जैसे ही आता है हिंदुओं का त्यौहार, शुरू हो जाता है नगर निगम का अत्याचार

प्रखर वाणी

जैसे ही आता है हिंदुओं का त्यौहार…शुरू हो जाता है नगर निगम का अत्याचार…डेढ़ सौ करोड़ बिना काम के बांटने वाले खुद की खामियां देखते नहीं…जनता को तकलीफों का ठीकरा थमा देते हैं अपनों की गलतियों पर आंखे सेकते नहीं…दीपावली की सफाई के कचरे पर चालानी कार्यवाही जोर शोर से जारी है…पीली गाड़ी वालों को असलियत न देख पाने वाली मोतियाबिंद की बीमारी है…खुद के सफाईकर्मी बोरे भर भरकर खाली प्लॉट पर रख दें तो वो सरकारी काम है…उसी कूड़े के ढेर पर यदि जनता कचरा फेंक दे तो चालान का दण्ड कर देता बदनाम है…दोषी को पकड़ने के बजाय नेताओं को मत देने वाले मतदाताओं को धर रहे हैं…

जिसका प्लॉट खाली पड़े पड़े कूड़ाघर बन गया वो कभी नहीं सुधर रहे हैं….कई मौकों पर तो जनता का चुना हुआ प्रमुख प्रतिनिधि भी धरा का धरा रह जाता है…ब्यूरोकेसी की ताकत ऐसी है कि सीएसआई भी कमिश्नरी झाड़ने लग जाता है…हालांकि ये कमजोरी राजनेता की ही मानी जा सकती है…वो चाहें तो अधिकारियों की फौज उनकी आंख देखकर भागती है…पूर्ववर्ती सरकारों के नेताओं के उदाहरण आम हैं…उनके आगे अधिकारी – कर्मचारी के शब्द हो जाते जाम हैं…न तो कोई नीति है न रीति है…हर किसी की गाँधीछाप से ही प्रीति है…हंटर दिखाओ तो सलाम करते हैं…ये वो बंदर हैं जो सर्कस में काम करते हैं…पूरा शहर ही स्वच्छता की पोल खोल रहा है…क्योंकि अधिकारी महज चालानी कार्यवाही के बोल बोल रहा है…कमजोरी तो नेतृत्व की ही है कि हम स्वच्छता में पिछड़ते जा रहे हैं…सिर्फ चालान के दण्ड से आदत के अपराधबोध पर उखड़ते जा रहे हैं…

किसी समस्या का माकूल हल महज दण्ड विधान नहीं होता…कौन कहता है कि दण्डित होकर फिर किसी में अपराध का भान नहीं होता…पुलिस जब रसीद के आधार पर यातायात सुधारने जाती है तो आंकड़ों में तो खूब पेनल्टी जूट जाती है…मगर आदतों में सुधार की प्रक्रिया तो आस्थाओं के विकसित करने से ही आती है…कचरा गाड़ी खटारा हो रही वो किसी को नहीं दिखाई देता…हेल्पर बिन कचरा गाड़ी कई बार आती है ये किसी को नहीं दिखाई देता…हेल्पर तक से रुपया खींचने वाले कौन हैं ?…जानते सब हैं मगर अपने हिस्से की आस में सब मौन हैं…एनजीओ की जिम्मेदारी क्या है ये सब नेतृत्व को पता है…फिर भी एनजीओ का प्रतिनिधि सांठगांठ से लापता है…कचरा गाड़ी के साथ चलने वाले एनजीओ की सेविकाएं मुँह पर कपड़ा बांधकर दो सौ फीट दूर मोबाइल पर व्यस्त है…

उनको नौकरी पर रखने वाला बिल पास होते ही हो जाता मस्त है…सबके बन जाते हैं यहां अपने अपने आका…कोई किसी का भतीजा तो कोई किसी का काका…किसी ने उन फाइलों की तरफ कभी नहीं झांका…जिनकी हर लाइन में फूटता रहता था धांधलियों का फटाका…नेता कमजोर तब होता है जब वो इर्द गिर्द शिखण्डियों की फौज भर लेता है…सलाहकार मजबूत और दमदार हो तो महज जुबान से ही समस्या हर लेता है…नेता का काम कार्यकर्ताओं की छोटी छोटी समस्याओं का हल है…जानते सभी है कि कार्यकर्ता की ताकत न हो तो गली गली खिलता नहीं कमल है…नीचे से ऊपर तक सोच और विचार के कीचड़ में भरा हुआ दलदल है…कार्यकर्ता की उपेक्षा से कभी किसी को मिलता नहीं फल है…नीति और न्याय की बात करने वाले पदारूढ़ प्रतिनिधि के नीचे भी रेले हैं…सभी जानते हैं कि पीच अच्छी मिल जाने पर ग्यारहवें खिलाड़ी भी खेले हैं…समस्या की जड़ में जाकर समाधान पर मंथन जरूरी है…

साफ सफाई के दौर में कचरे का आधिक्य जनता की मजबूरी है…गाड़ी वाला अधिक कचरा नहीं ले जाना चाहता…शुल्क देकर भी घरों का कचरा पड़ा पड़ा इठलाता…कचरा उठाना जिनका काम है वो नाक भौं सिकोड़ते हैं…उनके पीछे आने वाले इंस्पेक्टर जनता को नहीं छोड़ते हैं…पूरा शहर ही अब कचरा घर बन गया है…अधिकारियों का सीना अपनी गलती को ढंकने के लिए तन गया है।