mukhtar ansari की मौत पर बेवजह प्रलाप क्यों?

लेखक
सुरेश हिंदुस्तान

भारत के कुख्यात अपराधी मुख्तार अंसारी ( mukhtar ansari ) की मौत के मामले को राजनीतिक रंग देने का प्रयास किया जा रहा है। इस प्रकार मौत के बहाने एक बार फिर से तुष्टिकरण की राजनीति की जा रही है। आतंकियों और अपराधियों को संप्रदाय से अलग देखने की क़वायद करने वाले कुछ राजनीतिक दल इस मौत को भी सांप्रदायिक चश्मे से देख रहे हैं। जबकि यह सत्य है कि किसी भी अपराधी को सजा उसके स्वयं के कर्म ही देते हैं। लेकिन राजनीतिक दलों को इसमें भी वोट की राजनीति करने का बहाना मिल जाता है। आज उत्तरप्रदेश अपराध मुक्त राजनीति की ओर कदम बढ़ा रहा है, जिसके कारण अपराध करने वाला अपने कर्म को करने से पहले उसकी होने वाली परिणति को भांप लेता है और संभल जाता है, लेकिन उत्तरप्रदेश के विपक्षी दलों की दिशाहीन राजनीति फिर से उसी मार्ग पर जाने का रास्ता बनाने वाली दिख रही है, जिस मार्ग पर चलकर उत्तरप्रदेश बहुत पीछे हो गया था।

mukhtar ansari की मौत को हत्या बताने की राजनीति

उत्तरप्रदेश में बाहुबली नेता के तौर पर स्थापित होकर राजनीति करने वाले मुख़्तार अंसारी ( mukhtar ansari ) की मौत पर जमकर राजनीतिक बयानबाजी की जा रही है, कोई मुख़्तार की मौत को हत्या बताने की राजनीति की जा रही है तो कोई इसे वोट कबाडऩे की सीढ़ी बनाने का प्रयास कर रहा है। यह सभी जानते हैं कि मुख़्तार अंसारी कोई सामान्य अपराधी नहीं था, उस पर 65 मामले दर्ज थे, जिनमें उसको आठ को सजा भी मिल चुकी है, लेकिन इसके बाद भी इस कुख्यात अपराधी के साथ राजनीतिक दलों का खड़े होना कई प्रकार के प्रश्न पैदा कर रहा है। विपक्षी दल जो आरोप लगा रहे हैं, वे एक अपराधी को समर्थन देने जैसा हैं। इससे यह भी अर्थ निकाला जा सकता हैं कि विपक्ष की राजनीति का आधार भी माफिया ही हैं। आज राजनीति को अपराध से मुक्त करने की आवश्यकता है। ऐसी ही नीति बनाकर राजनीतिक दलों को अपने कदम बढ़ाने चाहिए। लेकिन हम यह भी भली भांति जानते हैं कि इस प्रकार की राजनीति के माध्यम से देश में जिस प्रकार का खेल खेला गया, उससे न तो देश का भला हुआ और न ही उस समाज का ही भला हुआ। आज इस बात से कोई भी व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता कि बाहुबल का पर्याय बन चुकी उत्तर प्रदेश की राजनीति में अब पहले जैसी धमक नहीं है। सरकारों को अपने संकेतों पर चलाने वाले उत्तर प्रदेश में माफिया राज का अंत हो चुका है। उल्लेखनीय है कि लम्बे समय से उत्तरप्रदेश में माफिया राज हावी था, यह माफिया हो चाहता था, राजनीतिक संरक्षण में उसको अंजाम भी देता रहा है। जिसके कारण तमाम अपराधी रंगदारी, हत्या, हत्या के प्रयास और ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए अपनी दबंगई दिखाते थे, अब वैसी दबंगई नहीं दिखती तो इसके पीछे शासन और प्रशासन की सकारात्मक सक्रियता ही है।

