सन 1967 के बाद पहली बार हो रहा अद्भुत निर्णय और बेहतरीन एक्शन…भारत जैसे विराट देश के लिए जरूरी है वन नेशन-वन इलेक्शन…विश्व का सर्वश्रेष्ठ प्रजातन्त्र भले भारत में हो मगर लम्बे व खर्चीले चुनाव दुखदायी हैं…एक ही बार में पूरे देश में लोकसभा – विधानसभा चुनाव फलदायी है…मतदाता की बदलती मानसिकता अथवा विलक्षण प्रलोभन का असर इससे कम होगा…बड़ी संख्या में महीनों के प्रशिक्षण बाद लगने वाले चुनावकर्मी का संकट भी खतम होगा…
पुलिस का माकूल बन्दोबस्त एक बार में ही व्यवस्था सम्भाल लेगा…चुनावी झगड़ों और झंझावातों में उलझे अपराधियों को प्रशासन निकाल लेगा…राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को भी एक ही बार के प्रचार से दो-दो उम्मीदवारों का काम हो जाएगा…एक सभा में उपस्थित स्टार प्रचारक का दो-दो के लिए संयुक्त पैगाम हो जाएगा…चुनावी हिंसा में मौत का आंकड़ा भी गिरेगा…मतदाताओं की वैतरणी में तिनका भी तिरेगा… जिस देश में कई शिक्षक साल भर चुनाव करवाने के कार्य में लगे रहते हैं उनको मुक्ति मिलेगी…कम समय में कम तनाव की उम्दा युक्ति चलेगी…एक ही मतदाता सूची से पूरा चुनाव सम्पन्न होगा…
उन्हीं मतदाताओं के मत से नेता कुर्सी पर आसन्न होगा…मतदाता सूची का कार्य बहुत ही बड़ा और पेंचीदा होता है…अपना नाम जुड़वाने व हटाने वाला मतदाता जिससे बेखबर व अलहदा होता है…इस काम को भी त्वरित , सटीक व सशक्त अंजाम मिलेगा…पांच साल तक जुटे रहने वाले बीएलओ और अन्य एजेंसियों का चेहरा खिलेगा…राज्यों व केन्द्र के अवरुद्ध विकास कार्य महज आचार संहिता की भेंट बार बार नहीं चढ़ेंगे…हमेशा चुनावों की वजह से शिक्षण कार्य से वंचित विद्यार्थी अब सतत पढ़ेंगे…कोविंद कमेटी ने उचित सिफारिश करके लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की है…
लम्बे समय तक लगातार बैठकर इस निर्णय के प्रभाव की समीक्षा की है…आदर्शों का प्रतिमान स्थापित करने वाला यह फैसला मोदीजी के खाते में एक और फेहरिश्त जोड़ देगा…नेता चाहत रखकर ही बहुत कुछ कर सकता है मौन व अकर्मण्य नेतृत्व के मिथक को तोड़ देगा…देश के संसाधनों का मितव्ययिता से इस्तेमाल इस फैसले के बाद होगा…चुनावी प्रक्रिया को सरल व प्रभावी बनाना यही मकसद होगा…लोकतंत्र की मजबूती हेतु यह निर्णय प्रभावोत्पादक है…
यही नवीन राजनीतिक संस्कृति और नवनीति उत्पादक है…क्षेत्रीय पार्टियों को अस्तित्व का खतरा है इसलिये वे कर रही विरोध है…बड़े राजनीतिक दल चूंकि अलायन्स का युग है इसलिए दिखा रहे प्रतिशोध है…एक साथ लोकसभा व राज्य विधानसभा के चुनाव से राष्ट्रीय मसले हावी हो जाएंगे…पार्टियों के घोषणा पत्र अब अमल में आएंगे और हल होते उनके इरादे भावी हो जाएंगे…जब विधानसभा भंग होगी या लोकसभा में सरकार गिरकर मध्यावधि चुनाव की स्थिति आएगी…
तो बताओ ऐसे संकट को एक देश एक चुनाव की नीति कैसे सुलझाएगी…अनेक सकारात्मक व नकारात्मक पहलू हैं जो चिंतन के धरातल पर विद्यमान है…इसलिए अब इस नए निर्णय का संसद में होगा इंतिहान है…जो भी हो एक देश एक चुनाव का निर्णय देशहित में जरूरी है…मगर इस पर सर्वसम्मति न बन पाना देश की व विपक्ष की मजबूरी है।