आनंद मेला यानी क्या ? इसका एक जवाब ये है कि मेला यानी सामाजिकता और उत्सवधर्मिता का प्रकटीकरण!

हकीकतन हमारा देश भारत जो है, ये मेले-ठेले की संस्कृति वाला देश भी है। बताइए, कुंभ के मेले से कौन अनजान ? असल में तो ये पता नहीं कबसे हर चार बरस में देश के अलग-अलग लेकिन बहुत अहम धार्मिक स्थानों पर भरता-भराता चला आ रहा है। सो बोले तो सनातन की उस सामाजिकता और उत्सवधर्मिता का ये प्रकटीकरण सदियों पुराना है ! यद्यपि जो भी आप इसे समझें, लेकिन दूसरे शब्दों में कहें तो जीवन की दैनिक तमाम दन-फन को परे कर तफरीहन लिया जाने वाला एक बड़ा, सामूहिक ब्रेक !

अपवादों को छोड़ दें तो अकसर मेले से झूले जुड़े रहे हैं। इंदौर में ही साल में अलग-अलग जगह कई मेले भराते हैं और सबमें झूले जुड़े मिलते हैं। यों समग्र रूप से देंखें तो सामूहिक मनोरंजन या मेलमिलाप के साथ मेला एक प्राचीन ‘बिजनेस एक्टिविटी’ भी रही है। खैर।

आइए, लोधीपुरा नम्बर एक में गणेशोत्सव के तहत कल रात सजे आनंद मेले पर थोड़ा सा तब्सिरा करें। दरअसल लोधीपुरा में इस मेले की कल ये दूसरी सालगिरह थी। हां, पिछले बरस के गणेशोत्सव से इसका श्रीगणेश हुआ था। इसकी परिकल्पना को एक लाइन में बयां किया जाए तो वो यह है कि यह ‘लोधीपुरा नम्बर एक का जत्रा’ होता है। जी हां, लोधीपुरा का महिला मंडल और युवा अपने बनाये या ‘अरेंज’ किये व्यंजनों का स्टॉल लगाते हैं और मेले में आने वाले रसिक लोग दाम चुकाकर उनका लुत्फ लेते हैं।

विदित हो कि इसी गली में निवास करने वाली क्षेत्रीय विधायक मालिनी लक्ष्मणसिंह गौड़ की सुरुचि और आत्मीय देखरेख में इसका आयोजन सम्पन्न होता है। आयोजन का मकसद यही है कि लोधीपुरा और आसपास के लोगों में एकता, समन्वय और एक किस्म की बॉन्डिंग डेवलप हो। सुहानी बात ये कि बच्चों से लेकर बड़े तक बड़े उत्साह और उमंग से इसमें सहभागिता करते हैं। नतीजा यह कि यह वाकई एक आनंददायक उत्सव का रूप ले लेता है। कल रात बेशुमार लोगों ने इस उत्सव को ‘एन्जॉय’ किया।

इसमें खाने-पीने के करीब सौ स्टॉल लगाए गए थे और गोलगप्पे से लेकर नागोरी की क्लासिक शिकंजी, वड़ा पाव, चीज चप्पे, मैगी, कचोरी, कैफे और दूध के कड़ाव तक जाने क्या-क्या आयटम थे। नागोरी की शिकंजी, जाहिर है ‘आयात’ की गई थी और ये निर्दोष जतन वरिष्ठ कांग्रेस नेता गिरधर नागर का था और इनकी उदारता और आत्मीयता से सब वाकिफ। इनके भाराछासं नेता सुपुत्र चिंकी महक नागर ने मालवी पगड़ी और वेशभूषा में देर रात तक लोगों को इस विख्यात शिकंजी का रसास्वादन कराया।

चिंकी का साथ उनकी शरीके हयात ने बराबरी से निभाया। इस नाचीज के छोटे बरखुरदार हैप्पी (समीर) शर्मा ने भी उनका चाला पूरा किया। आपने ‘बन मस्का’ का स्टॉल लगाया था। इस आयटम से कई दूसरे लोगों की तरह अपन भी कल पहली बार परिचित हुए।

बोले तो ‘बन’ यानी थोड़ी बड़ी और मोटी गोल ब्रेड और मस्का बोले तो उसके अंदर मक्खन या क्रीम के बेस पर रंगीन, मीठी बूंदी जैसी गोलियों की माला तथा ब्रेड के ऊपर भी मक्खन या क्रीम की लेयर ! बता दूं कि बहुत लोग ‘बटरिंग’ करने को भी मस्का मारना या लगाना कहते हैं। खैर। बरखुरदार बोले कि ‘पापा, ये मस्का चाय के साथ उदरस्थ किया जाता है और मुंबई में इसका ‘फैशन’ चल निकला है। अपन ने देखा कि उनके स्टॉल पर बच्चों और युवाओं ने खूब मस्का उड़ाया।

इसके पहले मेला शुरू होने पर विधायक गौड़ ने पूरे मेले का चक्कर लगाया। खास बात यह कि हर कोई उनके साथ ‘सेल्फी’ लेना चाहता था और उन्होंने किसी को भी निराश न किया। हां, मेले में बच्चों के लिए कई झूलों का इंतजाम था और बच्चों की रेल भी। अलबत्ता ये पटरियों वाली रेल नहीं थी, बल्कि इसमें टायरों वाले पहिये थे और खास बात ये कि बच्चों से ज्यादा बड़ों ने इसमें सवारी की और आनंद लिया।

बेशक ये एक बहुत सुंदर और कौतुकपूर्ण आयोजन रहा। कुलजमा बात ये कि मेले की सैर ऐसी थी मानो कोई हमारी निगाहों को झूला दे रहा हो। एक शानदार और यादगार आयोजन के लिए पूरे लोधीपुरा नम्बर एक को खूब बधाई ! जिंदाबाद !