स्वतंत्र समय, भोपाल
मप्र में 2003 में जब पहली बार भाजपा ( BJP ) की सरकार बनी तो प्रत्येक मंत्री को हफ्ते में एक दिन भाजपा दफ्तर में बैठने का दिन तय था। इससे मंत्री कार्यकर्ताओं की समस्याओं को सुनते और उनके निराकरण के निर्देश देते थे। यह व्यवस्था उमा भारती के बाद मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर के समय भी लागू रही, लेकिन शिवराज के पहले टर्म के बाद इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया और मंत्री भी भाजपा दफ्तर में बैठने से गुरेज करने लगे। अब फिर इसके लिए पहल शुरू होने की संभावना है।
मंत्रियों को प्रदेश BJP कार्यालय में बैठना होगा
भाजपा ( BJP ) ने सरकार और संगठन के बीच बेहतर समन्वय के लिए नई रणनीति बनाई है, जिसके तहत अब मंत्रियों को प्रदेश भाजपा कार्यालय में बैठकर पार्टी कार्यकर्ताओं की समस्याओं का निराकरण करना होगा। यह बात अलग है कि इस तरह के निर्देश पूर्व की भाजपा सरकारों के समय भी दिए गए थे, लेकिन तब तत्कालीन मंत्रियों ने इस पर अमल ही नहीं किया। यही वजह है कि इस बार केंद्रीय संगठन ने मॉडल तैयार किया है। यह देश के अन्य राज्यों में लागू हो गया है। अब इसे मध्य प्रदेश में भी लागू किया जा रहा है। इसमें भाजपा प्रदेश कार्यालय में मंत्री बैठेंगे। इसमें भाजपा के कैबिनेट मंत्रियों की सप्ताह में पांच दिन बैठना होगा। उनके साथ संगठन का भी एक नेता साथ बैठेगा। हालांकि, इसकी शुरूआत कब से होगी, किस विभाग का मंत्री किस दिन भाजपा दफ्तर में बैठेगा, यह अभी तय होना बाकी है।
संगठन है तैयार… लेकिन मंत्री कर रहे हैं गुरेज
इसे लेकर केंद्रीय सह संगठन महासचिव शिवप्रकाश, मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के बीच चर्चा हो चुकी है। इसे विस के मानसून सत्र के बाद लागू किया जा सकता है। हालांकि, अधिकांश मंत्री भाजपा दफ्तर में बैठने से गुरेज कर रहे हैं, उनका तर्क है कि वे मंत्रालय में दो दिन बैठते हैं और कार्यकर्ता वल्लभ भवन में आकर उनसे मिलकर समस्याएं बताते हैं फिर भाजपा दफ्तर में बैठने का कोई औचित्य नहीं है। वहीं नाम न छापने पर कुछ मंत्री कहते है कि इससे संगठन और सत्ता में समन्वय बनने की अपेक्षा नेताओं में मनमुटाव बढऩे की संभावना है। क्योंकि संगठन की यह पहल शिवराज सरकार के समय फेल हो चुकी है।