Maha Kumbh और भगवान श्रीराम की महिमा

लेखक
संजय गोस्वामी

महाकुंभ ( Maha Kumbh ) जाने या ना जाने से कुछ नहीं होता जब तक आपके विचार शुद्ध नहीं होता ये कैसा कुम्भ दिल्ली रेलवे स्टेशन पर लोग भीड़ में मर गए फिर भी दया नाम की क़ोई चीज नहीं है कि जरा उसे उठा दे लोग मुकरते हुई भीड़ भाड़ में महाकुम्भ के लिए निकल चले।

Maha Kumbh में प्रभु राम नहीं दिखा तो नहीं गए

मुझे इस महाकुम्भ (Maha Kumbh ) में प्रभु राम नहीं दिखा तो नहीं गए। प्रभु राम से अनमोल क्या हो सकता है हमेशा उनके चरणों का ध्यान करें मैं दावे के साथ कहता हूँ आपके विचारों पर इसका ऐसा प्रभाव होगा कि आप सही और गलत का भेदभाव जान जायेंगे जब माता सीता ने हनुमानजी को रत्नो भरा माला उपहार में दिए तो हनुमानजी उसे तोड़ कर फेंकने लगे और माता सीता ने पूछा इतना कीमती हार को क्यों फेंक रहें हो तो हनुमानजी ने सीना चिरकर भगवान राम औऱ माता सीता के रूप को दिखा दिया कि भगवान राम से कीमती क़ोई भी वस्तु नहीं है और जिसे मैं हमेशा इन्हे ह्रदय से लगा कर रखता हूँ ईश्वर ना तो मंदिर में मिलेंगे ना हो महाकुम्भ में वो आपके अंदर है जो अच्छे कर्म से खुद ही अनुभूति होगी। प्रभु राम अमर हैं प्रभु राम ही अमृत है प्रभु राम ही गंगा है प्रभु राम ही सबकुछ है जो तुलसीदास जी को दर्शन दिए हर काम करने से पहले प्रभु के चरण स्पर्श कर लेना बहुत काम आएगा।
कबीर दास जी एक दोहे के माध्यम से कहते हैं मन के मत में न चलो, क्योंकि मन के अनेको मत हैं। जो मन को सदैव अपने अधीन रखता है, वह साधु कोई विरला ही होता है।मन के मारे बन गये, बन तजि बस्ती माहिं।कहैं कबीर क्या कीजिये, यह मन ठहरै नाहिं ।।
इसका मतलब मन की चंचलता को रोकने के लिए वन में गये, वहाँ जब मन शांत नहीं हुआ तो फिर से बस्ती में आ गये। गुर कबीर जी कहते हैं कि जब तक मन शांत नहीं होगा, तब तक तुम क्या आत्म – कल्याण करोगे।मैं गरीब या अपने माता-पिता की सेवा करना चाहूंगा, और जब जब ठेस लगा है तो मन में ही उसे इरेज कर दिया कारण यह है की सबसे बुरे वक़्त में भी उन्होंने हमें बचाया है जो आप वासना को शांत करने के लिए अच्छा काम भी बुरा हो जायेगा हैं। जैसे दीपक पर जुगनू जल जाता है वैसे ही आप नर्क की ओर बढ़ते है ऐ भारत देश की मिट्टी में मर जावां ऐ सिखाता है इसके लिए हमें गरीबों की मदद करनी चाहिए और हमेशा माता-पिता द्वारा हमें दिए गए कार्यों पर ध्यान दें।वासना से सभी अवगुण और स्वार्थ के कारण मन में गंदगी रहती है तो आप उसे कर कर भी क्या करोंगे वो तो छनभर में ख़त्म हो जाता है बाद में आगे और कितना क्या करोगे,आप उसके लिए अच्छे से बुरे कर्म करते हो क्योंकि आप वासना के शिकार हो बाद में धोखा मिलता है जब आपके सामने मौत आकार खड़ी हो जाती है, इसे इस बात से समझेंगे,महाभारत युद्ध के बाद युधिष्ठिर राजा बन गए थे। जब हस्तिनापुर में सब ठीक हो गया तो श्रीकृष्ण अपनी नगरी द्वारका लौट रहे थे। उस समय कुंती ने श्रीकृष्ण से वरदान में दुख मांगे थे। श्रीकृष्ण ने पूछा कि आप दुख क्यों मांग रही हैं?
कुंती ने कहा कि दुख के दिनों में तुम बहुत याद आते हो। अगर सुख के दिन रहेंगे तो मैं तुम्हें याद नहीं कर पाऊंगी, लेकिन जब-जब मेरे जीवन में दुख आते हैं, तुम मुझे याद आते हो और तुम हमारी मदद करने के लिए आ जाते हैं। मैं चाहती हूं कि मेरे जीवन में दुख रहें, ताकि मैं तुम्हें हमेशा याद करूं और तुम भी हम पर कृपा बनाए रखो। ऐ ही प्रेरणा महा कुम्भ में भी है इसकी मान्यता ऐ है कि जब इंद्र देवता महर्षि दूर्वासा के दिए गए माला का मोल नहीं समझते हैं और ऐरावत हाथी को दे देते है और जब कुचल दिया तभी ऋषि ने देवताओं को श्राप दे दिया कि ऐ देवताओं की शक्ति का नाश होगा और बाद में देवताओं के सभी चीजों को असुर लोग मिलकर युद्ध में पराजित कर उसे अपने कब्जे में ले लेते हैं बाद में सभी देवताओं ने ब्रह्मा जी से मिलकर इस समस्या का हल निकालते हैं तब वो इससे मना कर भगवान विष्णु के पास भेज देते हैं भगवान विष्णु समुद्र मंथन की योजना का प्रस्ताव देते हैं और असुरों को यह कहकर लालच देते हैं कि उसमें अमृत कलश निकलेगा और मंदार पर्वत पर देवता एक ओर असुर दूसरी ओर से बासुकी नाग को रस्सी बना करा कर समुद्र मंथन चालू होता है अमृत तो बहुत बाद में निकला लेकिन सबसे पहले निकला एक भयानक विष जिसकी एक बूंद पृथ्वी पर गिर जाता तो विनाश हो जाता और भयभीत होकर भगवान शंकर जी ने पीने के लिए राजी हो गये लेकिन वहीँ माता पार्वती भी थी और भगवान शंकर ने विष पिया तो माता पार्वती ने गले में अटकाने को कहा और उन्होंने अटका लिया यदि माता पर पार्वती ना होती तो भगवान शंकर को बचाना मुश्किल होता है ऐ है नारी की शक्ति, जिसे आज लोग नहीं मानते औऱ कष्ट पाते हैं यदि आपका रिश्ता ठीक नहीं है तो उसे ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए और धैर्य रखनी चाहिए। ये जरूरी नहीं कि समस्या बहुत बड़ी हो।

