भारत के Gandhi बनाम गांधी का इंडिया!

प्रकाश पुरोहित
वरिष्ठ पत्रकार एवं
व्यंग्यकार

यदि जोहानसबर्ग (साउथ अफ्रीका में जोबर्ग कहते हैं) में हैं तो पहला नाम याद आता है नेल्सन मंडेला! एक दिन पहले ही जोबर्ग के सबसे सम्पन्न इलाके में शानदार शॉपिंग मॉल में नेल्सन मंडेला (जिन्हें यहां मदीबा कहते हैं) की स्टेचू देखी थी। तब लगा था कि हमारे यहां गांधी ( Gandhi ) की स्टेचू किसी बड़े से मॉल में लगनी बाकी है, वरना तो उन्हें देश भर में फैले एमजी रोड के चौराहों पर ही देखा गया है। उस रोज यह भी देखा कि मदीबा के स्टेचू को थोड़ी देर रुक कर देखने वाले मुझ जैसे कम ही थे, वरना वहां की चकाचौंध में ही लोग गुम थे। आलीशान स्टेचू है और जगमग रोशनी में भव्य नजर आ रही थी।

Gandhi बनाम गांधी का इंडिया

कोई जोबर्ग में है और मंडेला म्यूजियम ना देखे, ऐसा शायद ही कोई सोचे। अगली सुबह यही काम तय किया और निकल पड़ा म्यूजियम की तलाश में। साउथ अफ्रीका में इंग्लिश बोली तो जाती है, मगर इतनी आसान नहीं है कि फौरन समझ ली जाए। तभी करीब बीस साल का युवा मिला। उससे बातचीत शुरू की। जोबर्ग में क्या-क्या है देखने के लिए पूछा था मैंने। उसने एक-एक कर कई जगह के नाम लिए। आसपास के शहरों का भी गाइड बन गया, लेकिन यह चौंकाने वाली बात थी कि उसने एक बार भी नेल्सन मंडेला का नाम नहीं लिया। मंडेला म्यूजियम के तो नजदीक भी नहीं फटका। और मंडेला म्यूजियम… वह भी तो यहीं जोबर्ग में  मैंने ही उससे पूछ लिया। हां, वह भी है। उसने इतने ठंडे अंदाज में बताया कि जैसे कोई खास बात नहीं, जबकि मुझे तो लगा था कि सबसे पहले वह इसी जगह का नाम लेगा और उसके बारे में सब बता देगा, लेकिन उसकी उदासीनता देख थोड़ा अचरज और परेशानी भी हुई।

