मौसी घर से 9 दिन विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ आषाढ़ शुक्ल पक्ष की नवमी को भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ अपने मंदिर वापिस लौट आए है। बाहुड़ा यानि उल्टा रथ यात्रा निकलकर महाप्रभु जगन्नाथ को उनके मंदिर में विराजमान कराया गया। कल सोमवार की शाम धनसार जगन्नाथ मंदिर, मनईटांड़ काली मंदिर, हीरापुर हरि मंदिर व अलकडीहा इस्कॉन केंद्र से उल्टा रथ यात्रा निकाली गई।
भक्त रथ को रस्सा से खींचकर महाप्रभु को उनके मंदिर में लाए। इस दौरान जय जगन्नाथ देव के उद्घोष से धनसार, बैंकमोड़, पुराना बाजार, मनईटांड़, माझेरपाड़ा सहित कुसुम विहार गूंजायमान हो उठा। 7 जुलाई को आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया के दिन रथयात्रा निकाली गई थी। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान अपने भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण को निकलते हैं और 9 दिन अपने मौसी के घर रहकर वापस अपने घर लौटते हैं। महाप्रभु को मौसी के घर से उनके मंदिर में विराजमान कराने के क्षण को बाहुड़ा यानि उल्टी रथयात्रा उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। धनसार जगन्नाथ मंदिर में सुबह की 5 बजे पूजन काम के साथ बाहुड़ा रथ यात्रा की विधि शुरू हुई। भगवान का भव्य शृंगार किया गया। सुबह 7 बजे भोग लगाया गया। पूजा अर्चना के बाद दोपहर 1 बजे अन्न का भोग चढ़ाया गया। इसके बाद भक्तों के बीच भंडारे का प्रसाद बांटा गया। शाम 5 बजे धनसार जगन्नाथ मंदिर से बाहुड़ा रथ यात्रा निकाली गई। सैकड़ों भक्त रथ को खींचते हुए धनसार चौक, बैंकमोड़, बिरसा चौक, पुराना बाजार पानी टंकी, शक्ति मंदिर होते हुए रात 8 बजे जगन्नाथ मंदिर लेकर आए। इसके बाद पुरोहितों ने भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा जी को मंदिर में विराजमान किया। इस दौरान पूरा मंदिर भगवान की जय जयकार से गूंज पड़ा।