सीताराम ठाकुर, भोपाल
मप्र में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लागू होने के बावजूद राज्य सरकार ने आदिवासी ( tribal ) क्षेत्रों में काम करने वाली निजी अशासकीय संस्थाओं को 67 लाख रुपए का आवंटन जारी किया है, जबकि पिछले साल का बजट 31 मार्च तक समाप्त हो गया। वहीं झाबुआ में 25 एवं 26 फरवरी 2023 को आयोजित हलमा उत्सव का 52 लाख रुपए भी 12 अप्रैल को जारी किया गया। इससे जनजातीय कार्य विभाग के अफसरों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
20 tribal जिलों में पांच दर्जन अशासकीय संस्थाएं
प्रदेश के 20 आदिवासी ( tribal ) जिलों में जनजातीय कार्य विभाग द्वारा स्कूल, आश्रम, एकलव्य स्कूल, कन्या छात्रावास आदि का संचालन किया जाता है। इसके बावजूद इन जिलों में आदिवासियों के नाम पर करीब पांच दर्जन निजी अशासकीय संस्थाएं भी कार्यरत हैं। इनमें प्रमुख रूप से वनवासी कल्याण परिषद, न्यू अमर ज्योति शिक्षा समिति, अर्ध आदिवासी विकास संघ रंगारी, महारानी दुर्गावती कन्या आश्रम, राणा बख्तावर सिंह बालक छात्रावास, एकलव्य वनवासी आश्रम आदि शामिल हैं। इन ऐच्छिक संस्थाओं को शैक्षणिक तथा अन्य कल्याणकारी प्रवृत्तियों के लिए अनुदान के रूप में 67 लाख 66 हजार 624 रुपए की राशि 12 अप्रैल को जारी की गई है, जो कि चुनाव आचार संहिता के दायरे में आता है। इनमें वनवासी कल्याण परिषद को 4 लाख 43 हजार रुपए, न्यू अमर ज्योति शिक्षा समिति दीनापुर को 59 लाख 90 हजार 376 रुपए तथा अर्द्ध आदिवासी विकास संघ पाढुंर्ना को 3 लाख 42 हजार 48 रुपए की राशि जारी की
गई है।
ये है हलमा उत्सव परंपरा
हलमा भील समाज में एक मदद की परंपरा है। जब कोई व्यक्ति या परिवार खुद पर आए संकट से उबर नहीं पाता है, तब उसकी मदद के लिए सभी ग्रामीण जुटते हैं। उसकी मुश्किलों को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास किया जाता है, लेकिन अब मप्र सरकार इसमें हस्तक्षेप करने लगी है और पैसा बांटने का काम कर रही है।
चुनाव के बीच दिए 52 लाख रुपए
एक साल पहले 25 एवं 26 फरवरी 2023 को झाबुआ में हलमा उत्सव का आयोजन किया गया था। इस कार्य के लिए तत्कालीन समय में भी सरकार ने वर्ष 2022-23 के बजट से करीब 50 लाख रुपए का आवंटन जारी किया था और शेष लंबित देयकों का भुगतान करने के लिए 52 लाख 43 हजार से अधिक की राशि 12 अप्रैल 2024 को संयुक्त संचालक वित्त नरेंद्र कुमार धुर्वे के हस्ताक्षर से जारी की है। यानि चुनाव आचार संहिता के बीच पिछले साल का पैसा अब दिया है, जिससे चुनाव में आदिवासियों के वोट बैंक का लाभ उठाया जा सके। इस संबंध में प्रमुख सचिव जनजातीय कार्य ई रमेश कुमार से बात करनी चाही, तो वह उपलब्ध नहीं थे।