शुक्रवार को एक बार फिर महाकाल ( Mahakal ) मंदिर परिसर में एक ओर हादसा हुआ। इस बार मंदिर परिसर के अंदर के एक हिस्से की दीवार गिर गई। 12 लोग घायल हो गए। इसके पहले मंदिर गर्भगृह में आरती के दौरान आग भभक गई थी जिसमें कई पुजारी सहित कई लोग घायल हो गए थे। इन घायलों में से एक की मौत हो गई थी। उसके पहले महाकाल लोक में सप्तऋषियों की प्रतिमा गिरकर खंडित हो गई थी। बीते एक डेढ़ साल से महाकाल मंदिर और महाकाल क्षेत्र में लगातार हादसे हो रहे हैं।
कालों के काल Mahakal, क्षमादानी आशुतोष हैं
लगातार हो रहे हादसे कहीं महाकाल का कोई इशारा तो नहीं है…? कालों के काल महाकाल, क्षमादानी आशुतोष हैं। महाकाल तो अपने भक्तों को सभी परेशानियों से मुक्ति कर उनके बुरे काल को भी बदल देते हैं। काल चक्र की गति को बदलने की ताकत रखते हैं अविनाशी आदिदेव, पिनाकी, पिंगल, महारुद्र, अघोरी, भोलेनाथ। 12 ज्योर्तिलिंगों में महाकाल का विशेष स्थान हैं, क्योंकि देवाधीदेव का सबसे बड़ा ज्योतिर्लिंग भी यहीं पर है। पुराने उज्जैन को महाकाल क्षेत्र कहा जाता था, जिसमें 84 महादेव तो विराजित हैं हीं, साथ ही ये भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र का कंकर भी शंकर है। यहां जो कुछ भी है वो हर तरह की सिद्धी की दात्री हरसिद्धी और अनंतदृष्टी, भूतेश्वर, गंगाधर, महामृत्यूंजय की इच्छा से ही प्रकट हुआ है।
इस क्षेत्र का महात्म्य ही है कि इसके किनारे बैठकर ही योगेश्वर कृष्ण ने भी अपनी शिक्षा ग्रहण की थी जिसके बाद वे पूर्ण पुरुष अवतार के अपने सांसारिक दायित्वों को पूरा कर पाए। इस पूरे क्षेत्र को धार्मिक पर्यटन स्थल बनाने और उसमें अपनी मर्जी से कथित तौर पर हो रहे विकास कामों से कहीं भोले बाबा अप्रसन्न तो नहीं है। धार्मिक मान्यताओं के जानकारों की मानें तो योगीराज, आशुतोष के महाकाल ज्योर्तिलिंग का ये मंदिर पूर्व को यांत्रिकिय ही नहीं मांत्रिक और तांत्रिक तीनों ही शक्तियों के सामांजस्य से बनाया गया है। महाकाल के ऊपर स्वयं ओंकारेश्वर बैठे हुए हैं।
64 योगिनियों की स्वामी त्रिपुर सुंदरी देवी ललिता जिस श्रीयंत्र के मध्य में स्थापित हैं उसकी स्थापना के साथ बने इस मंदिर में ही मदनकामेश्वर, आदिशिव अपने महाकाल स्वरूप में स्थापित हैं। क्या नए विकास कामों के दौरान महाकाल क्षेत्र में किसी यंत्र, तंत्र और मंत्र की स्थिति को बाधित किया गया है..? क्या महाकाल क्षेत्र में कोई ऐसा काम किया जा रहा है जो आनंदी शिव को अप्रसन्न करने का द्योतक तो नहीं बन रही है। क्योंकि इसके पहले लगातार घटनाओं का दौर इस तरह से नहीं हुआ। यदि इस तरह से लगातार घटनाएं हो रही हैं तो इसके पीछे का कारण भी देखना ही होगा।
कागजी और बजट के चाबूक से चलने वाली अफसरशाही को धार्मिक मान्यताओं को लेकर कोई रुचि नहीं रहती है। अफसर केवल अपने आका को खुश करना चाहते हैं उसके कारण किसी तरह की धार्मिक बनावट में बदलाव आए, या फिर भगवान भी नाराज हो तो सरकारी कारकूनों को कोई मतलब नहीं होता है। धर्म की बात करने वाले क्या यहां किसी अधर्म को भांप नहीं पा रहे हैं। जिसकी ओर लगातार महादेव इशारा कर रहे हैं। भगवान आदिशंकर के दरबार में लगातार हो रहे हादसों को लेकर अब चिंता गंभीरतम होती जा रही है। मेरी तो केवल ये प्रार्थना भर है कि हे आशुतोष आप सब पर कृपादृष्टी रखते हैं तो अब इतने नाराज क्यों हो रहे हैं। आप शांत हों..।
लेखक- नितेश पाल