बातरस
राजेश राठौर
इंदौर …की लाइफ लाइन माने जाने वाली एबी रोड की सडक़, जिसे अब बीआरटीएस के रूप में जाना जाता है, उसको लेकर इतना हल्ला मच रहा है इसलिए इस पर बात करना जरूरी हो गया है। बातों का क्या, बातें तो बहुत होती हैं। बात बनाने वाले भी बहुत होते हैं लेकिन असली बात क्या है, यह जानना भी जरूरी है। असली बात बताने के पहले यह बात भी सही है कि बीआरटीएस के कारण आधे हिस्से में ट्रैफिक जाम होने लगा था।
BRTS बनाने का आवश्यकता क्या पड़ी
अब शुरुआत करते हैं हम इस बात से कि बीआरटीएस ( BRTS ) बना क्यों। दरअसल, उस समय जवाहर लाल नेहरू योजना मिशन का पैसा देश के बड़े शहरों का ट्रैफिक सुधारने के लिए मिलने वाला था। तब कलेक्टर विवेक अग्रवाल हुआ करते थे, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान थे। केंद्र का पैसा कैसे ज्यादा मिले, इसको लेकर उठा-पटक शुरू हुई, 1300 करोड़ की योजना बनी। तब ये कहा गया कि इंदौर के प्राइवेट व्हीकल को कम करने के लिए और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देने के लिए इंदौर में सिटी बस चलाई जाए। जिन सिटी बसों में आज हजारों यात्री यात्रा कर रहे हैं, उन बसों के लिए खास लेन बनाने की बात हुई। विदेशों के कर्ज पर इसे बनाने की मंजूरी मिली। एबी रोड का चयन इसलिए हुआ था क्योंकि यह सडक़ पहले छोटी थी। ट्रैफिक का दवाब बढ़ ही रहा था, उस समय सडक़ के दोनोंं तरफ 20-२५ फीट सडक़ चौड़ी हुई। लगभग ५० फीट चौड़ी सडक़ और मिल गई। केंद्र सरकार के प्रोजेक्ट से ही बनाना था, इसलिए इसे बीआरटीएस का नाम दिया गया। उसी योजना के तहत ही बसों के लिए भी केंद्र सरकार से पैसा मिला। एमआर-१० को बनाया गया। बाकी सडक़ें भी चौड़ी की गईं। यदि बीआरटीएस बनाने के बाद इंदौर में तेजी से कारें बिकना शुरू नहीं होती तो आज ये हालात नहीं होते। बसों का उपयोग और ज्यादा लोग करते तो पब्लिक ट्रांसपोर्ट को और बढ़ावा मिलता। बस की दो लेन बनाने से सडक़ के दोनों तरफ चौड़ाई कम हो गई। 10 साल में वाहन बढ़ते गए। एबी रोड पर तमाम अवैध इमारतें बन गईं जिनमें पार्किंग की जगह भी बेच खाई। उन इमारतों पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। बड़े-बड़े शोरूम तो खुले लेकिन उनमें पार्किंग की व्यवस्था नहीं थी, इस कारण फुटपाथ और सडक़ों पर वाहन खड़े रहने लगे। निरंजनपुर चौराहे से विजय नगर तक तो ट्रैफिक जाम नहीं होता है, लेकिन विजय नगर चौराहे से जीपीओ चौराहे तक ज्यादा दिक्कत है। वास्तव में देखें तो गीता भवन चौराहे तक दिक्कत ज्यादा है। इस रास्ते की बात करें तो सी-21 माल के बाहर, शर्मा मिठाई भंडार के बाहर, उसके आगे कुछ शोरूम के बाहर, आधी सडक़ पर वाहन पार्क होते हैं। एलआईजी गुरूद्वारा और सीएचएल अस्पताल के बाहर सडक़ों पर वाहन खड़े रहते हैं। उसके आगे चलें तो इंडस्ट्री हाउस तक यही हालत है। पलासिया चौराहे से आगे बढ़ें तो पुराने विशेष अस्पताल और उसके आसपास की भी यही हालत है। सुयश अस्पताल तक ऐसी ही स्थिति है। फिर नवलखा चौराहे पर गुमठियों के कारण और बड़े कुछ शोरूम के कारण दिक्कतें हैं। भंवरकुंआ चौराहे के यहां भी यही दिक्कत है। इसके आगे राजीव गांधी प्रतिमा तक कोई दिक्कत नहीं है।
