भारत, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए बेहतर प्रोडक्टिविटी और वर्क कल्चर में सुधार की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है। इसी बीच, लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एसएन सुब्रह्मण्यन के बयान ने वर्क-लाइफ बैलेंस और लंबे वर्किंग ऑवर्स पर एक नई बहस छेड़ दी है।
हाल ही में एक वायरल वीडियो में, सुब्रह्मण्यन ने कहा कि यदि भारत को वैश्विक स्तर पर चीन और अमेरिका जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी है, तो कर्मचारियों को सप्ताह में 90 घंटे तक काम करना चाहिए। उन्होंने चीन की कार्य संस्कृति का हवाला देते हुए इसे देश की प्रगति का मुख्य कारण बताया।
“पत्नी को कितनी देर घूर सकते हैं?” बयान से विवाद
सुब्रह्मण्यन ने अपने बयान में कहा, “आप घर पर क्या करते हैं? अपनी पत्नी को कितनी देर तक घूर सकते हैं?” उनके इस व्यंग्यात्मक टिप्पणी ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी। इस बयान को लेकर लोगों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ ने इसे देश की प्रगति के लिए आवश्यक बताया, तो कुछ ने इसे व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन की अहमियत को नकारने वाला करार दिया।
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाएं
सुब्रह्मण्यन के बयान पर उद्योग जगत और आम जनता के बीच तीखी चर्चा शुरू हो गई।
- आरपीजी ग्रुप के चेयरमैन हर्ष गोयनका ने व्यंग्य करते हुए ट्वीट किया, “रविवार का नाम बदलकर ‘सन-ड्यूटी’ कर देना चाहिए और ‘छुट्टी’ को पौराणिक अवधारणा बना देना चाहिए।”
- सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक जीवन की अनदेखी पर नाराजगी जताई। उन्होंने इसे अव्यावहारिक और असंवेदनशील करार दिया।
नारायण मूर्ति और गौतम अडानी की राय
वर्क कल्चर पर यह बहस कोई नई नहीं है। इससे पहले इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने भी सप्ताह में 70 घंटे काम करने की सलाह दी थी। उन्होंने इसे देश के विकास के लिए आवश्यक बताया था।
दूसरी ओर, अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने इस विषय पर एक संतुलित दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा, “वर्क लाइफ बैलेंस व्यक्तिगत पसंद का मामला है। यदि कोई 8 घंटे परिवार के साथ बिताकर खुश रहता है, तो यही उसका संतुलन है।”
वर्क-लाइफ बैलेंस बनाम आर्थिक प्रगति
इस पूरी बहस ने वर्क-लाइफ बैलेंस और आर्थिक प्रगति के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया है।
- लंबी वर्किंग ऑवर्स से प्रोडक्शन में बढ़ोतरी संभव है, लेकिन मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना भी उतना ही जरूरी है।
- विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्ट वर्क और बेहतर तकनीक के उपयोग से प्रोडक्टिविटी को बढ़ाया जा सकता है, बिना कर्मचारियों को अनावश्यक दबाव में डाले।
क्या है समाधान?
भारत जैसे देश में, जहां आर्थिक विकास तेजी से बढ़ रहा है, कार्य संस्कृति को लेकर चर्चा जरूरी है।
- कार्य के घंटे बढ़ाने से पहले कार्यस्थल के वातावरण में सुधार किया जाए।
- तकनीकी प्रशिक्षण और ऑटोमेशन को अपनाकर प्रोडक्टिविटी बढ़ाई जा सकती है।
- मानसिक स्वास्थ्य और पारिवारिक समय को प्राथमिकता देकर कर्मचारियों को प्रेरित किया जा सकता है।