mukhtar ansari की मौत बीमारी के कारण ही हुई हो

आज ज़ब विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से मुख़्तार अंसारी की मौत के कारणों की जांच की मांग की जा रही है, तब इसे इसलिए न्यायसंगत कहा जा सकता है कि जांच की मांग करना पूरी तरह से न्यायोचित है, लोकतांत्रिक देश में यह अधिकार सभी को है, लेकिन किसी घटना के बारे निर्णय कर देने की राजनीतिक परंपरा जनता को भ्रमित करने जैसी ही मानी जाएगी। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि एक अपराधी को महिमामंडित करके उसके क्रियाकलापों का समर्थन करना राजनीति को अपराध से युक्त करना एक राजनीतिक प्रयास ही माना जाऐगा। यहां एक सवाल यह भी उपस्थित हो रहा है कि मुख़्तार अंसारी के परिजनों ने यह स्पष्ट तौर पर कहा था कि उनकी तबियत बहुत ही खराब है, इसलिए यह भी कहा जा सकता है कि हो सकता है कि मुख़्तार की मौत बीमारी के कारण ही हुई हो, जिसकी पूरी संभावना भी है, क्योंकि ज़ब उनका परिवार ही गंभीर बीमारी की बात कर रहा हो, तब ऐसे सवाल उठाना राजनीति के अलावा कुछ नहीं। दूसरी बात यह भी मानी जा सकती है कि एक समय अपराध की दुनिया के शातिर रह चुके मुख़्तार अंसारी की वह ज़मीन पूरी तरह से खिसक चुकी थी, जिसके सहारे लोगों में डर का माहौल बनता था। इसके कारण उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें आना स्वाभाविक है और यही चिंता की लकीरें बहुत बड़े अवसाद का कारण भी बनती हैं। हो सकता यही तनाव उसकी मौत का कारण हो।
उत्तरप्रदेश लम्बे समय तक अपराध युक्त राजनीति का केंद्र रहा है। तमाम अपराधी भी इसके सहारे राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करते रहे हैं। इस संरक्षण के माध्यम से बाहुबली राजनीति के पर्याय बने नेताओं ने जहां एक ओर ज़मीनों पर अवैध कब्जा किए, वहीं कभी कभी निर्दोष लोगों को डराने के लिए हत्या जैसे कारनामों को भी अंजाम दिया। इसके बाद भी कई राजनेता उनके साथ खड़े दिखाई दिए। आज ज़ब राजनीति को अपराध से मुक्त करने की आवाज उठाई जाती है, तब उसका इशारा यह स्पष्ट संकेत देता है कि बाहुबल के सहारे जो खेल खेला जाता है, उस पर रोक लगना चाहिए, लेकिन कुछ राजनीतिक दल इस पर मौन साध लेते हैं।

अपराध से मुक्त करने का साहस दिखाया

यही मौन उनको संरक्षण प्रदान करता है। उत्तरप्रदेश में निश्चित रूप से आज हालात बदले हुए हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिना किसी भेदभाव के प्रदेश को अपराध से मुक्त करने का साहस दिखाया है, उसके सार्थक परिणाम भी दिखाई देने लगे हैं। अब उत्तरप्रदेश में माफिया राज चलाने वाले कुख्यात अपराधी या तो जेल में हैं या फिर उन्होंने अपना नया ठिकाना तलाश कर लिया है। इसके बाद बने हालातों में उत्तरप्रदेश की जनता को राहत मिली है। अब न तो रंगदारी की जा रही है और न ही कहीं कोई अपराध करने की सोच रहा है। हम जानते हैं कि माफिया का सबसे ज्यादा निशाना भोले भाले नागरिक ही रहते हैं। इनको ही सबसे ज्यादा प्रताडऩा दीं जाती है। लेकिन अब ऐसे मामलों में बहुत कमी आई है। आम जनता ऐसा ही वातावरण चाहती है। अब मुख़्तार अंसारी की मौत को राजनीतिक रंग देना विपक्ष की किस मानसिकता को उजागर कर रहा है। कहीं यह उत्तरप्रदेश को फिर से बाहुबली राजनीति के मार्ग पर ले जाने का प्रयास है। अगर यह सत्य है तो इस प्रकार की राजनीति बंद होना चाहिए।
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)