एससी के fake caste certificate पत्र पर 31 साल से नौकरी कर रहे संजय मस्के

स्वतंत्र समय, भोपाल

मप्र में फर्जी जाति प्रमाण पत्र ( fake caste certificate ) के आधार पर करीब 2 हजार से ज्यादा लोग सरकारी नौकरी में आए। इनमें से कुछ रिटायर भी हो गए, लेकिन उनके विरुद्ध सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर पाई। यहां तक कुछ हाई कोर्ट से स्टे लेकर नौकरी कर सरकार को चूना लगा रहे हैं। इनमें पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर संजय मस्के का भी नाम शामिल हैं। वैसे उनका दावा है कि जिस समय ये प्रमाण पत्र बनवाया, उस समय आवक-जावक नंबर दर्ज नहीं होते थे, जबकि तहसीलदार ने लिखित में दिया है कि ये प्रमाण पत्र पांढूर्ना से नहीं बना है। मप्र में अनुसूचित जाति तथा जनजाति वर्ग के नाम पर फर्जी और संदिग्ध प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी पाने वालों की कमी नहीं है। कई अफसरों ने तो नौकरी ही नहीं पाई, बल्कि प्रमोशन का लाभ भी उठाया। फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों में मजिस्ट्रेट, आईपीएस, राज्य प्रशासनिक सेवा, तहसीलदार, डीएफओ, तहसीलदार, पटवारी, राजस्व निरीक्षक, पुलिस इंस्पेक्टर, इंजीनियर आदि शामिल हैं। सरकार ने तत्कालीन आईएफएस एके भूगांवकर पर हाईकोर्ट आदेश के चलते कार्रवाई की थी, लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट से स्टे ले आए थे। इसी तरह उनके भाई व्हीके भूगांवकर अभी भी धड़ल्ले से पीडब्ल्यूडी में अधीक्षण यंत्री के रूप में काम कर रहे हैं। वैसे सरकार ने इन्हें न तो प्रमोशन दिया और न ही विभाग में किसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी से नवाजा।

सीई मस्के का fake caste certificate

पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजीनियर संजय मस्के का जाति प्रमाण पत्र ( fake caste certificate ) एससी वर्ग से 11 सितंबर 1990 को पांढूर्ना ग्राम से बना है, जबकि वह सरकारी नौकरी में सहायक यंत्री के पद पर 1992 में भर्ती हुए। इस प्रमाण पत्र के आधार पर प्रमोशन भी लिया, लेकिन राज्य स्तरीय छानबीन समिति में की गई शिकायत के आधार पर समिति ने जब पांढूर्ना तहसीलदार से 22 सितंबर 2022 को रिपोर्ट बुलाई तो तहसीलदार ने क्रमांक 1440/2022 के जरिए भेजी रिपोर्ट में कहा कि संजय मस्के आत्मज शंकरराव मस्के के संदेहास्पद जाति प्रमाण पत्र का मिलान वर्ष 1990 की राजस्व पंजी में पंजीबद्ध होना नहीं पाया गया। जिसके चलते जाति प्रमाण पत्र पंजीबद्ध न होने से राजस्व प्रकरण की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराया जाना संभव नहीं है। 18 मई 1967 को नगर पालिका पांढूर्ना की स्थापना हुई है, इसके पूर्व पांढूर्ना ग्राम था। उक्त जाति प्रमाण पत्र तत्कालीन अवधि में पंजीबद्ध नहीं किया गया है, इसलिए जाति प्रमाण पत्र पर क्रमांक अंकित नहीं है।

सही बना जाति प्रमाण पत्र

ये एससी वर्ग का प्रमाण पत्र वर्ष 1990 में बना है और उस समय तहसील कार्यालय में आवक-जावक नंबर दर्ज नहीं होता था। पुलिस जांच में भी पडोसियों ने इसकी पुष्टि की है। जो सच है, उसी आधार पर प्रमाण पत्र जारी हुआ है।
-संजय मस्के, चीफ इंजीनियर, पीडब्ल्यूडी