ईसाई नाराज न हों इसलिए भाजपा ने RSS को रोका

स्वतंत्र समय, तिरुवनंतपुरम

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS ) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नागपुर में 10 जून को कहा था कि ‘जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मयोल्ल की सीमाओं का पालन करता है, अपने काम पर गर्व करता है, अहंकार से रहित होता है, ऐसा व्यक्ति ही वास्तव में सेवक कहलाने का हकदार है। काम करें, लेकिन मैंने किया ये अहंकार न पालें।

RSS  के कार्यकर्ता विकास वर्ग का समापन

उन्होंने यह बात आरएसएस ( RSS ) के कार्यकर्ता विकास वर्ग के समापन करते हुए कही थी। वे पॉलिटिकल पार्टियों के रवैये पर बोल रहे थे। अहंकार वाली बात किसके लिए कही या उनका इशारा किसकी ओर था, ये साफ हो पाया है। हालांकि, एक बात साफ है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस)और भाजपा के बीच रिश्तों में खींचतान चल रही है। ये खींचतान नई नहीं, बल्कि बीते 3-4 साल से चल रही है। बताते हैं कि भाजपा ने चुनाव के दौरान आरएसएस की सलाह लगातार नजरअंदाज की। दावा ये भी है कि आरएसएस कार्यकर्ताओं से कहा गया कि वे प्रचार से दूर रहें, क्योंकि उनके रहते माइनॉरिटी वोट मिलना मुश्किल है। इन दावों के बीच केरल में आरएसएस की एक्टिविटी और इलेक्शन रिजल्ट का एनालिसिस एजेंसियों ने किया है। केरल इसलिए क्योंकि राष्ट:ीय स्वंयसेवक संघ यहां 80 साल से काम कर रहा है। उसकी 5 हजार से ज्यादा शाखाएं चल रही हैं और सबसे बड़ी बात कि केरल में पहली बार भाजपा ने एक सीट जीती है। भाजपा को तिरुवनंतपुरम सीट जीतने की भी उम्मीद थी, लेकिन पार्टी यहां हार गई।

2019 के चुनाव में हार चुके हैं गोपी

त्रिशूर में भाजपा ने मलयालम सिनेमा के बड़े स्टार सुरेश गोपी को टिकट दिया था। यहां संघ पूरी तरह से एक्टिव था और सुरेश गोपी के लिए काम कर रहा था। सुरेश गोपी 74,686 वोट से जीत गए। वे केरल में भाजपा के पहले सांसद हैं। सुरेश गोपी ने त्रिशूर से 2019 में चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। फिर भी उन्होंने त्रिशूर के लोगों से मिलना-जुलना बंद नहीं किया। राज्यसभा सांसद के तौर पर मिला फंड भी त्रिशूर के डेवलपमेंट पर खर्च किया। फिल्म स्टार भी हैं। ये सब फैक्टर उनकी जीत में साथ रहे, लेकिन भाजपा के लिए जमीन तैयार करने में आरएसएस का रोल पुराना और बड़ा है।

लोगों की नाराजगी के बाद जीते थरूर

केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर को टिकट दिया था। राजीव पढ़े-लिखे नेता हैं, बिजनेसमैन हैं। वे तिरुवनंतपुरम में डेवलपमेंट की बातें कर रहे थे। ईसाई समुदाय से मिल रहे थे। हिंदुओं के प्रोग्राम में जा रहे थे। यहां उनके सामने कांग्रेस लीडर शशि थरूर चुनाव लड़ रहे थे। थरूर के लिए लोगों में नाराजगी थी कि, वे सांसद तिरुवनंतपुरम के हैं, लेकिन ज्यादातर दिल्ली में रहते हैं। लोग ये भी कह रहे थे कि उन्होंने कुछ डेवलपेंट नहीं किया। इससे भाजपा को लग रहा था कि वो तिरुवनंतपुरम सीट जीत जाएगी। लेकिन भाजपा ने चुनाव के समय आरएसएस को बहुत एक्टिव न रहने के लिए कहा था, जिसके चलते तिरुवनंतपुरम की सीट भाजपा हार गई।