सुप्रीम कोर्ट ने भारत में महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ बढ़ते अपराधों को लेकर दायर एक याचिका की सुनवाई करने पर सहमति जताई है। याचिका में सुरक्षा उपायों और सख्त दंड की मांग की गई है ताकि इन समुदायों को सुरक्षित माहौल प्रदान किया जा सके।
गृह मंत्रालय से जवाब मांगा गया
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गृह मंत्रालय और केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से इस याचिका पर जवाब मांगा है। यह याचिका महिला वकील एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ वकील महालक्ष्मी पावनी द्वारा दायर की गई है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2025 में होगी।
निर्भया केस की 12वीं बरसी पर विशेष ध्यान
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यह याचिका निर्भया सामूहिक दुष्कर्म मामले की 12वीं बरसी के दिन दायर की गई है। इसके अलावा, पावनी ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में डॉक्टर के साथ हुई बलात्कार और हत्या की दुखद घटना का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि इस घटना के बाद यौन हिंसा के लगभग 95 मामले सामने आए, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इन घटनाओं पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया।
महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कदमों की मांग
इस याचिका में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अखिल भारतीय स्तर पर दिशा-निर्देश लागू करने की मांग की गई है। इसके अलावा, बलात्कार के दोषियों के लिए रासायनिक नसबंदी की सजा और अश्लील साहित्य पर प्रतिबंध लगाने की भी मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जमानत न देने के लिए केंद्र और विभिन्न मंत्रालयों को नोटिस भेजा है और चार हफ्ते में जवाब देने का निर्देश दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इन निर्देशों पर कार्रवाई के लिए अटॉर्नी जनरल से भी मदद मांगी है। कोर्ट ने कहा कि याचिका में मांगे गए कुछ निर्देश जटिल हो सकते हैं, लेकिन सार्वजनिक परिवहन जैसे बसों, ट्रेनों, हवाई अड्डों और एयरलाइंस में उचित सामाजिक व्यवहार के लिए दिशानिर्देश तय करना जरूरी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह के दिशानिर्देश न केवल सिखाए जाने चाहिए, बल्कि उन्हें सख्ती से लागू भी किया जाना चाहिए क्योंकि सार्वजनिक परिवहन में अशोभनीय व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं।