सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के ईवी चिन्नैया केस में दिए गए निर्णय को बदलते हुए बोलै कि राज्यों को SC-ST कैटिगरी में सब-क्लासिफिकेशन का अधिकार है। साथ ही कोर्ट ने बोला कि इसके लिए राज्य को डेटा से यह दिखाना होगा कि उस वर्ग का अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है। जस्टिस बी. आर. गवई सहित 4 जजों ने यह भी बोला कि SC-ST कैटिगरी में भी क्रीमीलेयर का सिद्धांत लागू होना चाहिए। मौजूदा वक़्त में क्रीमीलेयर का सिद्धांत सिर्फ OBC में लागू है। जस्टिस पंकज मित्तल ने भी ऐसा ही मत दिया और बोला कि रिजर्वेशन 1 जेनरेशन तक सीमित होना चाहिए। अगर, पहली जेनरेशन रिजर्वेशन पाकर आगे की तरफ जाती है तो दूसरी जेनरेशन को रिजर्वेशन का फायदा नहीं मिलना चाहिए। 7 जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से निर्णय सुनाया। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी का निर्णय अलग था।
सात जजों की बेंच में छह जज ने एकमत से दिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ की अगुआई वाली 7 जजों की बेंच में 6 जज ने एकमत से दिए निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के 2004 के ईवी चिन्नैया केस में दिए निर्णय को बदल दिया। 2004 के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने बोला था कि राज्यों को सब-क्लासिफिकेशन करने की मंजूरी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के 6 जजों ने इस निर्णय को बदल दिया। हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने 6 जजों से असहमति जताई। चीफ जस्टिस की अगुआई वाली 7 जजों की बेंच ने बोला है कि SC के सब-क्लासिफिकेशन से संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। साथ ही बोला कि इससे अनुच्छेद-341 (2) का भी उल्लंघन नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट ने बोला है कि अनुच्छेद-15 और 16 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो राज्यों को रिजर्वेशन के लिए जाति में सब-क्लासिफिकेशन से रोकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बोला है कि किसी भी जाति के सब-क्लासिफिकेशन के लिए राज्य को डेटा से बताना होगा कि उस वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है। राज्य इस मामले में मनमर्जी नहीं कर सकता या फिर राजनीतिक लाभ के लिए ऐसा नहीं कर सकता। उसका कोई भी निर्णय जुडिशल रिव्यू के दायरे में होगा। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा ने साथ में लिखे निर्णय में बोला कि संविधान के प्रावधान SC कैटिगरी में सब-क्लासिफिकेशन की मंजूरी देता है।
फैसले का क्या होगा असर?
अलग-अलग कैटिगरी में सब-क्लासिफिकेशन कर नए सिरे से रिजर्वेशन का मामला राजनीतिक रूप से शुरू से संवेदनशील रहा है। मौजूदा केंद्र सरकार ने भी OBC कैटिगरी के अंदर सब-कैटिगरी तलाशने के लिए रोहिणी कमिशन बनाई थी। इसकी रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं हुई है। ऐसे में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश बहुत ख़ास है, क्योंकि कोर्ट ने अब बोला है कि राज्यों को इस बात की शक्ति है कि वह अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा देखकर सब-क्लासिफिकेशन को रिजर्वेशन दे सकता है। यह निर्णय आगामी दिनों में नजीर बनेगा। अब SC-ST कैटिगरी में सबग्रुप बनाने के मामले में सरकार बहुत फूंक-फूंक कर कदम उठाएगी। यह विषय ऐसे वक़्त आया है जब देश में जातिगत जनगणना को लेकर बहस चल रही है। ऐसे में सरकार आरक्षण या जाति से जुड़े किसी मसले में बहुत सावधानी रखेगी।