प्रखर – वाणी
स्वच्छता मिशन के नए नए आयामों में प्रशासन खो गया…शहरों में अब स्क्रेप व्यापार दुष्कर हो गया…हल्ला हो गाड़ियां गीले सूखे कचरे का संग्रह करती है…जिनको ले जाकर ऊर्जा निर्माण केन्द्र में भरती है…वहां बड़ी कम्पनी का ठेका इसमें पुनः गीले – सूखे कचरे के पृथक पृथक ढेर लगा देता है…उसका उपयोग अलग अलग तरीके से करके दौलत का खजाना भर लेता है…जन – जन में ग्लानि व बीमारी का कारक कचरा अब धनोपार्जन का आधार है…
निगमों की बेतहाशा आय बढ़ाने में काबिल यही नवाचार है…कचरे के इसी खेल में अब व्यापार फेल हो रहा है…अपने परिसर में भी यदि संग्रह हुआ तो इसका कर्ता जेल ढो रहा है…निगम के जवाबदारों का बयान है कि शहर में कचरा जहां भी है वो निगम की सम्पत्ति है…इसी स्वीकारोक्ति पर कुछ स्क्रेप कारोबारियों को गहरी आपत्ति है…व्यापारी संविधान के ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम , 2016 के प्रावधानों का स्मरण करवा रहे हैं…अपने अधिकारों के संरक्षण हेतु कबाड़ी समुदाय से प्रपत्र भरवा रहे हैं…
कबाड़ियों का कहना है कि अनुच्छेद 19(1)(ग) नागरिकों को व्यापार / पेशे को अपनाने का अधिकार देता है…स्क्रेप का अलगाव और पुनर्चक्रण एक वैध व्यावसायिक गतिविधि है ये कहता है…कचरा सौंपने के पूर्व उनके स्वामित्व की धरोहर है ऐसा व्यापारी मानते हैं…रिसाइक्लिंग को बढ़ावा देना न कि पेनाल्टी लगाना ये क्यों नहीं जानते हैं…दोनों पक्षों को अपने अपने कानूनी दायित्व पता है फिर भी बढ़ रहा हथकंडा है…दुनिया जानती है कि वो ही ताकतवर होता है जिसके हाथ में अपने प्रभाव का डंडा है…खाकी को खाक में मिलाकर पीली खौफ की परिधि है…हर झोन में बाउंसरों का भय ही अब व्यवस्था की विधि है…कचरे के पुनर्चक्रण हेतु मापदंड तय है…सूखा कचरा पर्याप्त संग्रहित नहीं होने का ठेकेदारी भय है…
कमाई की लत में लबालब इंफ्रा अब सूखे कचरे की कमतर आवक से परेशान है…यहां से बॉक्स बनाकर बड़े कारोबारियों को बेचने के व्यापार का इम्तिहान है…गीला कचरा तो बायोगैस रूपी ऊर्जा स्रोत से आय जुटा रहा है…मगर सूखा कचरा संदेह है कि गाड़ी वाला ही कहीं लूटा रहा है…सूखे कचरे की कम आवक से त्रस्त होकर…छापेमारी दुकानों व मैरिज गार्डनों तक पहुँचकर…चालानों की बेड़ियां डाल रही है…गोदामों से स्क्रेप की पडतन निकाल रही है…
बहरहाल स्वच्छता के सम्राट के खजाने में पुरस्कारों की फेहरिश्त है…इसलिए उसकी हर दादागिरी मंजूर है अब तो पेनल्टी में भी किश्त है…शहरों के शासक अब चहुओर अपनी ताकत बढ़ा सकते हैं…जिस पर कर लादना है उसके विधान से किला लड़ा सकते हैं…नई नई नीतियों और नियंताओं को प्रणाम करते हैं…कुंए में हैं इसलिए अपनी जिंदगी मगरमच्छ के नाम करते हैं…