स्वतंत्र समय, ग्वालियर
किसी को घूमने का तो किसी को खाने पीने का शौक होता है, कई लोग तो अलग तरह की चीजे इकट्ठा करते हैं, लेकिन ग्वालियर में एक चायवाला प्रत्याशी ( tea seller candidate ) को चुनाव लडऩे का ऐसा जुनून है कि वह अब तक एक दो नहीं बल्कि 27 चुनाव लड़ चुका है. अब लोकसभा चुनाव में हिस्सा लेकर इसे अपना 28वां चुनाव बनाएगा. ये शख्स हैं आनंद कुशवाहा चायवाले. जो ग्वालियर समाधिया कॉलोनी में एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते हैं।
tea seller candidate ने फैसला कर लिया कि चुनाव लड़ेंगे
आनंद कुशवाहा बताते हैं कि, ‘अपने समाज में उनका उठाना बैठना था. 1994 में उन्होंने पहली बार पार्षद का चुनाव लडऩे का मन बनाया और फार्म भी भरा. उसी चुनाव में पूर्व मंत्री जो उस समय मंत्री नहीं थे नारायण सिंह कुशवाहा भी पार्षद का चुनाव लड़ रहे थे, ऐसे में सामाजिक समन्वय के लिए आनंद कुशवाहा ने अपना नाम वापस ले लिया, लेकिन कुछ वक्त में नारायण सिंह के तेवर बदल गये और उन्होंने आनंद कुशवाह चाय वाले से ऐसे कुछ शब्द कह दिए, जो उनके दिल में घर कर गये और फैसला कर लिया कि अब वे हर हाल में चुनाव लड़ेंगे। आनंद कुशवाहा ने बताया, कि ‘वे पिछले तीस वर्षों से चुनाव लड़ रहे हैं. उन्होंने पार्षद से लेकर महापौर, विधायक और सांसद तक का चुनाव हर बार लड़ा है. वे अब तक कुल 27 चुनाव लड़ चुके हैं और अब एक बार फिर 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भी तैयारी कर ली. नामांकन शुरू होते ही वे अपना नाम निर्देशन फार्म जमा करायेंगे.’ हालांकि आनंद कुशवाहा ने राष्ट्रपति पद के लिए भी 2007, 2012, 2017 और 2022 में भी फार्म भरा था, लेकिन कागजी कार्रवाई पूरी नहीं होने से ये मौका अभी नहीं मिल पाया है. चाय वाले आनंद कुशवाह ने बताया कि उन्होंने एक बार अलमारी पर चुनाव लड़ा. इसके बाद से वे हर बार केतली के चिन्ह पर चुनाव लड़ते हैं और अगर चुनाव का चिन्ह केतली ना हो तो अब अपना नाम वापस ले लेते हैं. पिछले 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी ऐसा ही हुआ. निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान केतली चुनाव चिन्ह किसी दूसरे प्रत्याशी को आवंटित कर दिया गया था, तो उन्होंने अंत में चुनाव से हाथ खींच लिए.
अपनी छोटी से दुकान में चुनाव लडऩे के लिए बचत की कुछ धनराशि अलग निकालते रहते हैं और जब चुनाव आता है तो उसी राशि को चुनाव बजट के रूप में खर्च करते हैं. पर्चे छपवा कर उन्हें बांटते हैं. साइकिल पर जनसंपर्क करते हैं, जिन लोगों को चाय पिलाते हैं उनसे भी वोट देने की गुजारिश कर लेते हैं. इतने चुनाव लडऩे के बाद भी कोई सफलता हासिल नहीं हुई. हर बार चुनाव में वोट भी 100-200 के आसपास ही मिलते हैं. लेकिन आनंद कुशवाहा को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है. वे कहते हैं कि,- मेरा संकल्प नारायण सिंह की बात को काटना था, पिछली बार 2018 में ये संकल्प पूरा हो गया था. वे कऱीब 121 वोट से हारे थे और 121 ही वोट मुझे मिले थे. ऐसे में वे मेरे वोटों की वजह से हारे थे, लेकिन अब चुनाव लडऩे का अलग जुनून है. मैंने समाज के लिये काम करना शुरू कर दिया है तो अब चुनाव लडऩे की प्रतिज्ञा अब जारी रहेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद को एक चाय वाला बताते हैं तो आनंद कुशवाह भी उसी राह पर सपने गढ़ रहे हैं. ये भारत है, और यहां संभावनाएं बहुत है. जब यहां एक चाय वाला पीएम बन सकता है तो क्या पता आनंद कुशवाहा के भी सपने सच हो जायें. बहरहाल 27 चुनाव में तो आनंद के हाथ निराशा ही लगी है, फिर भी जीत की उम्मीद में वे एक बार फिर लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये हैं।