आपको बदलाव का मौका खुद को भी देना चाहिए और पत्नी को भी देना चाहिए। रिश्ते को सुलझाने के लिए छोटे-छोटे कदम उठाएं। ध्यान रखें कि अगर आपको आपकी भावनाओं की कद्र करवानी है तो उसकी भी भावनाओं की कद्र भी करनी होगी। ऐसे लोगों मौकापरस्त होते हैं जो कठिन समय में आपको धोखा दे देते हैं आप प्रसन्न रहें इन्हे छोड़ कर प्रभु राम के ध्यान में मग्न हो जाओ आपने अच्छा किया लेकिन आपके साथ बुरा हो गया तो उसे निकाल देने में ही बुराई उसका हर चीज 10गुना दाम में लौटा दो ऐसे लोग स्वार्थी होते हैं मान लीजिये आप को शादी नहीं करना है तो कर लो दूसरों के चक्कर में मत रहो एक बार चोट लगा है संभल जाइए जिसके लिए आप परिवार से लड़ कर शादी कर लेते हैं उनकी इज्जत बचाने के लिए औऱ वही आपकी इज्जत पर दाग़ दे तो उसे छोड़ देने में भलाई है शारिरिक संबंध तो किसी और से भी पैसे से बन सकता है हर मनुष्य में आभा होती है लेकिन इंसानियत नहीं , आत्महत्या कर क्या मिलेगा यही गीता में लिखा है जब अर्जुन महाभारत में अपने सगे से लडऩा नहीं चाहते थे लेकिन भगवान श्री कृष्ण जब मरे हुए लोगो से मिलाते हैं तो पूर्व जन्म में रहे रिस्तेदार उसे पहचानने से इनकार कर देते तभी भगवान कृष्ण समझाते है हे अर्जुन देखो अगले जन्म में किसी से क़ोई रिश्ता नहीं रहता है ऐ जीवन में भूत को छोडक़र वर्तमान की तरफ जाओ औऱ अन्याय का बदला लो अन्यथा तुम में जो पीड़ा घाव से परेशान हो वो जहर की तरह फैल जायेगा और ऐ अन्याय होगा अत: युद्ध करो यही कर्म है देखो तुम अपना कर्म करो फल ईश्वर पर छोड़ दो औऱ इस तरह महाभारत होता है जब तक आपके मन में डर रहेगा कुछ नहीं कर सकते डर को निकाल बाहर करो मौत और जीवन इंसान की एक प्रकिया है आत्मा कभी मरती नहीं आत्मा अमर है एक महान गुरु नानक से सीखें एक ओंकार (ईश्वर एक है), सतनाम (उसका नाम ही सच है), करता पुरख (सबको बनाने वाला), अकाल मूरत (निराकार), निरभउ (निर्भय), निरवैर (किसी का दुश्मन नहीं), अजूनी सैभं (जन्म-मरण से दूर) और अपनी सत्ता कायम रखने वाला है। ऐसे परमात्मा को गुरु नानक जी ने अकाल पुरख कहा, जिसकी शरण गुरु के बिना संभव नहीं।अत: आपको सच का मार्ग गुरू ही दिखा सकता है अत: महाकुम्भ में आप लालच में आते हैं औऱ यही लालच आपको ऐ दिखाता है कि आप अभी में प्रभु राम को पूजने की जगह भीड़ भाड़ में कुछ भगदड़ में मारे जाते है उसके बाद यदि मानवता थी तो पहले समय ऐ नहीं था कि आप अपने को पवित्र करने के लालच में उससे मुकर जाते लेकिन ऐ नहीं जानते आपने अच्छा किया है तो संसार का क़ोई भी व्यक्ति आपको बुरा नहीं कह सकता और दया औऱ करुणा की भावना ही आपको महान बनाती इंसान इंसान के काम ना आ सके तो जीने से क्या जीत लेंगे उपकार करने पर आप ईश्वर के अंश यानि मानवता को जिन्दा रखेंगे महाकुम्भ आएगा जायेगा दुनिया बदलेगी आप नहीं रहेंगे उस समय तक लेकिन मानवता जिन्दा होना चाहिए भारत माता के प्रति सदा सेवा की भाव होना चाहिए अगले जन्म में ईश्वर से यही मांगना कि