महाराष्ट्र , झारखंड व दिल्ली के लिए सेमी फाइनल हो गया…बड़े राज्यों के चुनाव के पहले प्रमुख पार्टियों का ट्रायल हो गया…न भाजपा जीती न कांग्रेस हारी…झाड़ूधारी आप ने अपनी मौजूदगी से दिखा दी दमदारी…सारे एग्जिट पोल फेल हो गए…विरोधी चिल्लाते रहे कि ईवीएम के खेल हो गए…हालांकि नतीजों पर ऐसी टिप्पणी अब आम हो गई है…पराजय की खीज से ईवीएम बदनाम हो गई है…
हरियाणा में मिले जनाधार को करो स्वीकार…तुम भी कहीं बना रहे हो सरकार उनका प्रदर्शन अपरम्पार…हरियाणा में इतिहास बना तीसरी बार बनी भाजपा सरकार…जम्मू की जीत का कश्मीर से नहीं है कोई सरोकार…जिस कश्मीर की खातिर भाजपा नीत केन्द्र सरकार ने बहुत कुछ किया…वहीं की जनता ने मत की ताकत से पराजित कर दिया…लगता है ये मत राष्ट्रवाद के नहीं धर्मवाद के थे…हिन्दूवादी सरकार के विरुद्ध पाक करीबियों के अपवाद के थे…भाजपा जम्मू जीतकर भी कश्मीर हार गई…नेशनल कॉन्फ्रेंस – कांग्रेस की बरगलाती बोली जनता को बोतल में उतार गई…कश्मीर में 370 के हटने का नहीं भाजपा आई तो बुलडोजर चलने का डर था…
कश्मीरी पंडितों की जायदाद को हड़पने वालों के पास कइयों का अवैध घर था…सत्ता बदली तो फिर सोच बदल जाएगी…फिर पंडितों की आत्मा मचल जाएगी…घाटी में भाजपा आई तो पत्थर बरसना बन्द हो जाएंगे…पाक नीत बंदूकों के भाडेती सौदागर चंद हो जाएंगे…गलती से पंडितों का लामबंद रुख पुनः घाटी की तरफ हो गया तो नतीजा वही होगा…जिसको लेकर फिल्में तक बन गई उसका अंजाम सही सही होगा…
पूर्व उग्रवादियों , अलगाववादियों , आतंकियों में से एक को भी जीत नहीं मिली…परिणाम जानकर उनकी आत्मा हो गई भयंकर तिलमिली…तुमने दिया क्या था जो चुनाव में उतर गए…तुम्हारे कारनामों के फोतरे तो मूषकदल कुतर गए…अफजल गुरु के भाई ने भी भाग्य आजमाया…जनता ने उसको भी घर का रास्ता दिखाया…खौफ के बल पर हुकूमत हासिल करने वाले विचार अब नहीं चलते…दूसरों को जलाने वाले अक्सर खुद होलिका की तरह जलते…मौन रहने वाले भी मौका आने पर मचलते…तानाशाही के तमंचे सदा शरीफों को खलते…दिल्ली चुनाव के पहले आप ने उपस्थिति दर्ज करवा दी…
पार्टियों के आपसी पेंच में कुंवारी दुल्हनों की गोद भरवा दी…राज्य से राष्ट्रीय पार्टी बनने के ख्वाबों को बल मिल रहा है…सफेद टोपी से झाड़ू लगाने वालों का चेहरा खिल रहा है…कुल जमा ये चुनाव परिणाम भारत की दिशा तय करेंगे…हारने वालों की दुकान बंद और जीतने वालों की जय जय करेंगे…सत्ता की चाह में दल से दल – दल बनते कइयों को देखा है…नसीब उसी का चलता है जिनके हाथों में राजयोग की रेखा है…
कुर्सी पाकर मतदाता पर उपकार करने वाली राजनीति अब समय की मांग है…मतदाताओं को लुभाने वाली इनामी परम्परा बेशक रॉंग है…बदलाव के अलाव में हाथ तापो और ठंड भगाओ…कर्मपथ पर कर्तव्य को स्वार्थ की तुलना में ज्यादा जगाओ…राजनीति की दिशा बदलना जरूरी है…सरकार बनाते ही मतदाता का गायब होना प्रजातंत्र की मजबूरी है ।