स्वतंत्र समय, इंदौर
शहर के पुराने मास्टर प्लान के अनुभव तो पीड़ादायी रहे ही हैं, नए मास्टर प्लान ( Master Plan ) में क्या कुछ हो रहा है – यह भी किसी को नहीं मालूम। कोई सुनने, समझने और बताने को भी तैयार नहीं है कि नए मास्टर प्लान का स्वरूप क्या होगा। इस विसंगति के बीच संस्था सेवा सुरभि ने रविवार को रानी सराय स्थित इंडियन काफी हाउस में शहर के प्रमुख औद्योगिक, व्यापारिक एवं अन्य तकनीकी संस्थानों के प्रमुख पदाधिकारियों को आमंत्रित किया और नए मास्टर प्लान में किन-किन प्रावधानों को शामिल किया जाना चाहिए, इस पर विचार मंथन कर उनके सुझाव भी प्राप्त किए।
Master Plan को लेकर अनेक बैठकों में प्रतिवेदन सौंप चुके हैं
इस बैठक में शहर के इंजीनियर्स, नगर नियोजक, मंडी अध्यक्ष, क्रेडाई, ट्रांसपोर्ट एवं यातायात से जुड़े विशेषज्ञों से लेकर जल प्रबंधन के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने सार्थक चर्चा करते हुए एक स्वर से यही निष्कर्ष व्यक्त किया कि शहर के बढ़ते हुए क्षेत्रफल, जनसंख्या, वाहनों की संख्या, औद्योगीकरण, एज्युकेशन हब, एवं शहर के सटे 20-25 किलोमीटर तक के क्षेत्रों में हो रहे विकास को देखते हुए शासन को नए मास्टर प्लान का प्रारूप पहले आम जनता के समक्ष रखना चाहिए और उसके बाद ही उस पर क्रियान्वयन होना चाहिए। पिछले तीन वर्षों से शहर के विभिन्न संगठनों द्वारा नए मास्टर प्लान को लेकर अनेक बैठकों, प्रतिनिधि मंडलों और मुख्यमंत्री एवं नगरीय विकास मंत्री से लेकर सभी वरिष्ठ अधिकारियों तक अनेक प्रतिवेदन सौंपे जा चुके हैं, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं होने की स्थिति में संस्था सेवा सुरभि ने रविवार को आयोजित इस बैठक में मास्टर प्लान के विभिन्न पहलुओं पर खुली चर्चा की। संस्था के संयोजक ओमप्रकाश नरेड़ ने कहा कि शहर के नए मास्टर प्लान को लेकर काफी दिनों से से विषय विशेषज्ञों एवं शहर के हित में सोचने वाले लोगों द्वारा विचार मंथन किया जा रहा है, लेकिन अब तक किसी भी तरह की निर्णायक स्थिति नहीं बन पा रही है, इसीलिएं आज शहर के इन प्रमुख संगठनों के जागरुक लोगों को आमंत्रित किया गया है। बैठक में टाऊन प्लानर एसोसिएशन की अध्यक्ष श्रीमती दीप्ति व्यास ने कहा कि नए मास्टर प्लान को शहर के मेट्रोपोलिटिन रीजन, पर्यावरण, ट्रांसपोर्टेशन, इम्पलीमेंटेश जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर विचार करने के बाद ही लागू करना चाहिए। मास्टर प्लान का पालिसी डाक्युमेंट भी होना चाहिए। शहर के विकास कार्यों की योजना इस ढंग से होना चाहिए कि स्थित के अनुसार उनमें बदलाव किए जा सकें। मकानों के नक्शे भी कागजों पर कुछ और होते हैं धरातल पर कुछ और। इंडियन इंस्टीट्यूज आफ आर्किटेक्ट के इंदौर चेप्टर के आर्किटेक्ट गुंजन डोंगरे ने कहा कि मास्टर प्लान के माइक्रो लेवल वाले प्रावधानों पर ध्यान देना होगा। अब तक के मास्टर प्लान में यह बिन्दु शामिल नहीं है। मास्टर प्लान में हेरिटेज को भी महत्व दिया जाना चाहिए।
इंदौर अब एक एज्युकेशन हब भी बन गया है