एक अच्छा इंसान बनाएं औऱ आपको जब पुनर्रजन्म होगा तो अच्छा इंसान अवश्य बनेंगे मान लीजिये क़ोई अपनी शादी में दहेज लेता है तो क्या धनवान हो जाता है सच्चा धन तो किसी के लाज रखने पर मिलेगा लेकिन यदि यहाँ भी धोखा खाते हैं तो अवश्य किसी जन्म में आपने बुरा कर्म किया होगा जो पहचान करने में भूल हो गई शादी बहुत ही सोच समझ कर करें कभी भी भावना नहीं आए नहीं तो जिंदगी में धोखा खाते रहेंगे अत: आप यदि नहीं करते हैं तो अच्छा होगा कि किसी की जिंदगी को बर्बाद तो नहीं किया संस्कार ऐसे नहीं आते आपको तपना पड़ता है ईश्वर सदैव यही देखता है कहीं मंजिल पाने के चक्कर में क़ोई गलत कदम तो नहीं उठाए हैं अत: इस मकडज़ाल से मुक्ति का यही राह है कि ईश्वर भगवान राम के चरणों में इसतरह आनंदित हो की पीछे वासना को दिमाग़ से निकाल दे यही आपकी कमजोरी होती है और ठोकरे खाते रहते हैं जीवन को आनंद से जिए दूसरे के दु:ख में अवश्य शामिल रहें यही आपकी अपनेपन की पहचान देता है दूसरों के बारे में गलत नहीं सोचे औऱ कर्म करें यदि क़ोई भी साथ नहीं देता तो ईश्वर तो अवश्य आपका साथ देगा कर्म करो वरना पीछे रह जायेंगे शिव ने जब हलाहल विष पिया अमृत नहीं त्याग का रास्ता ही ईश्वर के प्रति सच्ची आराधना है देश के रक्षा करने वाले सैनिक गलेशियर पर आपकी रक्षा कर रहें है यदि ऐ भी महाकुंभ चले तो देश का क्या होगा मन पर नियंत्रण किसी भी फल कर्म को करने के लिए जरूरी है ऐ गीता में लिखा है: कारगिल युद्ध नाथूला चीन में युद्ध में जो शहीद हुआ वही असली अमृत को ग्रहण किया जो शहीद आज भी लोगों को याद है गए हैं जब भी देश शत्रुओं पर विश्वास करता है तो सेना ही बचाती है मूल रूप से एक देश है वीर जवानों का, मूलत: महाकुंभ एक धार्मिक उत्सव है लेकिन अगर आप तीन इंसान हैं और देश प्रेम का जनून हो तो आपने बहुत कुछ लिया है जो अमृत से भी बर क्योंकि अमृत एक पेय पदार्थ है जो एक दिन नष्ट हो जाएगा उसकी भी एक समाप्ति तिथि होगी क्योंकि जब पृथ्वी का वैज्ञानिक विज्ञान ने निर्धारित किया है तो आप कैसे बचोगे। किसी विशाल समारोह में स्नान करना हर किसी के लिए संभव नहीं है।पति के बिना अकेले स्नान करना अनुचित है यदि आप ऐसा करेंगे तो आप पाप के भागीदार होंगे क्योंकि वैसे में कोई गलती से सट गया तो उसके आभा के चपेट में आ सकते हैं इसे सामाजिक और सांस्कृतिक ज्ञान से गलत समझा जाता है। यह एक लंबे समय तक चला आ रहा है कि पारंपरिक सिद्धांत यह है कि गंगा में अकेले नग्न स्नान करने से नक्षत्र से उनकी प्रतिष्ठा कम होती है और उनके सम्मान का प्रश्न होता है। धर्म का मूल है स्वयं को आत्मसाक्षात्कार कर आत्मबोध को उपलब्ध होना ना कि महाकुंभ में किसी का अपमान कर डुबकी लगाना पुण्य नहीं पाप के भागीदार होंगे अत: ।मन चंगा तो कठौती में गंगा यानी मन शुद्ध है तो गंगा माता को कठौती में भी स्नान कर पति पत्नी को वही लाभ मिलेगा जो नदी में इसमें पवित्रता मायने रखती है स्नान नहीं, पवित्रता, पतीव्रता होती है।