तुम इतने बड़े व्यक्ति का नाम कैसे भूल गए… उनकी वजह से ही तो यह देश आजाद हो सका! दुनिया उन्हें… अफ्रीकी गांधी कहती है। ना ही तुम्हारे चेहरे पर उस नाम की कोई चमक दिखाई दे रही है, ना कोई उत्साह नजर आ रहा है मैं उसे कुरेदना चाहता था।
ऐसा लगा उसकी दु:खती रग दबा दी हो गांधी की तुलना मदीबा से मत करिए! वह लगभग गुस्से में बोला। क्यों, उनका बलिदान भी तो गांधी से कम नहीं है… पूरी जवानी देश की आजादी के लिए जेल में गवां दी उसे याद दिलाया। यही बड़ा फर्क है, मदीबा ने जितना दिया था या किया था देश के लिए, ब्याज सहित वसूल लिया है। अब हिसाब बराबर है, बल्कि उनके खाते में अब बदनामी जमा होने लगी है कि आजादी का सबसे बड़ा केक तो उनके हिस्से में ही गया है। आपके इंडिया में गांधी ने अंग्रेजों से लड़ाई में जीवन गुजार दिया और जब देश आजाद हुआ तो गांधी ने सरकार में कोई पद नहीं लिया, जबकि यहां मदीबा खुद तो राष्ट्रपति बन ही गए, उनका पूरा परिवार ही इस देश पर शासन कर रहा है।
इसी कारण अब मदीबा की उतनी इज्जत नहीं रह गई है। यहां हर दिन उनके नए घोटाले सामने आ रहे हैं और मदीबा चुप हैं या उस तरफ ध्यान देना ही नहीं चाहते। इसलिए गांधी आज भी पूरी दुनिया में पूजे जाते हैं और मदीबा का नाम भी यहां लेने से लोग कतराते हैं। जब लड़के ने ये बातें पूरे तैश में बताईं तो कान झनझना गए थे। अब उस जगह, यानी रोबिन आइलैंड पर हूं, जो जोबर्ग से कई मील दूर बीच समुद्र में है और जहां सिर्फ नाव या बोट से ही जा सकते हैं, जहां मंडेला और साथियों को को छब्बीस साल कैद रखा गया था। इन दिनों यहां गाइड, वे ही कैदी हैं, जो मंडेला के साथ जेल में रहे। इनमें वो साथी भी था, जो मदीबा से भी ज्यादा समय जेल में रहा था। करीब छह ऐसे कैदी हैं यहां, जो बारी-बारी से गाइड बनते हैं। रोबिन आइलैंड जेल घूमने के बाद, जब बाहर निकल रहे थे तो उनमें से एक गाइड से पूछ लिया अब तो सब अच्छा हो गया ना, कोई तकलीफ तो नहीं लगा जैसे कोई फफोला बह निकला। उन्होंने बेहद दु:खी और दबी आवाज में बताया कि हमें क्या मिला, सिर्फ यह नौकरी हमें तो यही लग रहा है कि देश भले ही आजाद हो गया है, लेकिन हमारी आजादी तो अभी बाकी है। यहां हमें नौकरी के बहाने रोक दिया गया है ताकि लोगों को सिर्फ मंडेला ही नजर आएं और बाकी किसी का जिक्र भी नहीं हो। साउथ अफ्रीका में सिर्फ एक चेहरा है- मदीबा का! मंडेला तो सरकार चला रहे हैं, क्या कमी है उनके पास अपने परिवार का ही भला कर रहे हैं और मस्ती मार रहे हैं, और हमें यहां नौकरों की तरह रखा हुआ है। लगता है, जैसे या तो हमें भूल ही गए या फिर जानबूझकर हमें दूर रखना चाह रहे हैं (मार्गदर्शक-मंडल याद आ गया!)। परिवार से भी मिलना मुश्किल हो रहा है हमारा। मंडेला ने एक-एक कर सभी को गायब कर दिया और अब सत्ता के मजे ले रहे हैं, देखिये उनकी पत्नी, जिन्होंने पूरी उम्र साथ दिया, उन्हें छोड़ गई है और उनके खिलाफ खड़ी हो गई है। और भी ना जाने कितनी बातें बताई थीं उन्होंने, लेकिन लब्बोलुआब यही कि उनके साथी कैदी भी दु:खी हैं बेकद्री से और अपना घर भरने से। आज ये बातें करीब पंद्रह साल बाद याद आ रही हैं तो वजह यही है कि दुनिया भर में गांधी की लोकप्रियता किसी अंग्रेज की फिल्म से नहीं है। दुनिया में जब आप इंडिया कहते हैं तो लोगों के मुंह से गांधी निकलने लगता है। दुनियाभर में सौ से ज्यादा जगह गांधी की मूर्ति लगी हैं तो यह भारत सरकार ने नहीं लगवाई हैं। अगर रिचर्ड एटनबरो ने फिल्म बनाई थी तो गांधी में कुछ ऐसा अलग नजर आया होगा कि उन्हें चुना। यह फिल्म भी भारत सरकार के कहने या खर्च पर नहीं बनी थी। याद रहे, टाइम पत्रिका ने कितनी बार गांधी को पहले पन्ने पर छापा है। हम कहें अपने बारे में, बेहतर है दुनिया कहे। सरकारी कोशिशों से कोई महापुरुष नहीं बनता, खलनायक ही बनता है, जैसे हिटलर!
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं)