Rishi Panchami 2024: इस दिन है ऋषि पंचमी, जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति दिलाता है ये व्रत, महिलाओं के लिए है बेहद खास

Rishi Panchami 2024: ऋषि पंचमी का व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन ऋषि मुनियों की पूजा और उनके प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है क्योंकि उनका योगदान जीवों और मानवता की रक्षा में अत्यंत महत्वपूर्ण है। सनातन धर्म में यह मान्यता है कि सभी का सम्मान और सुरक्षा करना हमारा पहला कर्तव्य है। ऋषि पंचमी का त्योहार भारत के विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है, और यह गणेश चतुर्थी के अगले दिन होता है।

ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषियों का सम्मान किया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से महिलाएं करती हैं, जो अपने पति के प्रति विश्वास, प्रेम और दीर्घायु की कामना करती हैं। इसके अलावा, यह व्रत मासिक धर्म के दौरान लगे पापों से छुटकारा पाने के लिए भी किया जाता है। इस व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और इसे करने से पापों से मुक्ति और सौभाग्य प्राप्ति की मान्यता होती है। व्रत के नियम काफी कड़े होते हैं, और महिलाएं मासिक धर्म समाप्त होने के बाद इस व्रत को आरंभ करती हैं। इस व्रत को सात वर्षों तक लगातार करने की परंपरा है, हालांकि किसी कठिनाई की स्थिति में इसे बीच में छोड़ा भी जा सकता है।

08 सितंबर 2024 को ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाएगा। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10:00 बजे से 1:00 बजे दोपहर तक रहेगा। ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषियों की पूजा की जाती है, जिनके नाम हैं:

– गौतम
– भारद्वाज
– विश्वामित्र
– जमदग्नि
– वशिष्ठ
– कश्यप
– अत्रि

इसके अलावा देवी अरुंधती की भी पूजा की जाती है। पंचमी तिथि का प्रारंभ 07 सितंबर 2024 को सांध्य 05:37 बजे से होगा और समाप्ति 08 सितंबर 2024 को सांध्य 07:58 बजे तक होगी।

ऋषि पंचमी के व्रत के दिन महिलाएं निम्नलिखित विधियों का पालन करती हैं:

1. नित्य कर्म: महिलाएं नित्य कर्म से निर्मित होकर व्रत करती हैं और 108 दातुआन से मुंह को साफ करती हैं।
2. नई वस्त्र धारण: नया वस्त्र पहनना अनिवार्य है।
3. सप्तऋषि की पूजा: कुश से सप्तऋषियों की मूर्तियां बनाकर उन्हें गंगाजल से स्नान कराना, चंदन, वस्त्र चढ़ाना, धूप, अगरबत्ती, और दीपक जलाना।
4. ऋतुफल और मिठाई: पूजा में ऋतुफल और मिठाई चढ़ाना।
5. भोजन: व्रत के दिन नमक रहित खाना खाया जाता है, जिसमें दही और सादा चावल शामिल होते हैं। हल से जोते हुए खेत का खाना वर्जित है।
6. दान: पूजन के बाद, जो भी सामान सप्तऋषि को चढ़ाया गया हो, उसे ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए।

दिन में केवल एक बार भोजन करना होता है, और व्रत के नियमों का पालन कड़ाई से करना होता है।