पीनल पाटीदार
नगर में नवरात्र का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है, खासतौर पर श्री शक्ति पीठ मां बाघेश्वरी देवी मंदिर में। यहां प्रतिदिन प्रातःकाल महाआरती हो रही है और माता का अलग-अलग रूपों में श्रृंगार किया जा रहा है। इस प्राचीन मंदिर का इतिहास पांडव कालीन माना जाता है और शर्मा परिवार की 12 पीढ़ियों से यह मंदिर सेवा का केंद्र रहा है। नवरात्रि के खास मौके पर अश्विन नवरात्र की अष्टमी के दिन रात्रि में हवन आयोजित होगा, जिसमें शुद्ध घी और समिधा से आहुति दी जाएगी। इसके साथ ही नवमी के दिन कन्या और ब्राह्मण भोज का आयोजन होगा। मंदिर के पुजारी पंडित राम शर्मा ने बताया कि नवरात्र के दौरान विशेष रूप से संतान की कामना रखने वाले श्रद्धालु यहां आते हैं और माता की कृपा से उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं। दूर-दूर से, विशेषकर महाराष्ट्र और गुजरात से भी भक्तगण यहां माता का दर्शन और प्रसाद प्राप्त करने आते हैं। यह उत्सव श्रद्धा और भक्ति से ओतप्रोत है, जिसमें भक्तगण अनाज, फल, मिठाई और श्रीफल का दान करते हैं और माता का विशेष चोला श्रृंगार किया जाता है।
184 गांवों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित है मंदिर
बाघेश्वरी माता का मंदिर मालवा और निमाड़ क्षेत्रों के श्रद्धालुओं के बीच गहरी आस्था का केंद्र है। यह मंदिर मुख्य मार्ग की पहाड़ी पर स्थित है और विशेष रूप से 184 गांवों की कुलदेवी के रूप में प्रतिष्ठित है। माँ बाघेश्वरी को राजा मोरध्वज की कुलदेवी के रूप में भी माना जाता है। शारदेय और चैत्र नवरात्र के अवसरों पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जिनमें निमाड़ के अलावा महाराष्ट्र से भी लोग दर्शन और मन्नत मांगने आते हैं। धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से यह मंदिर इलाके के लिए विशेष महत्व रखता है और इन नवरात्रों के दौरान विशेष आयोजन होते हैं, जो दूर-दूर से भक्तों को आकर्षित करते हैं।
महाभारत कालीन माना जाता है मातारानी का मंदिर
बाघेश्वरी माता के मंदिर का ऐतिहासिक महत्व तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसके निर्माण के संबंध में कई किंवदंतियां और मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। यह मंदिर महाभारत कालीन माना जाता है और इसकी स्थापत्य कला पुरातात्विक दृष्टिकोण से चार से पाँच हजार वर्ष पुरानी बताई जाती है। हालांकि इसके निर्माण की सटीक तिथि का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है। मंदिर का संबंध ग्वालियर रियासत के सिंधिया परिवार से भी जोड़ा जाता है, जो इसे एक विशेष ऐतिहासिक और राजसी महत्व प्रदान करता है। इस क्षेत्र के लोगों में बाघेश्वरी माता को कुलदेवी के रूप में पूजने की परंपरा रही है, जो इसे सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है।
माता बाघेश्वरी तीन बार बदलती हैं नवरात्र में रूप
बाघेश्वरी माता के मंदिर का गर्भगृह और सभा मंडप विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। गर्भगृह को नौ खंडों में विभाजित किया गया है, जो नौ दुर्गाओं का प्रतीक माना जाता है। यह रचना मंदिर की प्राचीन वास्तुकला को दर्शाती है। 1997 में मंदिर के शिखर पर स्वर्ण कलश की स्थापना की गई, जिससे मंदिर की धार्मिक और सांस्कृतिक महत्ता और भी बढ़ गई। मंदिर के भीतर देवी बाघेश्वरी के अलग-अलग रूपों के दर्शन होते हैं – बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था – जो भक्तों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। भक्त अक्सर इस मंदिर से जुड़ी चमत्कारी घटनाओं का अनुभव करते हैं और इन अनुभवों को अपनी श्रद्धा का प्रमाण मानते हैं। मंदिर का यह धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व इसे एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल बनाता है, जहां लोग आस्था और मन्नतों के लिए आते हैं।
भक्तों की मन्नतें होती है पूरी
बाघेश्वरी माता मंदिर में भक्त अपनी मन्नतें लेकर आते हैं, विशेष रूप से संतान प्राप्ति के लिए। इस मंदिर को संतान सुख की कामना पूरी करने के लिए विशेष पहचान मिली है, जिस कारण यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। मालवा और निमाड़ क्षेत्र के अलावा, महाराष्ट्र और गुजरात से भी बड़ी संख्या में लोग बाघेश्वरी माता के दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर भक्तों के विश्वास और आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है और हर साल श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
दक्षिणमुखी बाघ पर सवार है माता की मूर्ति
बाघेश्वरी माता की मूर्ति दक्षिणमुखी बाघ पर सवार है, जो उनके शक्तिशाली और तेजस्वी रूप का प्रतीक है। दुर्गा सप्तशती के कवच पाठ में मां बाघेश्वरी का वर्णन मिलता है, जहां उन्हें त्वचा की रक्षक देवी के रूप में माना गया है। यह मंदिर और इसके आस-पास के क्षेत्र का नाम भी मां बाघेश्वरी के नाम पर रखा गया है। मंदिर के पास बहने वाली बाघनी नदी भी माता के नाम पर जानी जाती है। मंदिर का यह दक्षिणमुखी स्वरूप भक्तों में विशेष रूप से पूज्यनीय है और यह क्षेत्रीय आस्था का महत्वपूर्ण केंद्र है।