प्रखर वाणी
वे बेख़ौफ घुमते रहे रातभर सड़कों पर…किसी गश्ती दल की नजरें नहीं पड़ी दो लुटेरे लड़कों पर…लाखों का पहना हुआ सोना उतरवाकर ले गए…शबे मालवा की शांत रात को अशांत करने का दंश दे गए…हम किन अपराधियों की ख़ौफ़नाक गिरफ्त में हैं…प्रतिपल हो रहे लूट खसोट और जालसाजी के चक्रव्यूह आसक्त में है…शहर का मिज़ाज़ जहर घोलने वाला है…घटनाओं का चित्रण खून खोलने वाला है…अपराधियों के हौसले बुलंदी पर हैं…एक से एक धुरंदर विराजमान आसंदी पर हैं…समाधान कुछ नहीं बस व्यवधान ही व्यवधान है…आम नागरिक की फ़ज़ीहत और आफत में जान है…पुलिस अब केवल सीसीटीवी के भरोसे है…छानबीन उसी की होती है जो कैमरों ने परोसे हैं…
पहले जो तफ्तीश और घटनाओं के खुलासे पेचीदगी के बावजूद होते थे…जिनकी कल्पना नहीं थी कि ये उजागर होगा तब मुजरिम भी उन पर रोते थे…आजकल वो तरीके भी डॉक्टरों की नब्ज पकड़ने वाली बीती बातों की तरह गायब है…आधुनिक चिकित्सा विशेषज्ञों की तरह सिर्फ पैथलेब की जांच के भरोसे हो रहे नायब हैं…वो तो भला हो पैनी नजर रखती तीसरी आंख की सक्रियता का…बीमारियों का पता लगाने वाली लैब की जांच के प्रचलन और लोकप्रियता का…नहीं तो पुलिस भी चिकित्सकों की तरह असहाय रहती…हर थानों के बाहर दिन-दुखियों की हाय हाय रहती…चोर लुटेरे ज्यादा परिपक्व हैं उन पर अंकुश रखने वालों से…कुछ नहीं होने वाला है घर पर तिजोरियों पर लगे तालों से…जब घर के बाहर सड़क पर भी हम नहीं सुरक्षित हैं…रैकी करने वाले नए नए डाकुओं की निगाह में लक्षित हैं…
तो कौन बचा पायेगा अब लाचार होते आम नागरिक…कौन रोक पायेगा पिछले दरवाले से खरीदे गए सामरिक…निहत्थे नागरिक इन शिकंजों का शिकार हो रहे हैं…जो मत पाकर भी अभिमत नहीं दे सकते वे सरकार हो रहे हैं…गाड़ियों की जांच तो रोज रोज हो रही है…चोरों की जांच पर हर जगह खोज हो रही है…बमुश्किल मेहनत से प्रतिपल पसीना बहाकर कमाया धन लूट रहे हैं…कानून के शिकंजे ऐसे हैं कि डाकू तक जमानत पर छूट रहे हैं…बदलते दौर में लगता है खुद की हिफाजत का नया प्लान चाहिए…जो रोक सके अपराधों को कुर्सी पर बस अब वो ही इंसान चाहिए…..