स्वतंत्र समय, उज्जैन/भोपाल
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ( CM Mohan Yadav ) के पिता पूनमचंद यादव का दाह संस्कार बुधवार को उज्जैन में शिप्रा तट पर कर दिया गया। उन्होंने मंगलवार को अंतिम सांस ली थी। वे करीब 100 साल के थे। एक हफ्ते से बीमार चल रहे थे और अस्पताल में भर्ती थे। पिता के निधन की खबर मिलते ही मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मंगलवार रात को भोपाल से उज्जैन पहुंच गए थे। बुधवार को सीएम निवास से दोपहर करीब 12 बजे शुरू हुई अंतिम यात्रा गीता कॉलोनी से शुरू होकर शहर के मुख्य मार्गों से होते हुए शिप्रा तट पर पहुंची। यहां भूखी माता मंदिर के पास बड़े बेटे नंदू यादव ने पिता को मुखाग्नि दी। इस दौरान सीएम मोहन यादव सहित पूरा परिवार मौजूद था। अंत्येष्टि में राज्यपाल थावरचंद गहलोत, केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा, डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा, राजेंद्र शुक्ल सहित मंत्रिमंडल के सहयोगी मौजूद थे।
CM Mohan Yadav के पिता की अंतिम यात्रा में हजारों लोग हुए शामिल
सीएम ( CM Mohan Yadav ) के पिता पूनमचंद यादव की अंतिम यात्रा में उज्जैन सहित प्रदेश भर से भाजपा नेता, विधायक, कार्यकर्ता, शहर के गणमान्य लोगों ने शिरकत कर श्रद्धांजलि दी। मंत्रियों में कैलाश विजयवर्गीय, उदय प्रताप सिंह, करण सिंह वर्मा, नारायण सिंह कुशवाह, लखन पटेल, विश्वास सारंग, राधा सिंह, पूर्व गृह मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा, मुख्य सचिव वीरा राणा, डीजीपी सुधीर सक्सेना, सीएम के एसीएस डॉ. राजेश राजौरा, सीएम के सचिव भरत यादव, जनंसपर्क आयुक्त डॉ. सुदाम खाड़े आदि ने भी सीएम के पिता के अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
100 साल का होने के बाद भी उपज बेचने खुद मंडी जाते थे
यादव समाज से जुड़े लोग बताते हैं कि, पूनमचंद यादव ने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया। उन्होंने बेटे नंदू यादव, नारायण यादव, मोहन यादव और बेटी कलावती, शांति देवी को अच्छी शिक्षा दिलाई। संघर्ष के दिनों में उनके पिता रतलाम से उज्जैन आ गए और सबसे पहले हीरा मिल में नौकरी की। इसके बाद शहर के मालीपुरा में भजिया और फ्रीगंज में दाल-बाफले की दुकान लगाई। 100 वर्ष की उम्र होने के बाद भी वे उपज बेचने खुद मंडी जाते थे।
पिता के संस्मरण सुनाकर भावुक हुए मोहन
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से उनके पिता के निधन पर निज निवास पर जब आमजन मिलने पहुंचे तो वे पिता के संस्मरण सुनाकर भावुक हो गए। अपने पिताश्री की स्मृतियों को साझा करते हुए उन्होंने बताया कि उज्जैन विकास प्राधिकरण के चेयरमेन से लेकर विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री बनने पर भी उनके पिता ने सरकारी सुविधा से सदैव परहेज रखा। उन्होंने कहा कि जब वे विधायक का चुनाव जीतकर आये और पिताजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा- जीत गए अच्छी बात है लेकिन हमेशा स्वाभिमान की जिंदगी जीना। कभी किसी के पैरों में मत गिरना। अपने दम पर और कर्म के आधार पर आगे बढऩा। स्वयं के द्वारा की गई मेहनत ही एक दिन रंग लाएगी और ऊंचाई तक पहुंचाएगी। जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा- अच्छा काम करना, लोगों का भला करना। किसी को दु:ख पहुंचे, ऐसा काम कभी मत करना। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे। वे अपना काम आखिरी समय तक स्वयं ही करते रहे। कोई मिलने आता तो वे कभी यह नहीं कहते थे कि मैं विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री का पिता हूं। ताउम्र वे सामान्य जीवन जीते रहे। जब मुख्यमंत्री निवास में जाते समय मैंने उनसे साथ चलने का आग्रह किया तो पिताजी ने कहा मैं तो यहीं पर अच्छा हूं। आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं। तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो। मैं यहीं पर अच्छा हूं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि पिताश्री के दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना भी था। फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्रेक्टर ट्रॉली के साथ स्वयं उपज बेचने के लिए मंडी जाना… उनका यह नित्य क्रम था। हम सब कहते भी थे कि यह सब आप मत किया करो, आराम करो, आपको जाने की क्या आवश्यकता है। वे कहते थे कि यह मेरा काम है और मैं ही करूंगा। वे बाजार भी जब-तब सामान लेने निकल जाते थे। कभी उन्होंने किसी की भी किसी काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की। मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनेता। पिताश्री की स्मृतियों के साथ मां को भी याद कर वे भावुक हो गये और उन्होंने कहा कि पिताजी की तरह ही मां भी बेहद कर्मशील थीं। दोनों ने मुझे सदैव कर्मशील बने रहने की सीख दी और उनकी इसी सीख पर मैं अब तक अडिग होकर चला हूं और आगे भी चलता रहूंगा।