सारा का सारा क्रोध ईमानदार महापौर पर मढ़ रहे हैं, विरोधी बेवजह नई नई कहानी गढ़ रहे हैं…

प्रखर वाणी

बढ़ रहा है शहरों में डेंगू , मलेरिया और चिकनगुनिया…घबरा गई है कभी कोरोना को भोगने वाली दुनिया…जोड़ों के दर्द , सूजन व तेज बुखार का प्रकोप जारी है…डॉक्टर्स के द्वार पर भीड़ संकेत देती है कि फैल गई बीमारी है…हर तीसरा नागरिक परेशान होकर दूर है अपने फर्ज से…हाहाकार मच गया है इस बार के बड़े ही विचित्र मर्ज से…लोग फैलती गंदगी से मच्छरों को दोष दे रहे हैं…मगर स्वयं कोई नहीं इसकी जवाबदेही ले रहे हैं…इस बार की मौजूदा बीमारी का कारण समझ से दूर है…चिकित्साविद भी शोध से पहले इलाज को मजबूर है…सारा का सारा क्रोध महापौर पर मढ़ रहे हैं…विरोधी बेवजह नई नई कहानी गढ़ रहे हैं…नगर के प्रथम नागरिक की स्वच्छ छवि पर दाग लगाने की साजिश उचित नहीं…वर्तमान समस्या का कारण महज उनकी टीम ही समुचित नहीं…विकास की बागडौर थामकर एक वकील चला है नई भूमिका में…उसके जैसा शरीफ , सज्जन व ईमानदार मिल नहीं सकता नगर पालिका में…प्राकृतिक आपदा या सामयिक विपदा पर महापौर दोषी क्यों माना जा रहा है…

संकट की घड़ी में उसके पीछे हाथ धोकर पड़ क्यों जमाना जा रहा है…इसकी तह में जाना समय की मांग है…हर समस्या के समाधान हेतु जुटा वो शख्स ही क्यों रांग है…उनका दोष महज इतना है कि वो राजनीति की बिसात पर शतरंज नहीं खेलते…वरिष्ठ नेता कभी भी कनिष्ठ की ऊंचाई को मन से नहीं झेलते…शहर में जिम्मेदार तो कलेक्टर , कमिश्नर और तमाम ब्यूरोकेट्स भी हैं…नीति पर अमल और क्रियान्वयन का निष्पादन करते वही है…राष्ट्रपति से पुरस्कार हासिल करने यदि जा सकते हैं…तो नेता के साथ जमीन पर भी वो समस्या के हल हेतु आ सकते हैं…शहर का दायरा बढ़ रहा है…मौसम का मिज़ाज़ और सूर्य का पारा उतर – चढ़ रहा है…बीमारियों की अनेक वजह हवा में फैलते कीटाणु और रोगाणु का इन्फेक्शन भी होते हैं…नागरिकों की लापरवाही और गलत आदतों का सिलेक्शन भी होते हैं…इतने विराट शहर के चप्पे चप्पे पर अपने प्रतिनिधि भेजकर समाधान कर रहे हैं…विरोधी तो प्रतिदिन उनको मिल रही लोकप्रियता के ग्राफ से डर रहे हैं…ये क्यों भूल जाते हैं हम इतनी जल्दी की जब बारिश में जल जमाव हुआ तो छाता लेकर वे निकल पड़े थे…

डूबती बस्तियों को जीवन दान देने व माकूल समाधान देने वो भी पानी में खड़े थे…अब जब कोई महामारी फैलती है…तो पीढियां उसकी पीड़ा झेलती है…चीन से निकले एक वायरस ने दुनियां के निर्दोष देशों में भी तबाही मचाई थी…कई विरोधियों ने शब्दों की लीपापोती कर तब भी सत्ता के विरुद्ध अपनी बंदरिया नचाई थी…ये तो जगत का उसूल है काम के पक्ष में और विपक्ष में भी लोग होते हैं…जिनकी लिप्साएं सतत पूरी नहीं हो पाती वो खामी निकालने घड़ियाली आंसू रोते हैं…विपरीत काल में नागरिकों को धैर्य रखना जरूरी है…विपदा अनजान संकट से उपजी है तो नगर सरकार की अनेक मजबूरी है…सत्ता भी समाधान की पहल कर रही है…दुनिया तो बड़े बड़े धमाकों से दहल रही है…हम तो फिर भी स्वस्थ और मस्त हैं अपने शहर में…सांस तक नहीं ले पाते हैं दिल्ली वाले प्रदूषण के कहर में…सतत विकास व जनता के विश्वास पर खरा उतरने के अभियान जारी है…शीघ्र मिट जाएगी जो अभी फैल रही बीमारी है…आओ संकट व विपदा की घड़ी में हम भी साथ दें…जो साथी परेशान हैं उनको हौसलों और सम्बल के लिए अपना हाथ दें….