सब्जियों में आग, मूली करती राग, महंगाई का गब्बर आया, भाग बसंती भाग…

प्रखर वाणी

बेतहाशा मूल्यवृद्धि…बौनी हो गई समृद्धि…हर तरफ हाहाकार…गरीबों की ही सरकार…मध्यम वर्ग बना लाचार…कमाओ तो कर की भरमार…कर का व्यय उन पर जो बन गए होशियार…झोपड़पट्टी में रहने वालों की महिमा अपरम्पार…कुछ के पास बेशुमार…कुछ कर रहे इंतज़ार…सब्जियों में आग…मूली करती राग…महंगाई का गब्बर आया…भाग बसंती भाग…मंडी जाओ तो पता चलता है…खाली जेब से परिवार पलता है…रोज कमाओ रोज चुकाओ…आसमान छूते भाव पाओ…जिन सब्जियों को कोई पूछता नहीं था अब वे भी शेर हैं…दाम सुनकर उनके अच्छे अच्छे ढेर हैं…बात इतनी सी है कि कहीं तो सिलसिला रुके…रोज गगनचुम्बी भाव झुके…मगर सोचते हैं कि आज नहीं तो कल…महंगाई का मिलेगा हल…महंगाई डायन ऐसी है कि खाये जा रही है…

जिनकी हैसियत नहीं उनको सताये जा रही है…लोग सोचते हैं कि क्या हुआ जो दाम बढ़ गए तो…कोई फर्क नहीं पड़ेगा थोड़े ऊंचे चढ़ गए तो…कभी ख्याल करो उनका जिनको सारे बिल चुकाना है…घर की हर जरूरत पूरा करने को कमाना है…हमारे यहां तो त्योहार भी मनाना है…नजदीकी के यहां विवाह में भी जाना है…वहां भी नेकचार खर्चिला है…जो कमाया था उसमें से हाथ में कुछ नहीं मिला है…कभी सोचते हैं कि कहीं ये सब्जी वाले ही तो महंगा नहीं दे रहे…थोक में सस्ता लाकर हमसे रुपये ले रहे…फिर जब देखते हैं कि सारे ही कुएं में भांग पड़ी है…पूरी महंगाई में जुड़ी किसानों से लगाकर उपभोक्ता तक की कड़ी है…लागत बढ़ रही है…चैनल बढ़ रही है…

हर तरफ के खर्चे पुरते नहीं…जब दाल ही कम हो तो बाटी चुरते नहीं…सरकार का ध्यान विकास पर तो है मगर दाम पर नहीं…हजारों हाथ खाली है बेरोजगार जो काम पर नहीं…एक घर में कमाने वाला एक खाने वाले अनेक…महंगाई की मार पड़ते ही मुखिया रहता घुटने टेक…आजकल हर चीज का रुपया लगता है…ऊपर से सायबर लुटेरा आमजन को ठगता है…जो छाछ कभी मुफ्त में बांटी जाती थी वो अब बिकती है…रुपये देकर खरीदने वालों की भी लंबी लंबी लाइन दिखती है…मोबाइल के खर्चे , वाहन के खर्चे , बीमे के खर्चे…अस्पताल के खर्चे…थोड़े दिन बिल नहीं चुकाओ तो बाजार में होते चर्चे ही चर्चे…फीस जमा करो जब शिक्षा केन्द्र में शुरू होते पर्चे…कहाँ कहाँ के चुकाएगा…

वेतनभोगी कितना कमाएगा…फिर कमाने की उम्र में संघर्ष शुरू…उम्र ढलते ही तुम काम के नहीं गुरु…वृद्धावस्था निढाल भी और दवा दारू की भरमार भी…वो क्या करेगा जो लंबे समय तक रहता बीमार भी…ज़िंदगी भर की कमाई एक बार अस्पताल जाओ तो निकल जाती है…इलाज देकर भी अपना बचा नहीं पाओ तो वो खल जाती है…इस वक्त तो सिर्फ सब्जियां ही हमसे कोसों दूर है…पापी पेट की खातिर खरीदने को मजबूर है…भविष्य में सब्जी नहीं सब्जबाग दिखाए जाएंगे…महंगाई ऐसे ही बड़ी तो उनको सुंगेंगे या खाएंगे ।