लेखक
चैतन्य भट्ट
मध्यप्रदेश के एक मंत्री ( Minister ) जी ने कुछ ऐसा कर गए साथ ही वे भूल गए कि वे भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मंत्री हैं जहां अनुशासन का ऐसा अदृश्य डंडा घूमता रहता है जिसकी आवाज भी सुनाई नहीं पड़ती और डंडा भी पड़ जाता है। कई बार ये होता है कि आदमी अपनी ताकत नहीं तोलता और सामने वाले को मुकाबले के लिए चुनौती दे देता है और जब भीमकाय सामने वाला उसके मुकाबले पर आता है तो वो अपनी पूंछ दबाकर चंद मिनट में अपने आप को उसके हवाले कर देता है। इन मंत्री जी के पास कमाई वाला विभाग “वन एवं पर्यावरण” भी था, लेकिन हाल ही में कांग्रेस से अपना पल्ला छुड़ाकर बीजेपी में शामिल हुए एक विधायक को मंत्री बनाने का वादा पार्टी ने कर दिया था सो उन्हें मंत्री तो बनाना ही था अब जब मंत्री बनाना था तो डिपार्टमेंट भी देना था सो ऊपर से आदेश हुए कि पुराने वाले मंत्री जी से एक विभाग लेकर आयातित मंत्री को दे दिया जाए।
पुराने Minister जी बोले- मैं दिल्ली जाकर हाई कमान से बात करूंगा
मुख्यमंत्री ने नए बनाए गए मंत्री ( Minister ) को वन एवं पर्यावरण विभाग दे दिया, बस क्या था पुराने मंत्री जी का गुस्सा आसमान पर पहुंच गया घोषणा कर दी कि यदि उनका मंत्रालय उन्हें वापस नहीं मिला तो वे पार्टी से इस्तीफा दे देंगे और तो और अपनी पत्नी जो हाल ही में सांसद बनी उनका भी इस्तीफा दिलवा देंगे। आजकल वैसे भी भारतीय जनता पार्टी को एक-एक सांसद की जरूरत है सो भोपाल से लेकर दिल्ली तक हडक़ंप मच गया, पुराने मंत्री जी बोले मैं दिल्ली जाकर हाई कमान से बात करूंगा लेकिन हाई कमान कोई ऐसा फालतू तो बैठा नहीं है जो किसी से भी मिलने तैयार हो जाए, तीन घंटे मंत्री जी बैठे रहे तब भी पार्टी अध्यक्ष से बात नहीं हुई और साफ-साफ कह दिया गया कि ज्यादा नौटंकी की तो सारे काले चिट्ठे बाहर आ जाएंगे, मंत्री जी ने तुरंत अपनी पूंछ दबाई और वापस भोपाल लौट आए लौटे तो लौटे आधी रात को मुख्यमंत्री के दरवाजे पर दस्तक दी उनके सामने सरेंडर किया और हाथ जोडक़र कहा गलती हो गई,फिर निवेदन किया कि एक मुस्कुराती हुई फोटो सीएम साहब के साथ हो जाए और उसे वायरल भी कर दिया कि सब कुछ ठीक है कहीं कोई गुस्से वाली बात नहीं है, मुझे आश्वासन मिला है कि मेरा भविष्य अच्छा रहेगा । अपनी तो समझ से बाहर है कि मंत्री जी तो इतने समय से भारतीय जनता पार्टी में हैं उन्हें तो मालूम होना चाहिए कि यहां ज्यादा चूं चपड़ नहीं चलती एक मिनट में दूध में से मक्खी जैसे बाहर निकाल कर फेंक दिया जाता है उसके बाद भी मंत्री जी ने पता नहीं क्या सोचकर यह कदम उठाया अब ये तो वही बता सकते हैं लेकिन इस घटना के बाद जो भी नेता थोड़ा बहुत विद्रोह करने की सोच रहे होंगे उनके भी कान खड़े हो गए होंगे उन्होंने भी ईश्वर की शपथ ले ली होगी की भैया जो पार्टी कहेगी उसे आंख मूंदकर स्वीकार कर लेंगे वरना पार्टी कब बाहर कर दें कोई नहीं जानता ।
आओ माइक-माइक खेलें
