स्वतंत्र, समय, भोपाल
भारत में चीतों को दोबारा बसाने और पुनर्जीवित करने के लिए कूनो ( Kuno ) राष्ट्रीय उद्यान में शुरू किए गए चीता प्रोजेक्ट को दो साल पूरे हो गए हैं। दो साल पहले 17 सितंबर को ही कूनो में 20 चीते छोड़कर यह प्रोजेक्ट शुरू किया गया था। केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वय न होने से अब तक प्रोजेक्ट में रीलोकेशन पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। दो साल में आठ वयस्क चीतों की मौत चिंता बढ़ाने वाली हैं। सरकारों की गंभीरता का हाल यह है कि आज तक आधा सैकड़ा पद खाली पड़े हैं, जो अधिकारी नामीबिया से ट्रेनिंग लेकर आए थे, उन्हें भी सरकार ने तत्काल ही प्रोजेक्ट से अलग कर दिया। उनकी ट्रेनिंग ही बेमानी निकली।
Kuno प्रोजेक्ट पर सवाल उठाती रिपोर्ट
चीता प्रोजेक्ट पर यह चौंकाने वाले तथ्य मध्य प्रदेश महालेखाकार की एक रिपोर्ट के अंश हैं। जो पूरे कूनो ( Kuno ) प्रोजेक्ट पर सवाल उठाती है। करीब 70 साल का सूखा मिटाते हुए 17 सितंबर 2022 को भारत की धरती पर चीतों ने कदम रखे थे। विलुप्त होने के बाद चीता प्रोजेक्ट के जरिए देश में फिर से चीतों को बसाने की कवायद शुरू हुई। अफ्रीका से चीतों के आने के बाद भी 2020-2030 के लिए पार्क प्रबंधन योजना में चीता के रिलोकेट का कोई उल्लेख ही नहीं है। गलती सामने आने के बाद भी अधिकारी सरकारी ढर्रे को ही अपनाए हुए हैं।
वन्य जीव कार्यकर्ता हुए सक्रिय
वन्यजीव कार्यकर्ता अजय दुबे ने रिपोर्ट पर कई सवाल उठाए हैं। दुबे का कहना है कि केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के बीच समन्वय और समझ के बारे में चिंता रिपोर्ट में जताई गई है। जो चीता प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। यह ध्यान रखना जरूरी है कि, दुनिया के पहले ऐसे प्रयास के हिस्से के रूप में कुनो में अफ्रीकी चीते आने के बाद भी प्रमुख पद खाली हैं, जिसका सीधा असर जानवरों के प्रबंधन पर पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि चीता प्रोजेक्ट की गड़बडय़िों को लेकर हम सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।
ट्रेनिंग से लौटते ही ट्रांसफर
सरकार द्वारा कूनो वन्यजीव प्रभाग के पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) प्रकाश कुमार वर्मा को चीता मैनेजमेंट सिखाने के लिए दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया भेजा गया था। ट्रेनिंग से लौटने के कुछ दिनों बाद ही उनका ट्रांसफर दूसरी यूनिट में कर दिया गया। जिससे उनका प्रशिक्षण चीता के पुनरुद्धार के लिए अनुपयोगी हो गया और उस पर होने वाला खर्च भी किसी काम नहीं आया। रिपोर्ट में जोर दिया गया है कि भारत में चीता प्रोजेक्ट के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों को न्यूनतम पांच वर्ष के लिए चीता संरक्षण स्थलों में ही पदस्थ रखा जाना चाहिए।
ग्राउंड स्टॉफ को लेकर भी बेपरवाही
वन विभाग की ओर से लेखा परीक्षकों को बताया गया है कि चीता रिलोकेट से संबंधित कार्य केंद्र सरकार द्वारा तैयार चीता एक्शन प्लान 2021 के अनुसार किया जा रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वन विभाग के अधिकारियों के बयानों से स्पष्ट है कि भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार के विभागों के बीच समन्वय की कमी थी। ग्राउंड स्टाफ और वन प्रभाग साइट चयन या चीता पुनरुत्पादन अध्ययन में शामिल नहीं थे। मामला सरकार के ध्यान में लाया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 255 स्वीकृत पदों में से 43 खाली थे, जिसका वनों और जंगली जानवरों की सुरक्षा पर तत्काल प्रभाव पडऩा तय है। इस ओर सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया।