संकट के बीच मध्यप्रदेश ने बेच दी 400 करोड़ की electricity

स्वतंत्र समय, भोपाल

प्रदेश में भीषण गर्मी का दौर जारी है। चंद मिनट के लिए भी अगर बिजली ( electricity ) गुल हो जाए तो लोग हलाकान हो जाते है। इतना ही नहीं प्रदेश के कई जिलों में मेंटेनेंस के नाम पर अघोषित रूप से बिजली कटौती भी की जा रही है। इसके बावजूद मप्र की बिजली को अन्य राज्यों में बेची जा रही है। भीषण गर्मियों में भी विद्युत वितरण कंपनियों के द्वारा अन्य राज्यों को 400 करोड़ रुपए की बिजली बेच दी गई।

उधारी में 1.25 पैसे रेट बढ़ाकर दूसरे राज्यों को बेच रहे electricity

प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियां द्वारा 84.20 करोड़ यूनिट उद्योगों और दूसरे प्रदेशों को बेचने का खुलासा हुआ है। एक तरफ जहां अधिकारी पावर एक्सचेंज के तहत अन्य राज्यों को बिजली ( electricity ) बेचने की बात कर रहे हैं, वहीं सूत्रों का कहना है कि इसका फायदा निजी पावर प्रोजेक्ट कंपनियों को पहुंचाने की आड़ में ये काम किया जा रहा है। साथ ही अन्य राज्यों से नकद बिजली खरीदने और विद्युत कंपनियों के अलावा उधारी में 1.25 पैसे रेट बढ़ाकर दूसरे राज्यों को बेचने की जानकारी सामने आई है। एक तरफ सरकार अपने ही प्रदेश के उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत पर बिजली बेची रही है तो दूसरे राज्यों को सस्ते में बिजली बेचने के नाम पर दे रही है, बिजली के जानकारों ने मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी की नीतियों पर सवाल उठाए है।

बिजली सरप्लस है तो एमपी के उपभोक्ताओं को मिले लाभ

बिजली मामलों के जानकार एडवोकेट राजेंद्र अग्रवाल का कहना है कि प्रदेश में यदि बिजली सरप्लस है तो इसका लाभ राज्य के उपभोक्ताओं को दिया जाना चाहिए। प्रदेश के उद्योगपतियों और यहां लगने वाले इकाइयों को इसका लाभ मिलना चाहिए ,लेकिन इसके उलट प्रदेश में चल रहा है। अग्रवाल ने बताया कि नियामक आयोग के निर्देशों के विपरीत राज्य के उपभोक्ताओं को 7 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली की आपूर्ति हो रही है। जानकारों का यह भी कहना है की सरकार ऐसी नीतियां बनाए ताकि प्रदेश के उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर बिजली मिल सके साथ यहां चल रहे उद्योग घरानों को भी उसका फायदा मिल सके।

निजी कंपनियों को हर साल 3 से 4 हजार करोड़ का भुगतान

मप्र सरकार ने प्रदेश में सस्ती दर पर बिजली खरीदने के लिए रिलायंस सहित एक दर्जन से अधिक पावर प्रोजेक्टों से 15 से 25 साल के लिए एग्रीमेंट किया है, लेकिन स्वयं के द्वारा पैदा की जाने वाली बिजली की वजह से सरकार निजी कंपनियों से बिजली लेने की अपेक्षा उन्हें हर साल एग्रीमेंट के चलते बिना बिजली खरीदे 3 से 4 हजार करोड़ का भुगतान कर रही है। ये सीधे-सीधे सरकार को करोड़ों की चपत लग रही है। इस संबंध में एसीएस ऊर्जा मनु श्रीवास्तव से बात करना चाही, तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

बिजली बेचने पर जानकारों ने उठाए सवाल

जानकारों का कहना है कि मध्य प्रदेश विद्युत नियामक आयोग ने उपभोक्ताओं के लिए 4.58 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली बेचने का प्रावधान किया था,लेकिन विद्युत नियामक आयोग के निर्देशों के विपरीत राज्य के उपभोक्ताओं को 7 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली की आपूर्ति की जा रही है। सब्सिडी की आड़ में भी 150 यूनिट से अधिक बिल आने वा उपभोक्ताओं से 9 रुपए प्रति यूनिट बिल वसूला जा रहा है। सरकार एक तरफ किसानों, घरेलू उपभोक्ताओं को पिछले सालों में करीब 19 हजार करोड़ की सब्सिडी बिजली के नाम पर पावर कंपनियों को बांटती थी, वह राशि बढ़कर अब 24 हजार 420 करोड़ पहुंच गई है, जबकि किसानों को सिंचाई के लिए रात्रि में 8 घंटे ही बिजली उपलब्ध हो पाती है। उधर, ग्रामीण क्षेत्रों में अघोषित बिजली कटौती जारी है।