विपिन नीमा, इंदौर
होली-रंगपंचमी के बाद अब प्रदेश में लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Elections ) का रंग चढऩे लगेगा, प्रचार तेज होगा, दिग्गजो के दौरे शुरू होंगे। अगले दो माह कोई बड़ा त्यौहार नहीं हैं। प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में चुनाव महापर्व की ही धूम रहेगी। प्रदेश में दो सीएम के एक साथ चुनाव लडऩे का दूसरी बार संयोग बन रहा हैं। 26 साल पहले भी दो सीएम एक साथ चुनाव लड़े थे। इसमें दोनों ही सीएम चुनाव हार गए थे। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने सभी 29 सीट जीतने का दावा किया है वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 10 से 12 सीट जीतने का भरोसा दिलाया है। मध्य प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री भी चुनावी मैदान में है। राजगढ़ से दिग्विजय सिंह और विदिशा से शिवराज सिंह चौहान अपने-अपने भाग्य आजमा रहे हैं। जहां तक इंदौर की संसदीय सीट का सवाल है तो इस समय इंदौऱ में चुनावी सन्नाटा छाया हुआ हैं। न प्रचार हो रहा हैं, न ही नेताओं का हल्ला हो रहा हैं। दूसरी बाऱ चुनावी मैदान में उतरे सांसद शंकर लालवानी के सामने पहली बार चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के अक्षय बम हैं।
अगले दो माह Lok Sabha Elections महापर्व की धूम रहेगी
लोकतंत्र का सबसे बडा महापर्व लोकसभा चुनाव ( Lok Sabha Elections ) का बिगुल बज चुका है । चुनाव में अपनी अपनी जीत की आस लेकर सारे प्रत्याशी मैदान में उतर चुके हैं। अगले डेढ़ महीने तक इस महापर्व की गूंज रहेगी। अब चुनाव परिणाम यानि 4 जून तक देश में कोई भी बड़ा त्यौहार नहीं है। 9 अप्रैल को गुड़ी पड़वा है। इसके अलावा कोई त्यौहार नहीं है। होली और रंग पंचमी के त्यौहार के बाद अब लोकसभा चुनाव का रंग चढ़ता हुआ दिखेगा। इस दौरान प्रत्याशियों का प्रचार, दिग्गज नेताओं के दौरे स्टार प्रचारकों की रैली, जैसे चुनावी हटकंडे देखने को मिलेंगे। 1 अप्रैल से भाजपा और कांग्रेस समेत अन्य सभी दल पूरी तरह से सक्रिय हो जाएंगे। प्रचार के दौरान नेताओं के कई दावे वादे भी सुनने को मिलेंगे।
विदिशा में डबल हैट्रिक के लिए फिर मैदान में उतरे पूर्व सीएम
चार बार के मुख्यमंत्री, जनता के मामा और बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा शिवराज सिंह चौहान की अगर हम राजनीति में अनुभव की बात करें तो आज के मध्य प्रदेश के सबसे बड़े नेता हैं। शिवराज सिंह चौहान विदिशा से 5 बार सांसद रह चुके हैं। छठी बार भी इसी सीट से मैदान में उतरे है। पार्टी हाई कमान ने शिवराज सिंह चौहान को टिकट देकर यह स्पष्ट कर दिया है कि अगले 5 साल तक केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहेंगे। दिल्ली में आते ही उन्हें पार्टी में एक बड़ी जिम्मेदारी भी मिल जाएगी।
40 साल बाद राजगढ़ से सांसद के लिए फिर उतरे दिग्विजय सिंह
इसी प्रकार मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य दिग्विजय सिंह 40 साल बाद फिर से अपने गृह क्षेत्र राजगढ़ से सांसद का चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस के इस कद्दावर नेता ने बतौर मुख्यमंत्री ने 1993 से 2003 यानि 10 साल तक मध्य प्रदेश पर शासन किया है। हालांकि 1977 में सिर्फ 30 साल की उम्र में पहला विधानसभा चुनाव जीतने वाले दिग्विजय को 2019 में बीजेपी प्रत्याशी साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी थी। प्रज्ञा ने 2019 के चुनावों में दिग्विजय को 3.6 लाख से भी ज्यादा वोटों के भारी अंतर से हराया था। दिग्विजय सिंह हालांकि पिछली हार को भुलाकर राजगढ़ में नई चुनौती के लिए तैयार हैं और जोर शोर से अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं।
दो पूर्व मुख्यमंत्री एक साथ चुनाव लड़ने के लिए रणभूमि में उतरे
लोकसभा चुनाव में इस बार प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा से शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस से दिग्विजय सिंह मैदान में एक साथ उतरे हैं। हालांकि दोनों अलग अलग सीट के प्रत्याशी हैं। इससे पहले 1998 में आखिरी बार मध्य प्रदेश के दो पूर्व सीएम लोकसभा चुनाव लड़े थे। बीजेपी के पूर्व सीएम सुंदरलाल पटवा ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि इस चुनाव में पटवा 1,53,398 वोटों से चुनाव हार गए थे। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह भी इसी साल होशंगाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे। वह बीजेपी के सरताज सिंह से 68,981 वोटों के अंतर से हार गए थे।