बीआरटीएस को हटाना चाहिए या नहीं, इसका राजनीतिक फैसला तो आ गया है लेकिन कोर्ट का फैसला आना बाकी है। यदि जिला प्रशासन, नगर निगम और ट्रैफिक पुलिस जहां जाम लगता है, वहां की सडक़ और फुटपाथ से पार्किंग हटा दे तो बड़ी समस्या हल हो जाती, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। वैसे, अभी भी ऐसा किया जा सकता है। लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग करें, इसके लिए जन जागरण चालाया जा सकता है। बीआरटीएस की लेन को तोडऩे की बजाय उसमें दूसरे वाहनों का भी प्रवेश शुरू किया जा सकता है। ट्रैफिक जाम का जहां तक सवाल है तो वो शहर का ऐसा कोई हिस्सा अभी नहीं बचा, जहां जाम की परेशानी नहीं होती हो। ट्रैफिक जाम तो इंदौर में बायपास पर भी होता है।
सवाल इस बात का उठता है कि फुटपाथ और सडक़ पर पार्किंग आखिर कब बंद होगी। बड़े-बड़ शोरूम वाले पार्किंग का इंतजाम कब करेंगे। सरकार कितनी ही चौड़ी सडक़ बना दे, यदि सडक़ पर वाहन पार्क होंगे तो जिंदगी में कभी ट्रैफिक जाम से मुक्ति नहीं मिलेगी। जिन दुकानों, शोरूम, अस्पताल और मल्टीस्टोरियों के कारण ट्रैफिक जाम होता है वहां फुटपाथ और सडक़ पर रखे वाहन ट्रैफिक पुलिस जब्त करना शुरू नहीं करेगी, तब तक जाम लगता रहेगा।
पूरे शहर में लोग तेजी से कार खरीद रहे हैं और कार रखने की जगह कहीं नहीं है। उदाहरण के तौर पर इंदौर की हालत इतनी बदतर होती जा रही है कि यदि 100 कार लोग खरीद रहे हैं तो मात्र 10 कार रखने के लिए पार्किंग उपलब्ध है। जब तक जितनी कारें बिक रही हैं, उस हिसाब से पार्किंग नहीं बनेगी, तब तक ये समस्या बनी रहेगी। यदि बीआरटीएस को तोड़ दिया तो देख लेना, अभी तो फुटपाथ के अलावा सडक़ के 10-12 फुट हिस्से पर ही वाहन पार्क हो रहे हैं, उसके बाद सडक़ के 20-२५ फुट हिस्से तक कारें पार्क होती रहेंगी। तब भी क्या ट्रैफिक पुलिस कोई कार्रवाई नहीं करेगी।
सवाल इस बात का उठता है कि आखिर सडक़ें भी कितनी चौड़ी की जाएंगी। जो नया इंदौर बस रहा है, उस पर मास्टर प्लान के हिसाब से 25 साल में मात्र दो-तीन सडक़ें बनीं। अभी भी कई मेजर रोड की सडक़ें बनना बाकी हैं। शहर के मध्य क्षेत्र में ट्रैफिक का दवाब कम करने के लिए शहर का विकास सुपर कॉरिडोर की तरफ, राऊ की तरफ, देवास नाके की तरफ और बायपास पर करना होगा। यदि नए इलाके विकसित नहीं किए गए तो इंदौर के मध्य क्षेत्र में आने वाले सालों में पैदल चलना भी मुश्किल हो जाएगा। पुराने इंदौर का घनत्व कम करने के लिए नगर निगम और जिला प्रशासन को आवासीय इलाके में बेतरतीव तरीके से खुल रही दुकानें और शोरूम में तोडफ़ोड़ करना पड़ेगी। वैसे अफसर किसी की सुनते नहीं हैं। जनप्रतिनिधि तो बेचारे मौका देखकर कभी बोलते और कभी चुप हो जाते हैं। सवाल इस बात का है कि शहर के ट्रैफिक के लिए सिर्फ और सिर्फ पार्किंग समस्या पर कड़े कदम उठाना पड़ेंगे। सख्त कानून लागू करना पड़ेगा। नगर निगम को मल्टीस्टोरी पार्किंग बनाना पड़ेगी। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना पड़ेगा, उसके अलावा कोई भी ताकत इंदौर के बदहाल ट्रैफिक जाम से मुक्ति नहीं दिला सकती। सोचने का वक्त है, सोच लें जनप्रतिनिधि, क्योंकि उनको रहना इसी शहर में है। अफसर तो तबादला होने के बाद चले जाएंगे। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता। शहर के विकास की योजना सही बने, गलत बने या लंगड़ी-लूली बने, सोचना इंदौर के लोगों को है और उनका नेतृ़त्व जनप्रतिनिधियों को करना है। बाकी राम जाने…क्या होगा इंदौर का।