स्वतंत्र समय, इंदौर
इंदौर नगर निगम में हुए फर्जी बिल घोटाले ( Indore Corporation Scam ) की जांच का सिलसिला अभी जारी है। जिस तरह से यह घोटाला उजागर होना था वैसा नहीं हुआ है। घोटाले के पीछे अभी भी कई राज छुपे हुए है। हालांकि पुलिस और शासन की टीम अपने अपने स्तर पर घोटाले की जांच में जुटी हुई है। इसी बीच पूर्व विधायक गोपी नेमा और महापौर पुष्य मित्र भार्गव के बाद नगर निगम महापौर परिषद के वरिष्ठ सदस्य और लोक निर्माण एवं उद्यान विभाग के प्रभारी राजेद्र राठौर ने मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव को पत्र लिखकर नगर निगम में फर्जी बिल व फाइलें बनाकर करोड़ों रुपयों के भुगतान करने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों की जांच करवाई जांए। राठौर ने अपना यह सीएम डॉ. मोहन यादव के साथ ही मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, प्रमुख सचिव अमित राठौर जो जांच कमेटी के अध्यक्ष है और उनके साथ प्रमुख सचिव नगरीय प्रशासन नीरज मंडलोई को भेजी है।
Indore Corporation Scam को लेकर सीएम को लिखा पत्र
महाघोटाले ( Indore Corporation Scam ) को लेकर महापौर ने घोटाले पर पहला पत्र सीएम को अप्रैल में पत्र लिखा था। अब यह स्मार्ट सिटी घोटाले में लिखी गई उनकी चिट्ठी है, जिसमें निगम घोटाले को लेकर भी लिखा गया है। यह पत्र वैसे सीएस को है लेकिन उन्होंने सीएम, मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को भी इसकी कॉपी भेजी है। वहीं पूर्व बीजेपी विधायक गोपीकृष्ण नेमा भी 15 मई को सीएम को पत्र लिख चुके हैं। इसमें उन्होंने भ्रष्टाचार का आंकड़ा एक हजार करोड़ तक होने की आशंका जाहिर करते हुए सीएम से कड़ी कार्रवाई की मांग की थी। इस घोटाले को उन्होंने अकल्पनीय बताया था।
एमआईसी सदस्य राठौर ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र
राठौड़ ने पत्र में लिखा है कि- इस घोटाले से निगम के अधिकारी, कर्मचारी व ठेकेदारों का गठजोड़ सामने आया है। इससे शहर और निगम की साख को बट्टा लगा है। इतनी अधिक मात्रा में राशि के भुगतान निगम आयुक्त, अपर आयुक्त, लेखा अधिकारी के सहमति या संज्ञान के बाद ही किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में तत्कालीन समय के निगम आयुक्त, संबंधित विभाग के अपर आयुक्त और लेखा अधिकारी की जवाबदेही इन भुगतानों के लिए बनती है। राठौड़ ने आगे लिखा कि- पुलिस जांच कर रही है और जो अधिकारी अभी आरोपी बने हैं वह पहले भी आर्थिक अनियमितता में दोषी पाए गए हैं, लेकिन लचर व्यवस्था और वरिष्ठ अधिकारियों के संरक्षण के कारण उन पर प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। इसके कारण हौंसले बढ़ते गए। उन्होंने पत्र में निगम की जांच कमेटी और शासन की जांच एजेंसी दोनों पर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने लिखा है कि शासन की जांच एजेंसी इन मामलों में प्रभावी कार्रवाई नहीं करती है साथ ही विभागीय नगर निगम की जांच कमेटियां भी संदिग्ध रहती है।
वित्तीय घोटाले को समझने वाली एजेंसी को जांच में लगाने की जरूरतः महापौर
घोटाले से जुड़ी एक अन्य जानकारी के मुताबिक महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कहा है कि इंदौर नगर निगम के फर्जी फाइल घोटाले में वित्तीय घोटाले को समझने वाली एजेंसी को जांच में लगाने की जरूरत है। जब हम इस तरह की एजेंसी को जांच में लगाएंगे तभी सही तरीके से इस घोटाले की जांच हो सकेगी। इस फर्जी फाइल घोटाले की जांच पुलिस के द्वारा की जा रही है। राज्य सरकार के द्वारा भी एक उच्च स्तरीय समिति बना दी गई है। उस समिति की जांच की स्थिति को तो कोई समझ ही नहीं सका है। इसी बीच महापौर के द्वारा एक नई पहल की गई है। उनका कहना है कि जब तक फाइनेंशियल धोखाधड़ी को समझने और उसकी जांच करने वाली एजेंसी को इस घोटाले की जांच से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक यह जांच बराबर नहीं हो सकती है । उन्होने कहा कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जो सूखे कचरे का प्लांट था वहां जिस एजेंसी को काम दिया गया था उसे तय राशि भी देना थी और यह राशि ना देने के बावजूद टेंडर की कंडीशन के विपरीत जाकर समय सीमा पूरा होने के पहले उनके टेंडर को बढ़ाना यह सीधे तौर पर एजेंसी को लाभ देना था।