इंस्टीट्यूट आफ इंजीनियर्स इंदौर चेप्टर के प्रमुख पी. गौतम और जीएसआईटीएस कालेज के प्रो. विवेक तिवारी ने भी अपने महत्वपूर्ण सुझाव दिए। उनका कहना था कि इंदौर अब एक एज्युकेशन हब भी बन गया है। ब्रेन ड्रेन की बात अब यहां नहीं रही। मास्टर प्लान में एज्युकेशन के साथ मेडिकल हब की दिशा में भी काम करना होगा। क्रेडाई से आए संदीप श्रीवास्तव ने कहा कि शहर के विकास में रियल इस्टेट की भी महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन त्रासदी यह है कि हमारी बात कोई सुनता ही नहीं। शहर में अनियोजित ढंग से मनमाना विकास हो रहा है। नियम कायदे सबके लिए समान नहीं है। कहां विकास किस रफ्तार से और किस आकार में होना चाहिए, ग्रीन बेल्ट कैसे सुरक्षित रखा जाए, इस पर की स्पष्ट प्रावधान नहीं है। हम मास्टर प्लान को कागजों में ही हरा-भरा बनाए रखना चाहते हैं। पूरी रिंग रोड कमर्शियल कर दी गई है। कोई नीति नियम नहीं है। शहर में जगह-जगह कोचिंग इंस्टीट्यूट बन गए हैं, जिनके पार्किंग के लिए की जगह नहीं है। मकान के नक्शे पर लिखा रहता है पौधे लगाएंगे, जल पुनर्भरण करेंगे, लेकिन होता कुछ नहीं है। कम्पाउंडिंग में भी केवल बहुमंजिला भवन लिए जाते हैं, बंगले नहीं। यह मनमानी चलती आ रही है। क्रेडाई के ही अतुल झंवर ने कहा कि मास्टर प्लान के क्रियान्वयन के लिए कोई जिम्मेदार अधिकारी नहीं है। शहर की सीमा बढ़ा दी गई है। 79 गांव नए शामिल हो चुके हैं, लेकिन मास्टर प्लान में उनका क्या स्वरूप होगा, कुछ भी तय नहीं है।
शहर से एक हजार ट्रक रोजाना देशभर में जाते हैं
आल इंडिया ट्रांसपोर्ट एसोसिएश इंदौर के अध्यक्ष राकेश तिवारी ने भी ट्रांसपोर्ट को शहर के विकास में महत्वपूर्ण घटक बताया। उन्होंने कहा कि सियागंज, महारानी रोड एवं दवा बाजार जैसे क्षेत्रों से पूरे देश में सडक़ मार्ग से माल जाता है। शहर से एक हजार ट्रक रोजाना पूरे देश में जाते है, लेकिन कहीं भी लाजिस्टिक हब नहीं है। इंदौर के आसपास धार, देवास, पीथमपुर जैसे क्षेत्रों में 25-50 एकड़ जमीन रखना चाहिए। रात में ट्रांसपोर्ट का काम करना हमारा शौक नहीं, मजबूरी है। शहर में पार्किंग की समस्या बहुत बड़ी है। कृषि उपज मंडी अध्यक्ष संजय अग्रवाल ने कहा क लंबे अर्से से अनाज मंडी को शहर के बाहर बसाने की बात हो रही है, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। शहर में प्रतिदिन 50 हजार क्विंटल अनाज मंडी में आता है और 90 करोड़ रुपया मंडी टैक्स के रूप में सरकार को मिलता है, लेकिन यदि पुराना मास्टर प्लान ही लागू कर दिया जाए तो शहर का व्यवस्थित विकास हो सकता है।
शहर की एक भी बिल्डिंग सही तरीके से नहीं
ग्रीन बिल्डिंग विशेषज्ञ जितेन्द्र व्यास ने कहा कि शहर की एक भी बिल्डिंग वैध नहीं है। हम वैध नंबर वाले वाहन पर बैठकर इस अवैध भवन में मास्टर प्लान में चर्चा कर रहे हैं। प्रशासन ने सियागंज में अलग जगह छोड़ी है और बाकी मोहल्लों में अलग। मास्टर प्लान पर सचमुच अमल करना है तो हमें मुख्यमंत्री, नगरीय विकास मंत्री और अधिकारियों से संपर्क में रहना होगा। भूगर्भ जल विशेषज्ञ डॉ. सुधीन्द्र मोहन शर्मा ने कहा कि मास्टर प्लान में उन स्थानों को भी इंगित किया जाना चाहिए, जहां पानी का रिचार्ज सिस्टम कारगर हो सकता है। देश में केवल 8 प्रतिशत जगह है, जहां वाटर रिचार्ज की गुंजाईश है। कैट के डिपार्टमेंट ऑफ एटामिक एनर्जी के. निकेतन ने कहा कि नियम कायदे तो बहुत बढिय़ा बनते हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं होता। 