हर मंगलवार को कलेक्टर के सामने खड़े रहते हैं ‘diary वाले’

राजेश राठौर, इंदौर

इंदौर में प्रॉपर्टी का डब्बा गोल करने में डायरी ( diary ) माफिया का सबसे बड़ा योगदान है। इंदौर के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पिछले पांच साल लगातार भूमाफियाओं से ठगाए हुए लोग हर मंगलवार को जनसुनवाई में कलेक्टर के सामने खड़े रहते हैं। हर कलेक्टर जांच के लिए बोल देता है लेकिन बाद में कोई कार्रवाई नहीं होती।

diary के आधार पर प्लॉट खरीदने वाले मजबूर

पांच सालों में डायरी ( diary ) वाले कालोनाइजरों के खिलाफ कलेक्टर के बयान और सरकारी प्रेस नोट के आधार पर बात मानें तो ऐसा लगता है कि कोई समस्या नहीं बची है। हालांकि, वास्तविक स्थिति ‘बद से बदतर’ है। भूमाफिया जिस तरह से अफसरों को खरीदने की अपनी ताकत लगातार बढ़ा रहे, उसके कारण लोगों को अपने प्लॉट नहीं मिल रहे हैं। डायरी लेकर घूमने वाले पुलिस थानों के चक्कर लगाकर भी थक गए, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इन डायरी वालों के मामले में हकीकत यह है कि यह अब अफसरों की परवाह भी नहीं पालते हैं। जांच के नाम पर अफसरों के दफ्तर में ‘तारीख पर तारीख’ लगती रहती है। कभी लोकसभा तो कभी विधानसभा या नगर निगम चुनाव की तैयारियों के चलते अफसर डायरी वालों को टरकाते रहते हैं या फिर वीआईपी नेताओं के आगमन से लेकर बैठकों के दौर और वीडियो कान्फ्रेंसिंग के बहाने अफसर दायें-बायें रहते हैं। डायरी वाले लोग शिकायत करने के लिए जाते हैं, अफसर के दफ्तर के बाहर खड़े रहते हैं, घंटों खड़े रहने के बाद डायरी के आधार पर प्लॉट खरीदने वाले वापस घर जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

डायरी वाले कालोनाइजर नहीं दे रहे प्लाट

इन डायरी वालों की हालत यह है कि रोजाना वे किसी न किसी के चक्कर लगाते रहते हैं। इंदौर में लगातार सांसद से लेकर विधायक और मेयर, भाजपा के ही बनते हैं लेकिन जनप्रतिनिधि इन डायरी वालों की मदद के लिए आगे नहीं आते। इतना जरूर है कि जनप्रतिनधि डायरी पर प्लाट काटने वाले कालोनाइजरों को बुलाकर, यह कह देते हैं कि तुम्हारी शिकायतें आ रही हैं, चंदा दे दो। कभी पार्टी के नाम पर, कभी भंडारे के नाम पर तो, कभी चुनाव के नाम पर या फिर अपने खर्चे के लिए कालोनाइजरों को ब्लैकमेल करके जनप्रतिनिधि पैसा वसूलते रहते हैं। सफेदपोश गुंडों की तरह जनप्रतिनधि इंदौर में कालोनाइजरों से पैसा लेने में सबसे आगे हैं। यही कारण है कि जनप्रतिनिधि सोए रहते हैं, इसलिए अफसर भी बिकने के लिए तैयार रहते हैं। इंदौर शहर में घूम रही 25 हजार से ज्यादा डायरी वालों की सुनवाई करने के लिए कोई खैरख्वाह अभी तक आगे नहीं आया। शायद डायरी वालों की किस्मत में यह है कि वो मरते दम तक, अफसरों के चक्कर लगाते रहेंगे, लेकिन उनके मरने के बाद भी उनके वारिसों को डायरी वाले कालोनाइजर प्लाट नहीं देंगे।