स्वतंत्र समय, भोपाल
1620 करोड़ की बाणसागर परियोजना ( Bansagar Project ) में हुए घोटाले में 15 अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया था। लेकिन 9 इंजीनियरों के रिटायर होने और तीन की मौत होने पर सिर्फ 3 इंजीनियरों की पेंशन से 10 एवं 20 प्रतिशत राशि की वसूली करने का निर्णय सरकार ने लिया है। वैसे रिटायर अधिकारियों को भी चार साल से अधिक समय होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया। जबकि इस घोटाले मे ंसरकार को 11.36 करोड़ की चपत लगी है। बाणसागर परियोजना के मुख्य बांध के डाउन स्ट्रीम में एनर्जी डेसिपेशन अरेंजमेंट के रोलर बकेट की क्षति होने पर इसे ठीक कराने के लिए वर्ष 2007 में टेंडर किए गए थे। तत्कालीन समय में टेंडर से अधिक 62.52 प्रतिशत दर आने की वजह से टेंडर निरस्त कर दिया गया। बाद में 2009 में टेंडर करने पर इसकी दर 49.45 प्रतिशत अधिक एसओआर दर आई। इसे मंजूरी देने से सरकार को 6.89 लाख रुपए की क्षति हुई। इसके अलावा रोलर बकेट के नुकसान पर लंपसम टेंडर पर अगस्त 2007 से 2012 तक एपाक्सी ट्रीटमेंट कराया गया। जबकि एपॉक्सी ट्रीटमेंट के कार्यों की दर विभागीय रुपए 3 हजार घनमीटर के स्थान पर एक लाख 35 हजार रुपए घनमीटर के हिसाब से कार्य कराया गया। इससे अधिक दर का प्राक्कलन तैयार किया गया।
Bansagar Project की 2013 मेें दी 1620 करोड़ की स्वीकृति
बताया जाता है कि बाणसागर परियोजना ( Bansagar Project ) की पुनरीक्षित प्रशासकीय स्वीकृत 18 मई 2013 को 1620 करोड़ दी गई थी, जिसमें रोलर बकेट ट्रीटमेंट, रिटेनिंग वॉल के निर्माण, गेज डिस्चार्ज साइट आदि कार्यों के लिए 9.49 करोड़ का प्रावधान किया गया, लेकिन इंजीनियरों ने सिर्फ एपॉक्सी ट्रीटमेंट कराने पर ही 11 करोड़ की निविदा स्वीकृत करते हुए 11.36 करोड़ रुपए खर्च कर दिए और स्वीकृत राशि से अधिक पैसा खर्च करने की प्रशासकीय स्वीकृति सरकार से नहीं ली गई। इसके चलते इन कार्यों में भ्रष्टाचार पाए जाने पर तत्कालीन मुख्य अभियंता एमपी चतुर्वेदी, अधीक्षण यंत्री एपी सिंह, एसबीएस परिहार, कार्यपालन यंत्री डीएल वर्मा, लेखाअधिकारी जेपी वर्मा, अधीक्षक आरपी दुबे, सहायक वर्ग एक महेश शर्मा के अलावा तत्कालीन सीई केदारनाथ अग्रवाल, प्रमुख अभियंता केसी प्रजापति, सीई एचके मारू, व्हीके त्रिपाठी, अधीक्षण यंत्री एमपी मिश्रा, उपयंत्री एससी जैन तथा एसके गौतम को प्रथम दृष्ट्या दोषी ठहराया गया।
देरी के चलते बचे भ्रष्टाचार के दोषी इंजीनियर
जल संसाधन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, इन 15 अधिकारियों में से तत्कालीन ईएनसी केसी प्रजापति, कार्यपालन यंत्री रहे एपी सिंह तथा लेखाधिकारी जेपी वर्मा का निधन होने की वजह से इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। वहीं तत्कालीन सीई केदारनाथ अग्रवाल, तत्कालीन सीई एसके पाठक, व्हीके त्रिपाठी, एचके मारू, एमपी चतुर्वेदी , एमपी मिश्रा, एसबीएस परिहार, आरपी दुबे, एससी जैन के रिटायर हो जाने और रिटायरमेंट में चार साल से अधिक समय बीत जाने से इन्हें भी छोड़ दिया गया। यानि घोटाले में शामिल रहे इन अधिकारियों पर कोई कार्रवाई अधिकारियों की लापरवाही की वजह से नहीं हो सकीं। बचे तीन अधिकारी तत्कालीन कार्यपालन यंत्री डीएल वर्मा, उपयंत्री एसके गौतम तथा महेश प्रसाद शर्मा के विरुद्ध डीई प्रारंभ करते हुए आरोप पत्र थमाए गए। डीएल वर्मा के मामले में पीएससी से अभिमत मांगा गया है, वहीं एसके गौतम तथा महेश प्रसाद शर्मा की पेंशन से दो साल के लिए 10 प्रतिशत पेंशन काटने का निर्णय लेते हुए प्रकरण समाप्त कर दिया गया। इस आशय के आदेश विभाग ने 13 मार्च 2024 को जारी किए हैं।