भी प्राणी की प्राण हानि नहीं हुई।
कहा जाता है कि भक्तों के द्वारा विशेष पर्वकाल में सवा लाख कॉवरों के पुनीत नर्मदा जल से श्री जागेश्वर नाथ महादेव का विधिवत पूजन करने पर महादेव और माता पार्वती के मंदिरों के स्वर्ण कलशों पर लगाई जाने वाली ध्वजाएं जो दूसरे से सौ फुट की दूरी पर रहती है, झुककर मिल जाती है। ध्वजाओं के मिल जाने की घटना का उल्लेख दमोह गजेटियर और दमोह दीपक में है।
सौभाग्यवती इंद्राबाई भालचंद्र ने अपने लेख 12 अगस्त 1970 में लिखा है कि मेरी छोटी उम्र में जब वह सात वर्ष की थी। पार्वती जी के मंदिर के पीछे की तरफ उनके पिता सदाशिवराव बेलापुर के साथ रहा करते थे। वे पुजारी थे। उस समय एक दिन दोपहर के समय अपनी बाल सहेलियों सहित खेलते समय किसी का धक्का लगने पर बावली में गिर गई। सब सहेलियां भग गई लेकिन एक मित्र शंकर जी के मंदिर में गया और श्री चरणें में मस्तक रखकर अपने मित्र को बचाने के लिए उसने प्रभु के चरणों में अनेक बार माथा टेककर प्रार्थना की और वह प्रदक्षिणा लगाने लगा। थोड़ी देर में उसकी मां उसको भोजन करने के लिए बुलाने आई, उसने मुझे बावली में से निकालने के लिए कहा। इस कार्य में कम से कम आधा घंटा लग गया। उन्होंने लिखा कि उन्हें याद है कि बावली में कोई एक अच्छा उज्जवल और बलवान साधु जिसकी जटा लंबी थी, वह नीचे से मुझे ऊपर की ओर ढकेल रहा था। मैं स्वत: अपनी आंखों से सब देख रही थी। पश्चात सब नजदीक लोग आ गए और मुझे ऊपर निकाला गया। उसके बाद मेरे घर मां और पिता को यह वार्ता मालूम हुई और वे आए। उनका कहना है कि उन्हें शंभर प्रभू ही पानी के ऊपर ही झेल रहे थे।