स्वतंत्र समय, भोपाल
रिटायरमेंट के बाद राजनीति में अपना अलग स्थान बनाने की चाह रखने वाले ब्यूरोक्रेट्स ( Bureaucrats ) पॉलिटिक्स में सफल नहीं हो पाते। मप्र की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस में इन अफसरों ने दस्तक तो दी, लेकिन मंत्री पद तक केवल एक ही अफसर पहुंचे। इनमें चंबल की राजनीति करने वाले पूर्व आईपीएस रुस्तम सिंह भाजपा सरकार में मंत्री बने, लेकिन बाद में टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बसपा का दामन थामा लिया। अब वे हासिए पर है। ऐसे कई अफसरों के उदाहरण देखने को मिल जाएंगे।
अधिकांश Bureaucrats भाजपा में सदस्यता ग्रहण की
पिछले विधानसभा चुनाव में बैतूल से टिकट मिलने की चाह रखने वाली डिप्टी कलेक्टर निशा बांगरे को कांग्रेस ने पहले तो टिकट का ऑफर दिया और बाद में दूसरे को टिकट दे दिया। टिकट पाने के चक्कर में बांगरे ने डिप्टी कलेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया था, वहीं रिटायर अफसर कवींद्र कियावत सहित कई आईएएस और आईपीएस अफसरों यानी ब्यूरोक्रेट्स ( Bureaucrats ) ने भाजपा में सदस्यता ग्रहण की, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में किसी को टिकट नहीं मिला। जबकि कवींद्र कियावत तो तत्कालीन सीएम रहे शिवराज सिंह चौहान के चहेते अफसरों में गिने जाते थे। दूसरे ऐसे ही अफसर एसएस उप्पल हैं, जिन्होंने तत्कालीन सीएम बाबूलाल गौर से नजदीकी के चलते भाजपा की सदस्यता ग्रहण की, लेकिन उन्हें भी किसी क्षेत्र से टिकट नहीं मिला। इस समय ये महाशय भाजपा दफ्तर में चुनाव आयोग कार्य के प्रभारी है और काफी समय से यहीं काम संभाल रहे हैं।
ये अफसर भी खेल रहे राजनीति में दांव
रिटायर्ड आईपीएस एमपी वरकडे कांग्रेस से टिकट मांग चुके हैं। 2018 में डीआईजी पद से रिटायर हुए वरकडेÞ को अभी भी टिकट का इंतजार है। वरद मूर्ति मिश्रा आईएएस की नौकरी छोडक़र राजनीतिक पार्टी बना चुके हैं, लेकिन अब उनकी सियासत में चर्चा तक नहीं होती है। पूर्व आईएएस अफसर व्हीके बाथम भी कांग्रेस में छतरपुर से टिकट मांगते रहे हैं। कांग्रेस में ही काम संभाल रही अजिता पांडे वाजपेयी भी सफल नहीं रहीं, जबकि आईएएस की नौकरी से पहले ये यूथ कांग्रेस की अध्यक्ष रह चुकी हैं। उधर, रिटायर्ड आईएएस अफसर हीरालाल त्रिवेदी सपाक्स पार्टी के अध्यक्ष हैं, चुनाव में उनके साथ ही उनकी पार्टी को भी लोग नकार चुके हैं। इसके अलावा पूर्व आईएएस पन्नालाल सोलंकी, पूर्व आईपीएस पवन जैन ने भाजपा में शामिल हुए और राजस्थान से टिकट मांगा, लेकिन नहीं मिला। पूर्व आईपीएस गाजीराम मीणा, आईएफएस आजाद सिंह डबास जैसे अफसर भी राजनीति में सफल नहीं हुए। डबास पहले कांग्रेस में शामिल हुए फिर आप में चले गए। अब उनकी पूछ-परख तक नहीं होती।
परिवार चाहता है कि मैं नौकरी में वापस आ जाऊं
इस मामले में निशा बांगरे का कहना है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के समय लोकसभा का टिकट देने का वादा किया था। मैं भिंड या टीकमगढ़ सीट से टिकट मांग रही थी, लेकिन कांग्रेस ने अपना वादा पूरा नहीं किया। अब मेरा परिवार चाहता है कि मैं वापस नौकरी में आ जाऊं। इसके लिए मैंने जनवरी में सामान्य प्रशासन विभाग को पत्र लिखा है, पर अभी तक वहां से कोई जवाब नहीं आया। चूंकि सामान्य प्रशासन विभाग मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के पास है, इसलिए मैं उनसे मुलाकात कर अपनी बात रखना चाह रही हूं, लेकिन वे चुनाव में व्यस्त हैं।