स्वतंत्र समय, इंदौर
इंदौर के मेट्रो ( Metro ) प्रोजेक्ट को लेकर इंदौर के जन प्रतिनिधियों ने पहले तो रुट पर सहमति दी और फिर 14 माह बाद अपने निर्णय से पलट गए। इस मामले में एक और विचारणीय और महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इंदौर हाईकोर्ट ने खुद अपने परिसर की 60 हजार स्क्वेयर फीट जमीन अस्थायी रूप से अंडरग्राउंड रुट पर काम करने के लिए देने पर सहमति दी और बकायदा इस संबंध में मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन और हाईकोर्ट के बीच अनुबंध भी हुआ। पिछले साल मुख्य न्यायाधीश ने जबलपुर से वीडियो कान्फ्रेंस के जरिए मेट्रो अफसरों से इस अंडरग्राउंड रुट का प्रजेंटेशन देखा और समझा, फिर उससे सहमत होते हुए हाईकोर्ट के गार्डन, पोर्च सहित अन्य निर्माण को हटाकर काम शुरू करने की मंजूरी भी दे दी , इतना ही नहीं अभी कुछ दिनों पूर्व ही इंदौर हाईकोर्ट की डबल बेंच ने उस जनहित याचिका को भी आधारहीन मानकर खारिज कर दिया, जिसमें अंडरग्राउंड रुट के बदलाव की मांग की गई थी।
शहर के बुद्धिजीवी Metro प्रोजेक्ट में बदलाव की मांग भी उठाते रहे हैं
शहर के कतिपय बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ मेट्रो ( Metro ) प्रोजेक्ट में खामियां निकालने के साथ अंडरग्राउंड रुट में बदलाव की मांग भी उठाते रहे हैं। जबकि इंदौर मेट्रो का प्रोजेक्ट उसकी एक्सपर्ट टीम द्वारा तैयार किया गया, जिसमें दिल्ली मेट्रो के विशेषज्ञ भी शामिल रहें है। अब जब काम शुरू हो गया और अंडर ग्राउंड की भी टेंडर प्रक्रिया लगभग पूरी की जा चुकी है, उस वक्त प्रॉजेक्ट को बेपटरी करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि इसमें मेट्रो कॉर्पोरेशन के उन जिम्मेदार अधिकारियों की पूरी गलती है जिन्होंने विभागीय मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को इन सब वास्तविकताओं से अवगत नहीं कराया और वे अंडरग्राउंड रुट को लेकर लगभग अंधेरे में ही रहे, जबकि हकीकत ये है कि शहर के सभी जनप्रतिनिधियों को अंडरग्राउंड रुट की विस्तृत जानकारी देकर उनकी सहमति ली गई, वहीं इंदौर हाईकोर्ट ने अपनी जमीन देने के साथ उसे मान्यता दी और यहां तक कि रुट बदलने की मांग वाली याचिका भी खारिज कर डाली।. इस याचिका में यही मांग की गई थी कि एमजी रोड पर जो अंडरग्राउंड प्रोजेक्ट तैयार किया है उसकी बजाय मेट्रो का रुट योजना 140, वर्ड कप चौराहा, वहां से कृषि कॉलेज, एमवाय होते हुए गांधी प्रतिमा का रुट बने. मगर हाईकोर्ट ने इसे आधारहीन मानकर खारिज कर दिया, यानि मेट्रो कॉर्पोरेशन द्वारा सौंपी विशेषज्ञों और तकनीकी जानकारी को ही हाईकोर्ट ने मान्य किया। यानी इंदौर हाईकोर्ट ने न सिर्फ अंडरग्राउंड रुट को मान्य किया, बल्कि उसके लिए अपने परिसर की 60 हजार स्क्वेयर फीट जमीन अस्थायी रूप से देने पर भी सहमति दी। मेट्रो कॉर्पोरेशन के तत्कालीन एमडी ने अपने विशेषज्ञों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश को इसका प्रजेंटेशन दिया था , जिसमें इंदौर हाईकोर्ट के जस्टिस और प्रिंसिपल रजिस्ट्रार भी मौजूद रहे और हाईकोर्ट परिसर की जमीन मेट्रो के लिए देने की सहमति दी। कॉर्पोरेशन को बाउण्ड्रीवॉल तोडऩे के बाद उसका पुन: निर्माण करने के साथ गार्डन सहित अन्य टूट फूट को दुरुस्त करवा कर वापस हाईकोर्ट को सौंपना पड़ेगा। वहीं आज मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी मेट्रो प्रोजेक्ट की समीक्षा की।