हाथों में कंपन से शुरू होकर पूरे शरीर को कर सकता है प्रभावित Parkinson’s

स्वतंत्र समय, इंदौर

पार्किंसंस ( Parkinson’s ) के प्रति जागरूकता बढाने के लिए हर साल 11 अप्रैल विश्व पार्किंसंस दिवस, और अप्रैल को पार्किंसंस जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है, यह दिन पार्किंसंस रोग और दुनिया भर में इससे प्रभावित लाखों लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। विश्व पार्किंसंस दिवस के लिए इस वर्ष की थीम ‘माय लाइफ माय राईट है’ जिसका उद्देश्य लोगों तक उपचार की पहुँच को सुनिश्चित करना है। विज्ञान की भागती दौड़ती इस दुनिया में तनाव ने कई तरह की बीमारियों को जन्म दिया है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित इसने मष्तिष्क को किया है। आज मष्तिष्क से जुडी कई तरह की बीमारियां आम हो गई है। ऐसा ही एक रोग है पार्किंसंस, जिससे प्रभावित व्यक्ति की चलने-फिरने की गति धीमी पड़ जाती है, मासपेशियां सख्त हो जाती हैं और शरीर में कंपन की समस्या पैदा हो जाती है। यह बीमारी बढती उम्र के साथ शुरू होती है इसलिए इसे आसानी से नजरंदाज कर दिया जाता है।

विश्व Parkinson’s दिवस

डॉ. कटारिया पार्किंसंस ( Parkinson’s ) दिवस के इतिहास और महत्त्व के बारे में बताते हैं, ‘हर साल, 11 अप्रैल को पार्किंसंस रोग के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए विश्व पार्किंसंस दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लंदन के डॉ जेम्स पार्किंसन के जन्म हुआ, जो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पार्किंसंस रोग के लक्षणों वाले छह व्यक्तियों का वर्णन किया था। इसके अलावा, अप्रैल का महीना पार्किंसंस जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है। पार्किंसंस दिवस की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि मष्तिष्क रोगों से जुड़े कई मिथक और भ्रांतियां अभी भी समाज में व्याप्त है। पार्किंसंस के कई लोग अभी भी कलंक, भेदभाव की नजर से देखा जाता है।
जिसके लिए जागरूकता होना बहुत जरुरी है और आवश्यक संसाधनों और देखभाल तक पहुंच की कमी सहित महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करते हैं। मेदांता की टीम में सुप्रशिक्षित एवं योग्य न्यूरोसर्जन की टीम मौजूद है और हर परिस्थिति में सेवा में तत्पर हैं।

ये बनते हैं पार्किंसंस रोग के कारण

मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के न्यूरो कंसलटेंट डॉ. वरुण कटारिया के अनुसार, ‘तब होती है जब मस्तिष्क के एक क्षेत्र में तंत्रिका कोशिकाएं या न्यूरॉन्स नष्ट होने लगते हैं। आमतौर पर ये न्यूरॉन्स डोपामाइन नामक एक महत्वपूर्ण मस्तिष्क रसायन का उत्पादन करते हैं, लेकिन जब ये न्यूरॉन्स मर जाते हैं या क्षीण हो जाते हैं, तो वे कम डोपामाइन का उत्पादन करते हैं, जो पार्किंसंस रोग का कारण बनता है। दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन लोग पार्किंसंस रोग के साथ जी रहे हैं। लेकिन वर्तमान में इसको पूरी तरह से ठीक करने के लिए कोई इलाज मौजूद नहीं है, लेकिन कुछ उपचार और सावधानियां रखी जाए स्थिति में सुधार लाया जा सकता है। व्यक्ति के सामान्य जीवन की काम करने में सुस्ती या धीमापन आना, शरीर में अकडऩ, हाथ या पैर कांपना, और चलते समय संतुलन खो देना पार्किंसंस के लक्षण है। इसके अलावा सूंघने की क्षमता में कमी, मूड में बदलाव, नींद में गड़बड़ी और कब्ज भी पार्किंसंस के लक्षण हैं। यह बीमारी पुरुष और महिलाएं, दोनों को हो सकती है। हालांकि यह महिलाओं की तुलना में लगभग 50 फीसदी अधिक पुरुषों को प्रभावित करती है। यह बीमारी बुजुर्गों को अधिक प्रभावित करती है इसकी शुरुआत धीरे-धीरे होती है कई हफ्तों या महीनों के बाद जब लक्षणों की तीव्रता बढ़ जाती है, तब इस रोग के बारे में पता चलता है। पार्किंसंस के लक्षणों को पहचानें और और जल्द से जल्द डॉक्टर से संपर्क करें। एंटीऑक्सिडेंट , फिश ऑयल, विटामिन बी1, सी, डी से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन इस बीमारी में लाभ दे सकता है। पार्किंसंस रोग में दवाएं और थेरेपी अच्छे परिणाम दे सकते हैं इसके साथ अब सर्जरी के माध्यम से भी इसका इलाज शुरू कर दिया गया है, जो फि़लहाल बड़े शहरों में उपलब्ध है। डॉक्टर द्वारा नियमित जांच एवं सलाह स्थिति में बेहतरी ला सकती है।’