2400 वर्गफुट के प्लट पर 12 हजार वर्गफुट तक के निर्माण हो रहे हैं पर कोई देखने वाला नहीं है। शहर के कुछ क्षेत्रों की ड्रेनेज लाइन 1965 में डाली गई थी, तब से अब तक वही पुराना ढर्रा चला आ रहा है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी ने कहा कि रेल के मामले में हम 30 वर्ष पहले जहां थे, आज भी वहीं है। अजमेर से काचीगुड़ा गाड़ी बंद हो चुकी है। 2008 में दाहोद, धार-छोटा उदयपुर की लाइन का काम चल तो रहा है, लेकिन अब तक पूरा नहीं हुआ है। बजट कई बार लेप्स हो चुके है। इदौर का विकास केवल मेट्रो के भरोसे नहीं होगा। इंदौर से जुड़े हातोद, देवगुराडिय़ा, खुड़ैल, चापड़ा, बेटमा, सांवेर इन क्षेत्रों के लिए भी बसें चलाना पड़ेगी, ताकि इंदौर का लोड कम हो सके। पीथमपुर तक सीधी रेल नहीं है। बैठक में शहर के पहले कालोनाइजर संपत झंवर, रामेश्वर गुप्ता, पूर्व चीफ इंजीनियर वी.के. जैन, पूर्व सिटी इंजीनियर और इंदौर डेवलपमेंट फाउंडेशन के अध्यक्ष जगदीश डगांवकर, श्रीनिवास कुटुम्बले, अजीतसिंह नारंग एवं पत्रकार राजेश चेलावत ने भी अपने औजस्वी एवं तथ्यपूर्ण विचार रखे।श्
शहर की ट्रैफिक व्यवस्था न बिगड़े
डगांवकर ने कहा कि अब तक इंदौर के पांच मास्टर प्लान 1908, 1912, 1935, 1975, 2008 में बन चुके हैं, लेकिन अब भी नए मास्टर प्लान के बनने में समय लग रहा है। नारंग ने कहा कि शहर पानी में डूबे नहीं और यातायात जाम नहीं हो, यह विकास का प्रमुख बिन्दु होना चाहिए। सरकारी विभागों के पास विषय विशेषज्ञ नहीं है। एक ही क्षेत्र में कई तरह के विशेषज्ञ होते हैं। यदि ढाई वर्ष पहले विशेषज्ञों की सेवाएं ले ली होती तो अब तक नया मास्टर प्लान बन गया होता। अंत में इंदौर का विकास इंदौर के लोगों ने ही किया है। अधिकारी तो केवल वही काम करते हैं, जिनमें उनको सहुलियत होती है। मास्टर प्लान और उसका झोनल प्लान, दोनों की विसंगति का फायदा लेते हैं। हमारे पास इंदौर शहर में जगह नहीं है, इसीलिए हम महू, सांवेर और अन्य आसपास के गांवों तक पहुंच रहे हैं। दुबई और अमेरिका में 6 हजार स्क्वेयरफीट के प्लाट पर 16 मंजिला भवन बन जाते हैं। विडंबना यह है कि सरकारी विभाग सिलेबस को बताते ही, टेस्ट लेने के लिए पहुंच जाते हैं। अब शहर को एक ऐसा मास्टर प्लान चाहिए, जिसमें कोई विरोधाभास नहीं हो। इसके लिए हम सबको मिलकर एक साथ आवाज उठाना पड़ेगी। नए मास्टर प्लान के लिए एक भी विधायक ने आवाज नहीं उठाई। अधिकारी मास्टर प्लान, झोनल प्लान के नाम पर गुमराह कर रहे हैं। लोगों के मकान तोड़ दिए गए, लेकिन उन्हें टीडीआर तक नहीं दिए, निजी जमीनों के मुआवजे भी नहीं दिए। प्रभावशाली लोगों के अतिक्रमण नहीं हटते। मेट्रो के लिए यदि कैलाश विजयवर्गीय दखल नहीं देते तो शहर की क्या हालत होती, इस पर भी हमें चिंतन करना होगा। बैठक का संचालन इंजीनियर अतुल शेठ ने किया और उन्होंने वक्ताओं के बीच-बीच में तकनीकी जानकारियां देकर उपस्थित प्रमुख संगठनों के पदाधिकारियों का मार्गदर्शन भी किया। उन्होंने कहा कि अब इन सभी सुझावों और विचारों को लिपिबद्ध कर राज्य सरकार, नगरीय विकास मंत्री और सचिव को भेजा जाएगा।