सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि मनमाने तरीके से घरों को तोड़ना अवैध है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अपराध की सजा किसी का घर तोड़ना नहीं हो सकती है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि केवल आरोपी होने के आधार पर किसी का घर नहीं गिराया जा सकता है। न्यायिक कार्य केवल अदालतों का है, और कार्यपालिका को यह अधिकार नहीं है कि वह न्यायिक निर्णयों का स्थान ले। कोर्ट ने राज्यों से कानून का पालन करने की आवश्यकता भी जताई। इस मामले में जस्टिस गवई ने कवि प्रदीप की कविता ‘घर एक सपना है जो कभी ना टूटे’ का उल्लेख करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन पर और भी कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि अधिकारियों को कानून अपने हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि बुलडोजर कार्रवाई को आर्टिकल 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन मानते हुए ऐसी कार्रवाई के खिलाफ सख्त टिप्पणी की।
कोर्ट ने यह भी कहा कि केवल तभी ऐसी कार्रवाई की जा सकती है जब अन्य कोई विकल्प न हो। दोषियों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर सरकार कानून को अपने हाथ में लेने की दोषी होगी। इसके अलावा, जमीयत उलेमा ए हिंद और अन्य कई संगठनों ने बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ याचिकाएं दाखिल की थीं, जिन्हें कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ध्यान में रखा।
सुप्रीम कोर्ट ने 17 सितंबर को बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगा दी थी, और अब कोर्ट के ताजे फैसले के बाद इस मुद्दे पर स्थिति स्पष्ट हो सकेगी। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को बुलडोजर कार्रवाई से जुड़े एक मामले में फटकार लगाई थी और आदेश दिया था कि सरकार याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा अंतरिम उपाय के रूप में दे। इस फैसले से यह संकेत मिलता है कि सरकार को अपनी कार्रवाई में अधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है, और बुलडोजर कार्रवाई को लेकर कानून के दायरे में रहकर ही कदम उठाए जाने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर न्याय पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि लोगों की आवाज को उनकी संपत्ति को नष्ट करने की धमकी देकर दबाया नहीं जा सकता। कोर्ट ने यह भी कहा कि कानून के शासन में ‘बुलडोजर न्याय’ पूरी तरह से अस्वीकार्य है और यह किसी भी सभ्य न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी संरचनाओं को हटाने से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होगा। इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह संदेश दिया कि किसी को भी केवल आरोपी होने के कारण उनकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता और इसके लिए उचित न्यायिक प्रक्रिया जरूरी है।