Co operative में भी छात्र संघ पैटर्न पर चुनाव

प्रवीण शर्मा, भोपाल

एक तरफ छात्र संघ चुनाव अप्रत्यक्ष की जगह प्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की मांग की जा रही है, वहीं प्रदेश में अब सहकारिता ( Co operative ) के चुनाव भी छात्र संघ पैटर्न यानि अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने की तैयारी शुरू हो गई है। भारतीय जनता पार्टी ने सहकारी समितियों के संचालक मंडलों के लिए चुनाव के विकल्प की खोज लगभग पूरी कर ली है। मंगलवार को सहकारिता के दिग्गजों की भी सहमति ले ली जाएगी। निर्वाचन की बजाय संचालक मंडलों के सदस्य नियुक्त किए जा सकते हैं।

Co operative चुनाव को लेकर दबाव है

सहकारिता ( Co operative ) चुनाव को लेकर सरकार पर अदालत का दबाव बना हुआ है। हाईकोर्ट के दबाव में सरकार ने जुलाई से सितंबर तक चार चरणों में चुनाव का कार्यक्रम भी घोषित किया था। मगर मानसून को आगे कर चुनाव चुपचाप से दबा दिए गए। सरकार को परेशानी से बाहर निकालने का जिम्मा संगठन ने उठाया है। प्रदेश संगठन ने मंगलवार को सहकारिता के नए-पुराने दिग्गजों को भोपाल बुलाया है। यहां प्रदेशाध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा, संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा के अलावा प्रदेश प्रभारी डॉ. महेंद्र ङ्क्षसह और सह प्रभारी सतीश उपाध्याय सहकारिता के 15 दिग्गजों के साथ इस मामले पर मंथन करेंगे। इस बैठक में चुनाव का विकल्प खोजा जाना है। संगठन का प्रस्ताव है कि सहकारिता क्षेत्र में संचालक मंडलों के सदस्यों की नियुक्ति कर दी जाए है। इससे समय भी बचेगा और समितियों और संचालक मंडल में लंबे समय से पदस्थ प्रशासकों की जगह सरकार अपने प्रतिनिधि पदस्थ कर सकेगी।

सरकार को है नियुक्ति का अधिकार

कृषि, डेयरी, मस्त्य पालन, मार्केटिंग फेडरेशन सहित करीब आधा दर्जन क्षेत्रों में किसान प्राथमिक सहकारी समितियों के सदस्यों का चुनाव करते हैं। इनमें से ही जिला और फिर प्रदेश के संचालक मंडल बनते हैं। सहकारिता अधिनियम में सरकार को अधिकार है कि वह चाहे तो सदस्यों की सीधी नियुक्ति कर सकती है। इसके लिए प्राथमिक समितियों के सदस्य बनाए जाते हैं। इन्हीं में से फिर जिलों के संचालक मंडल के सदस्य पर चुन लिये जाते हैं और अंत में प्रदेश स्तरीय संचालक मंडल के 11 सदस्य चुने जाते हैं। मंगलवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय में होने वाली बैठक में अप्रत्यक्ष प्रणाली से संचालक मंडलों के चयन पर मुहर लगाई जाने की संभावना है।

दबे पांव चल रही है प्रक्रिया

सूत्रों के मुताबिक कार्यक्रम घोषित होने के बाद भी चुनाव न होते देख प्रदेश भर में समितियों के सदस्यों की नियुक्ति दबे पैर बीते महीनों से चल रही है। ढाई हजार से ज्यादा समितियों के 11-11 सदस्य बनाए जा चुके हैं। इनमें से कई ने जिला और प्रदेश के संचालक मंडलों के लिए दावेदारी की तैयारी पूरी कर ली है। अब संगठन से इस वैकल्पिक प्रक्रिया द्वारा हरी झंडी मिलते ही सरकार नियुक्तियां कर सकती है। इससे अदालत द्वारा तय समय सीमा में निर्वाचन प्रक्रिया भी पूर्ण हो जाएगी। प्रदेश में कृषि सहित सभी क्षेत्रों में करीब 55 हजार सहकारी समितियां हैं। जिनमें 2018 से ही प्रशासक ही काम संभाल रहे हैं।

इस पर संगठन मंगलवार को चिंतन करेगा

अदालत का दबाव है चुनाव तो समय से करना ही होंगे। प्रक्रिया क्या हो, इस पर संगठन मंगलवार को चिंतन करेगा। सहकारिता क्षेत्र के लिए जो भी फायदेमंद नियम संवत तरीके होंगे, उन पर विचार किया जाएगा।
मोहन राठौर, संयोजक भाजपा सहकारिता प्रकोष्ठ।