स्वतंत्र समय, भोपाल
मध्यप्रदेश के मंत्री नागर सिंह (Nagar Singh) चौहान से वन विभाग वापस लिए जाने पर राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चाओं का दौर जारी है। प्रमुख मामला कटनी का ही बताया जा रहा है। इसमें मंत्री द्वारा एसएलपी वापस लेने वाली नोटशीट पर हस्ताक्षर करने का है। वहीं, राजनीतिक पक्ष भी जुड़ गया है। इसके पीछे कटनी के खनन क्षेत्र में एकाधिकार का मामला है। फिलहाल पूर्व मंत्री की भूमिका और हस्तक्षेप के चलते ही फॉरेस्ट विभाग छीना गया है।
Nagar Singh का असली विवाद फॉरेस्ट की भूमि को लेकर है
तत्कालीन वन मंत्री चौहान ( Nagar Singh ) ने 23 अप्रैल को एसएलपी वापस लेने की नोटशीट पर मंजूरी दी थी। इसके बाद, यह फाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया के पास भेजी गई और उसी तारीख को सचिव और फिर ओएसडी तक पहुंच गई। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में बाद में बाधा उत्पन्न हो गई और कटनी डीएफओ ने कलेक्टर के पास अपील कर दी। फॉरेस्ट सेटलमेंट ऑफिसर के आदेश अब अंतिम हो चुके हैं। वन और राजस्व विभाग के संयुक्त सीमांकन के आधार पर कार्यवाही की जाए। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में विधि विभाग के प्रमुख सचिव भी मौजूद थे। विधि विभाग और महाधिवक्ता की राय भी प्राप्त है। इसलिए, पूर्व में अनुमोदित निर्णय के अनुसार प्रकरण को तुरंत वापस लिया जाए। महाकौशल के इस पूर्व मंत्री ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पार्टी में बाहरी लोगों की एंट्री कराई। माना जा रहा है कि कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी और उनके समर्थक रहे संजय शुक्ला को भाजपा में शामिल करने में अहम भूमिका संजय पाठक की रही। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है क्योंकि कटनी को लेकर जिस तरह से भाजपा ने अनुसूचित जाति के एसीएस और अनुसूचित जनजाति के मंत्री को विभाग से हटाया, उससे राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में जातिगत संघर्ष की नई जमीन तैयार हुई है। वहीं, पीआरओ के माध्यम से बाकायदा सीएम को चिट्ठी लिखवा कर इस मामले की शिकायत कराई गई थी। इसमें वन भूमि को मिलीभगत करके किसी को दिए जाने की साजिश बताया जाता है।
मामला 148 एकड़ जमीन खनन के लिए देने से जुड़ा है
सूत्र बताते हैं कि यह पूरा मामला कटनी के ढीमरखेड़ा तहसील के झिन्ना और हरैया की 148 एकड़ जमीन के खनन के लिए देने से जुड़ा है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई है। इसमें से एक पक्ष वन विभाग का है तो दूसरा पक्ष खनन कारोबारी आनंद गोयंका (मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका) का है। मंत्री नागर सिंह चौहान ने इन्हीं कारोबारी के लिए वन विभाग को एसएलपी वापस लिए जाने के लिए नोट शीट लिखी थी। तत्कालीन एसीएस फॉरेस्ट जेएन कंसोटिया ने मंत्री की नोट शीट को आगे बढ़ते हुए डीएफओ गौरव चौधरी को एसएलपी वापस लिए जाने के लिए लिख दिया था। हाल में वन विभाग में पदस्थ हुए नए अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने मंत्री के फैसले वाली नोट शीट को हटाते हुए लिखा कि एसएलपी वापस नहीं ली जाए। साथ ही कटनी डीएफओ सरकार के अगले आदेश का इंतजार भी करें, वन विभाग का दावा है कि यह जमीन फॉरेस्ट की है सिर्फ रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। हालांकि गोइंग का पक्ष हाईकोर्ट में फैसला अपने पक्ष में ले चुका है इसके बाद वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी।
सुको की एंपावर्ड कमेटी ने किया था हस्तक्षेप
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी को अधिकृत किया था। इस कमेटी की अनुशंसा के आधार पर फॉरेस्ट सेटलमेंट ऑफिसर (एफएसओ) ने जमीन को डी-नोटिफाई करने के आदेश जारी किए थे। एफएसओ के आदेश के खिलाफ कटनी डीएफओ गौरव चौधरी ने कलेक्टर कोर्ट में अपील की है। मंत्री चौहान द्वारा एसएलपी वापस लेने की सिफारिश की गई। अब आगे कार्यवाही के लिए फाइल रोक दी गई है। इससे पहले भी, कलेक्टर ने इस जमीन को डी-नोटिफाई करने के आदेश पर स्टे जारी किया था।