इन दिनों भारत की राजनीति में “माइक की बड़ी चर्चा है माइक होता ही इसलिए है कि आप जो कुछ कहना चाहते हो वो 10 गुना तेजी से सुनाई पड़े लोगों को । भाषण में भी माइक की जरूरत पड़ती है और राजनेताओं को तो बिना माइक पकड़े नींद ही नहीं आती, जब तक उनके सामने माइक ना हो तब तक उन्हें कुछ अजीब सा महसूस होता रहता है। नीति आयोग की बैठक में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी गई और आधी बैठक में से बाहर आ गई और कह दिया कि मेरा माइक बंद कर दिया गया था । इसके पहले लोकसभा में राहुल गांधी भी कह रहे थे कि जब भी मैं सरकार की आलोचना करता हूं मेरा माइक बंद कर दिया जाता है और भी विरोधी पक्ष के नेता अक्सर आरोप लगाते हैं कि जब भी वे लोकसभा या राज्यसभा में अपनी बात कहना चाहते हैं तो उनका माइक बंद कर दिया जाता है। माइक हो या लाउडस्पीकर दोनों का एक ही काम है आवाज को ज्यादा से ज्यादा तेज करके लोगों तक पहुंचाना अब जब योगी और मोहन सरकार दोनों ने लाउडस्पीकर पर रोक लगा दी है तो फिर माइक तो उसका छोटा बच्चा है उसे बंद करना तो बहुत आसान काम है इधर बटन दबाया उधर माइक खामोश हुआ ।
आप कितनी ही जोर से चिल्लाओगे ज्यादा से ज्यादा दस बीस लोगों तक आपकी आवाज पहुंचेगी लेकिन जब माइक आपके हाथ में होगा तो आपकी आवाज दूर तलक पहुंच जाएगी । दूसरी बात ये भी है कि सरकार काहे को अपनी आलोचना सुनना पसंद करेगी । आप उसकी आलोचना करो और वो आपको माइक देते हैं ऐसा तो कभी होता नहीं है वो तो अच्छा है कि आप लोगों के मुंह पर टेप नहीं लगाया जाता माइक ही बंद होता है । उधर सरकार कह रही है कि हमारे पास तो कोई बटन ही नहीं है माइक तो टेक्निकल चीज हैं कब लाइट बंद हो जाती है और उसके साथ माइक बंद हो जाता है हमें क्या मालूम ? और आजकल तो लाइट बंद होना बहुत ही साधारण सी बात है यह बात अलग है कि जब जब सरकार की आलोचना होती है उसी समय बिजली गोल हो जाती है और माइक बंद हो जाता है और क्यों ना हो बिजली भी तो सरकार ही दे रही है ।
गधों का जलवा
इन दिनों मालवा के मंदसौर में गधों का बड़ा जलवा चल रहा है । वैसे तो जानवरों में गधा सबसे सीधा माना जाता है कितना भी वजन लाद दो वो चुपचाप उस वजन को गंतव्य तक पहुंचा भी देता है इसके बावजूद उस बेचारे सीधे-साधे जानवर के नाम का गाली के रूप में उपयोग किया जाता है , पता चला है कि मंदसौर में बारिश नहीं होने से वहां के ग्रामीण जनों ने पहले तो गधों से खेत में जुताई करवाई और घोषणा करी कि अगर अच्छी बारिश होगी तो वे गधों को गुलाब जामुन खिलाएंगे । ऊपर वाले ने भी सोचा ,बेचारा गधा जिंदगी भर वजन ढोता रहता है कभी तो इसको भी गुलाब जामुन खाना चाहिए सो ऊपर वाले ने भी धकाधक बारिश शुरू कर दी चूंकि ग्रामीणों ने टोटका किया था और शपथ ली थी कि बारिश आयेगी तो गधों को गुलाब जामुन खिलाएंगे तो तमाम गधों को इक_ा किया और थाली भर भर कर गुलाब जामुन उन्हें खिलाए गए । गधे भी सोच रहे होंगे कि पिछले जन्म में हमने जरूर कोई ऐसे पुण्य के काम किए होंगे कि हमें घास की बजाय गुलाब जामुन खाने मिल रहा है ।
सुपर हिट ऑफ़ द वीक
श्रीमान जी आलसियों पर शोध करने एक गांव में पहुंचे और गांव वालों से पूछा इस गांव का सबसे बड़ा आलसी कौन है।
गांव वाले उन्हें एक बहुत ऊंचे पेड़ के पास के गए और सबसे ऊंची डाल पर बैठे आदमी की तरफ इशारा करते हुए कहा।
ये हमारे गांव का सबसे आलसी व्यक्ति है।
ये कैसे हो सकता है इसने तो पेड़ पर चढऩे के लिए मेहनत की होगी।
जी नहीं ये साला बीज पर बैठ गया था गांव वालों ने उत्तर दिया।
(लेखक के ये निजी विचार हैं)