होलाष्टक(holashtak) की शुरुआत आज से हो गई है, अब आने वाले आठ दिनों में नही कर पायेगे कोई शुभ कार्य.
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को शास्त्रों में होलाष्टक कहा गया है। होलाष्टक(holashtak) शब्द दो शब्दों के संगम से मिल कर बनता है. होली और अष्टक अर्थार्त होली के आठ दिन. होलाष्टक की शुरुआत अष्टमी तिथि से होती है इसीलिए उसे होलाष्टक कहा जाता है. अगर बात की जाये तो होलाष्टक होली के आने की सुचना देता है इसी के साथ होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती है,
होलाष्टक(holashtak) के इन आठ दिनों में सभी गृह का स्ववाभ काफी प्रबल होता है. इसलिए इन 8 दिनों में कोई भी शुभ काम नही करना चाहिए. पुरातन समय से ही होलाष्टक की शुरुवात होते ही ,जिस जगह पर होलिका दहन किया जाता है वहा पर गाय के गोबर और गंगाजल से लिपाई कर उस जगह को शुद्ध किया जाता है, फिर वहां होलिका का डंडा ला कर रख दिया जाता है, जिनेह होलिका माता और प्रहलाद भी कहा जाता है.होलाष्टक(holashtak) की शुरुआत आज से यानि 27 फ़रवरी से हो चुकी है.
आईये जानते है होलाष्टक(holashtak) से जुडी पौराणिक कथा –
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार जब हिरण्यकश्य प्रहलाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने से रोक नही पा रहा था तो हिरण्यकश्य ने भक्त प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को बंधी बना लिया था और भक्त प्रहलाद की मृत्यु हो जाये उस तरह से प्रताड़ित करने लगे पर भक्त प्रहलाद के ऊपर भगवन विष्णु का हाथ था, भगवन विष्णु प्रहलाद को हर मुश्किलों से बचाते थे. थक हार के जब सात दिन बीत गए. हिरण्यकश्य की बहन होलिका से अपने भाई की परेशानी में देखी नहीं गई और उसने अपने भाई हिरण्यकश्य के सामने भक्त प्रहलाद के साथ प्रजवलित अग्नि में विराज ने की बात कही क्योंकि होलिका को ब्रम्हा जी ने वरदान दिया था की आग्नि से होलिका को कोई नुकसान नही होगा. हिरण्यकश्य ने होलिका का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया.आठवे दिन होलिका जलती अग्नि में प्रहलाद के साथ विराज गई. उस अग्नि में भक्त प्रहलाद को तो कुछ नही हुआ पर होलिका जल कर भस्म हो गुई.तब से उन आठ दिनों में भक्त की भक्ति पर जो भी आघात हुए उसकी वजह से सभी गृह आठ दिन तक अपने प्रबल रूप में रहे.और यही वजह है की इन आठ दिनों को होलाष्टक(holashtak) कहा जाता है. और इन्हे शुभ नही माना जाता है
क्यों नही करना चाहिए होलाष्टक में कोई शुभ कार्य –
होलाष्टक(holashtak) के इन आठ दिनों में ग्रहों की स्तिथि बदलती रहती है इसीलिए होलाष्टक(holashtak) के दिनों में कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नही करना चाहिए. हिन्दू मान्यताओ के अनुसार अगर कोई होलाष्टक के इन आठ दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य करता है तो उसे कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ता है यही नही उस व्यक्ति पर कई तरह की बीमारीयो का और अकाल मृत्यु का खतरा बड जाता है, इसलिए होलाष्टक (holashtak) को शुभ नही माना जाता है.
इन आठ दिनों में ना करे ये कम-
इन आठ दिनों में कोई भी शुभ कार्य नही करना चाहिए जैसे शादी,विवाह, सगाई, उद्घाटन, भूमि पूजन, गृह प्रवेश,या कोई भी नया बिजनेस इन दिनों खोलना अशुभ माना गया है. शास्त्रों के अनुसार माना गया है की होलाष्टक(holashtak) के दौरान 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्य करना भी वर्जित माना गया है. इन दिनों में किसी भी प्रकार का हवन , यज्ञ कर्म नहीं किया जाता है. इसके अलावा नई बहु को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है.
इन आठ दिनों में करे यह कार्य
होलाष्टक(holashtak) के दौरान आप दान-दक्षिणा के साथ ही में भगवानो की पूजा पाठ भी कर सकते है