इंदौर के कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में अब बाघ को अनुवांशिक बीमारियों से बचाने के लिए नए प्रयोग करने की शुरूआत हो गई है। इसकों चिडियाघर प्रबंधन ने एक पत्र भी सेंट्रल जू ऑफ अथारिटी को लिख कर इसकी जानकारी दी है।
बदलेगा बाघों का कुनबा
कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय में मौजूद बाघ के जोड़े को एनिमल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत गोरेगांव चिड़ियाघर भेजा जाएगा। इनके बदले में वहां से बाघ का जोड़ा इंदौर लाया जाएगा। दरअसल,इंदौर शहर चिड़ियाघर प्रबंधन बाघ की वंशावली में बदलाव करने जा रहा है। इसके लिए गोरेगांव चिड़ियाघर (महाराष्ट्र) से विशेष एनिमल एक्सचेंज प्रोग्राम के तहत बाघ के जोड़े के बदले बाघ का ही एक जोड़ा लिया जाएगा।
अनुवांशिक बीमारियों से होगा बचाव
चिड़ियाघर प्रबंधन का कहना है कि अलग-अलग ब्लड लाइन के बाघों की ब्रीडिंग से जन्म लेने वाले शावकों में प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने के साथ ही अनुवांशिक बीमारियों से भी निजात मिलेगी। इससे बाघ अपनी 15-16 वर्ष की औसत आयु को अधिक बेहतर तरीके से व्यतीत कर पाएंगे।
बाघ के बदलें मांगे बाघ
हर बार चिड़ियाघर से उस प्रजाति के वन्य प्राणियों को अन्य स्थानों पर भेजा जाता है, जिनकी संख्या अधिक होती है। बदले में दूसरी प्रजाति के जानवर लाए जाते हैं, जिनकी संख्या यहां कम या नहीं होती है। इस बार बाघ के बदले बाघ लाने के पीछे वजह यह है कि एक ही वंशावली में ब्रीडिंग पर अंकुश लगाना है। इस कड़ी में 2025 में जू प्रबंधन पांच-छह प्रजातियों के अन्य वन्य प्राणियों को लाने का प्रयास करेगा।
चीतल- सांभर के बदल चुके है वंश
शेरों और बाघों की अच्छी देखरेख से चिड़ियाघरों में इनका कुनबा बढ़ा है। अब इनकी वंशावली में बदलाव की प्रक्रिया शुरू की गई है। वहीं कमला नेहरू प्राणी संग्रहालय के प्रभारी डॉ उत्तम यादव ने बताया कि रक्त रेखा (ब्लड लाइन) में बदलाव की कड़ी में पहले हम चीतल, सांभर लाए थे। साथ ही चंडीगढ़ से भी एक शेर लाया गया था। जिनका ब्लड़ में बदलाव किया जा चुका है।
ब्लड लाइन में बदलाव से सुधरती है सेहत
महू वेटरनरी हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना है कि वन्य प्राणियों की अच्छी सेहत के लिए रक्त रेखा में बदलाव आवश्यक है। इससे जन्म लेने वाले वन्य प्राणियों की शारीरिक क्षमता में वृद्धि होती है। ऐसे में इनमें जैनेटिक बीमारियों का खतरा भी काफी हद तक कम होता है।
इटावा के जू में हुआ था पहला प्रयोग
साल 2012 में स्थापित इटावा लॉयन सफारी ने शेरों को केनाइन डिस्टेम्पर जैसी घातक बीमारी से बचाने के लिए ब्लड लाइन बदलने के पहला कदम उठाया था। इस कदम से केनाइन डिस्टेम्पर जैसी घातक बीमारी भी शामिल थी, जिसने इटावा से लेकर गुजरात के गिर नैशनल पार्क में कई शेरों को मौत के घाट उतार दिया था। लॉयन सफारी और आईवीआआई, बरेली के पशु चिकित्सा विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों और कानपुर जू के तत्कालीन डॉक्टर आरके सिंह ने मिलकर केनाइन डिस्टेम्पर की वैक्सीन का नया प्रोटोकॉल तैयार किया। इसने देश में काफी शेरों को इस घातक वायरस से सुरक्षित कर दिया। एशियाई शेरों या बिग कैट की सबसे बड़ी समस्या परिवार में ही ब्रीडिंग की है। इसके लिए अधिकतम दूरी वाले ब्लडलाइन के शेर-शेरनियों की मेटिंग कराई जाती है। यह ब्लड लाइन बदलने का इंदौर में क्या परिणाम आएगा यह जल्द ही तय होगा वही चिड़ियाघऱ प्रबंधन बस सेंट्रल जू ऑफ अथारिटी से अनुमति मिलने का ही इंतजार कर रहा है।