2 सितंबर को श्रावण-भादौ मास की शाही सवारी के अवसर पर सोमवती अमावस्या का महासंयोग बन रहा है, जो विशिष्ट योग और नक्षत्र की साक्षी में होगा। इस दिन का पंचांग विशेष महत्व रखता है और ज्योतिषाचार्य ने इसके बारे में बताया है। इस अवसर पर सुबह शिप्रा और सोमकुंड में पर्व स्नान होगा, और शाम को शाही सवारी के दौरान आस्था का सैलाब उमड़ने की उम्मीद है। प्रशासन ने अनुमान लगाया है कि इस महापर्व पर करीब पांच लाख भक्त शहर में आएंगे, जिसके लिए प्रशासन तैयारियों में जुट गया है।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पंचांग की गणना के अनुसार, 2 सितंबर को भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या, जिसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है, सोमवार के दिन मघा नक्षत्र और शिव योग के साक्षी में आ रही है। इसी दिन भगवान महाकाल की शाही सवारी भी निकलेगी, जो शाही ठाठ-बाट के साथ आयोजित की जाएगी। इस तिथि का विशेष महत्व है, खासकर लक्ष्मी जी की प्रसन्नता के लिए।
इस वर्ष की सोमवती अमावस्या, जिसे पिठोरी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है, श्रेष्ठ योग के साथ आ रही है। इन योगों के कारण पितरों और मां लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलने का अवसर बनता है, जिससे भक्तों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
सोमवती अमावस्या है अत्यंत महत्वपूर्ण
इस बार की सोमवती अमावस्या को ज्योतिष के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि यह बृहस्पति के केंद्र त्रिकोण योग में आ रही है। बृहस्पति को धर्म, ज्ञान, और तपस्या का कारक ग्रह माना गया है, और इस योग में आने वाली अमावस्या धर्म, अध्यात्म, और तपस्या के फल को प्रदान करने वाली होती है।
इस विशेष योग में पितरों के निमित्त तर्पण, पिंडदान, और देवी पूजन जैसे धार्मिक कार्यों का महत्व और भी बढ़ जाता है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों के योगों का बड़ा महत्व है, और इन योगों का प्रभाव गणितीय गणनाओं पर आधारित होता है, जो यह दर्शाता है कि किस समय कौन सा ग्रह किस राशि में प्रवेश कर रहा है और उसके गोचर के दौरान कौन से पर्व और अवसर आते हैं।
इस बार की सोमवती अमावस्या को धन, ऐश्वर्य, संतान की वृद्धि, और संतान उत्पत्ति के लिए भी विशेष माना जा रहा है। यह दिन पितरों के निमित्त विशेष प्रयोग और पूजा-अर्चना के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस अवसर पर सही विधि-विधान से पूजा करने से पितरों की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
ग्रह गोचर में सूर्य और चंद्र ग्रह का सिंह राशि में परिभ्रमण
ग्रह गोचर में सूर्य और चंद्र ग्रह का सिंह राशि में परिभ्रमण और मघा नक्षत्र पर संचरण, इस विशेष योग को और भी महत्वपूर्ण बनाता है। मघा नक्षत्र और सिंह राशि में सूर्य-चंद्र का यह योग पितरों को प्रसन्न करने के लिए अत्यंत अनुकूल और श्रेष्ठ माना जाता है। इस समय पितरों के निमित्त धर्म, दान, और पूजा-अर्चना करना बहुत फलदायी होता है।
इसके अतिरिक्त, मध्य रात्रि में भगवती लक्ष्मी की साधना करने का भी विशेष महत्व है। इस योग और स्थिति के कारण लक्ष्मी साधना का पूर्ण फल प्राप्त करने की संभावना बढ़ जाती है। इस समय की गई साधना से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है, जिससे घर में सुख-समृद्धि और धन-वैभव का आगमन होता है। इसलिए, इस समय मनोनुकूल साधना करना और सही विधि से पूजा करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है।