स्वतंत्र समय, इंदौर
न्याय नगर एक्सटेंशन की जमीन पर बने मकानों को बुलडोजर ( bulldozer ) तोड़ने की कार्रवाई शुक्रवार को भारी विरोध और हंगामा की भेंट चढ़ गई। इंदौर नगर निगम की रिमूवल गैंग, जिला प्रशासन के अधिकारियों और बड़े पुलिस बल के साथ इस कार्रवाई को अंजाम देने के लिए पहुंची थी। इसके बावजूद कार्रवाई करने में जन विरोध को देखते हुए अफसरों के पसीने छूट गए। हंगामे के दौरान न्याय नगर के लोगों ने रिमूव्हल गैंग पर पथराव भी किया। तीन घंटे चले इस हंगामे के दौरान पुलिस के सहयोग से निगम की कार्रवाई शुरु हुई।
8 मकानों पर बुलडोजर bulldozer चलाया
निगम ने 71 अवैध मकानों में से 8 मकानों पर बुलडोजर ( bulldozer ) चलाया। हंगामे के दौरान पथराव हुआ, लोग बुलडोजर के सामने लेट गए, एक महिला ने फांसी लगाने का प्रयास किया जबकि एक महिला के बारे में बताया गया की उसे माताजी की सवारी आई थी। निगम ने यह कार्रवाई न्यायालय के निर्देश पर की। इधर अफसरों ने बताया की न्याय नगर में अब सुरक्षा व्यवस्था के साथ कार्रवाई की जाएंगी। न्याय नगर में लगभग 71 मकान ऐसी जमीन पर बने हुए हैं, जो एक भवन निमार्ता की जमीन है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने अतिक्रमण हटाने के निर्देश दिए हैं। इसी के तहत शुक्रवार को नगर निगम का अमला मौके पर पहुंचा और उसने कुछ मकानों पर बुलडोजर चलाया। नगर निगम की कार्रवाई से लोगों में गुस्सा देखने को मिला। कार्रवाई के विरोध में स्थानीय लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया। कई लोग बुलडोजर के आगे लेट गए और कार्रवाई रोकने की अपील करने लगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें मकान खाली करने के लिए छह अगस्त तक का समय दिया है।
कोर्ट ने दिया था आदेश
एडीएम रोशन राय ने बताया कि यह जमीन श्रीराम बिल्डर के नाम पर थी। बिल्डर ने अपनी जमीन से अतिक्रमण हटाने के लिए कोर्ट का रुख किया था। जिसके बाद कोर्ट ने अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं। आदेश के तहत यह कार्रवाई की जा रही है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने अपनी जमीन जायदाद बेचकर यहां पर जमीन खरीदी और मकान बनवाया। इसका रजिस्ट्री भी उनके पास है, नगर निगम के कागज भी हैं।
टीम के पहुंचते ही लोग सडक़ पर उतरे
इस योजना के अनुसार ही जिला प्रशासन, नगर निगम और पुलिस विभाग की टीम कार्रवाई करने के स्थल पर पहुंच गई थी। इस बात की आशंका पहले से ही पुलिस और प्रशासन दोनों को ही थी इस कार्रवाई का जनता के द्वारा विरोध किया जाएगा। जब कार्रवाई करने के लिए यह टीम मौके पर पहुंची तो वहां पर बड़ी संख्या में नागरिक सडक़ पर निकलकर आ चुके थे। इस कॉलोनी में घर बनाकर रहने वाले लोग इस कार्रवाई का विरोध करने लगे। मौके पर जमा भीड़ को देखते हुए अधिकारियों ने होशियारी से काम लेना ही पसंद किया है। लोगों के विरोध के बीच में अधिकारियों के द्वारा विरोध करने वालों के साथ बातचीत करने की कोशिश की गई। इस बातचीत का कोई नतीजा निकलने की ना तो उम्मीद थी ना निकल सका।
कार्रवाई के दौरान पथराव
पुलिस बल की मौजूदगी में जब नगर निगम की रिमूव्हल गैंग ने मकानों पर जेसीबी और बुलडोजर चलाना शुरु किया तो कुछ लोगों ने जेसीबी और बुलडोजर पर पथराव शुरू कर दिया। कुछ देर के लिए यहां अफरा तफरी मच गई। पुलिस ने भी आक्रामक रुख अपनाते हुए भीड़ को तितर बितर किया। इसी प्रकार जिस समय इस कॉलोनी में नागरिकों के द्वारा विरोध प्रदर्शन किया जा रहा था उस समय पर विरोध में शामिल इसी कॉलोनी में रहने वाली एक महिला को कालका माता की सवारी आ गई।यह सवारी थोड़ी देर रही उसके बाद में यह महिला सामान्य हो गई और जब महिला को सवारी आ रही थी महिला रहवासियों ने जमकर कालका माता के जयकारे भी लगाए।
भू-माफिया का रसूख दिखाते हैं न्याय नगर के अवैध मकान
इंदौर में भू माफिया और प्रशासन की मिलीभगत से कैसे जमीनों का खेल होता है, इसका जीता-जागता प्रमाण है न्याय नगर। जो जमीन सीधे-सादे ढंग से 21 साल पहले ही बिक चुकी थी। भू माफिया दीपक मद्दे, बब्बू-छब्बू, नागर आदि ने अवैध खरीद फरोख्त कर इस जमीन के प्लॉट काटकर बेच डाले। इतना ही नहीं यहां बीते सालों में 71 अवैध मकान भी तनवा दिए। जबकि यह जमीन प्राधिकरण की पुरानी योजना 132, जिसे अब 171 के नाम से पहचाना जाता है, के खसरा नंबर 83/2, 84/2, 66/2-क, 73/4/2, 74 और 75/3 की है। कुल रकबा 3.194 हेक्टेयर यानी लगभग 8 एकड़ की यह जमीन श्रीराम बिल्डर्स तर्फे शशिभूषण खंडेलवाल की है, जो 2003 में बिक गई थी। जिस पर नगर तथा ग्राम निवेश ने 7 जुलाई 2006 को ही अभिन्यास मंजूर किया था। चूंकि मास्टर प्लान में इस जमीन का उपयोग वाणिज्यिक दर्शाया गया है। लिहाजा अभिन्यास और नगर निगम से मिली मंजूरी भी वाणिज्यिक ही रही। शासन, प्राधिकरण बोर्ड का निर्णय भी बिल्डर के पक्ष में हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने भी बिल्डर के पक्ष में फैसला सुनाया। इसी का पालन करते हुए प्रशासन को जमीन का कब्जा खाली करवाकर देना है, क्योंकि हाईकोर्ट में अवमानना याचिका भी बिल्डर की ओर से दायर कर रखी है। इसके पूर्व जब आपरेशन भू-माफिया शुरू हुआ, तब संस्थाओं की जमीनों को मुक्त करवाकर पीडि़तों को भूखंड उपलब्ध कराने की प्रक्रिया शुरू की गई, जिसके चलते न्याय विभाग कर्मचारी गृह निर्माण संस्था की जमीनों की भी जांच तत्कालीन कलेक्टर ने करवाई और सहकारिता विभाग के जरिए पूर्व में दी गई एनओसी को भी निरस्त करवा दिया। हालांकि बाद में हाईकोर्ट ने इस पर भी फटकार लगाई और खासकर निगम पर सवाल उठाए कि उसे दी गई भवन अनुज्ञा और रजिस्ट्रियों को शून्य करने के अधिकार कैसे हैं। रहवासियों की एसएलपी भी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी।